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'सेना के दम पर अफगानिस्तान में जीत मुश्किल'

७ अक्टूबर २००८

अफगानिस्तान में सेना के दम पर लड़ाई नहीं जीती जा सकती है. सिर्फ राजनीतिक तरीकों से ही कामयाबी हासिल की जा सकती है जिसमें सभी पक्षों से बातचीत भी शामिल है. यह राय है अफगानिस्तान में मौजूद संयुक्त राष्ट्र के विशेष दूत की.

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'तालिबान को हराना मुश्किल'तस्वीर: AP

अफगानिस्तान की राजधानी काबुल में एक संवाददाता सम्मेलन के दौरान संयुक्त के विशेष दूत काई इडी ने कहा, 'हम यह लड़ाई सैन्य तरीकों से कतई नहीं जीत सकते हैं. इसके लिए हमें राजनीतिक तरीके ही अपनाने होंगे.' उन्होंने कहा कि संकट के समाधान के लिए मुद्दे से जुड़े सभी पक्षों से बात करनी होगी.

इससे पहले अफगानिस्तान में ब्रिटिश कमांडर भी ठीक यही बात कह चुके हैं. ब्रिगेडियर मार्क कार्लेटन स्मिथ ने तो यहां तक कहा कि अगर तालिबान बातचीत के लिए राजी हो जाता है तो अफगानिस्तान में जारी उग्रवाद को खत्म करने के लिए यह एक प्रगति वाली बात होगी.

USA erwarten Frühjahrsoffensive der Taliban
अफगानिस्तान में तैनात हैं 70 हजार विदेशी सैनिकतस्वीर: AP

लेकिन उधर, अमेरिका की राय बेशक इससे कहीं अलग है. पेंटागन के प्रवक्ता ब्राइन व्हाइटमैन का कहना है, 'हम अफगानिस्तान में हार नहीं रहे हैं. हां, वहां करने को अभी बहुत कुछ है.' जब उनसे पूछा गया कि क्या तालिबान से बात की जा सकती है, उन्होंने कहा, 'यह हमारा रणनीति का हिस्सा नहीं है. उन्होंने वर्षों से अफगानिस्तान के समाज में दहशत फैलाई है.'

उधर तालिबान का कहना है कि जब तक देश में मौजूद सभी 70 हजार सैनिक वापस नहीं चले जाते, वे किसी तरह की बातचीत में शामिल नहीं होंगे. तालिबान के प्रवक्ता कारी मोहम्मद यूसुफ ने इन खबरों को भी गलत बताया है कि सउदी अरब में तालिबान और राष्ट्रपति हामिद करजई की सरकार के बीच बातचीत चल रही है. राष्ट्रपति करजई ने भी इन खबरों का खंडन किया है लेकिन यह स्वीकार किया है कि उन्होंने सउदी अरब के शाह से तालिबान को बातचीत की मेज तक लाने में मदद करने को कहा है.