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स्त्री पुरुष के फर्क से ऊपर है संगीत

८ मार्च २०१२

जानी मानी गायिका शुभा मुद्गल के लिए संगीत महिला और पुरुष के बीच फर्क से कहीं ऊपर है. शास्त्रीय और पॉप संगीत में एक जैसी दखल रखने वाली शुभा के पास ऐसा मानने की अपनी वजहे हैं जिसे सामने वाले को भी मानना पड़ता है.

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तस्वीर: AP

डॉयचे वेलेः भारत में शास्त्रीय संगीत में ज्यादातर बड़े नाम पुरुष हैं क्या उनका प्रभाव भी ज्यादा रहा है, आपको किन चुनौतियों का सामना करना पड़ा?

शुभा मुदगलः संगीत में उस्ताद ज्यादातर पुरुष रहे हैं, लेकिन मैं यह नहीं मानती हूं कि शास्त्रीय संगीत में पुरुषों का प्रभाव रहा है क्योंकि जिन संगीतकारों की वजह से यह लोकप्रिय हुआ है, खासकर ठुमरी और दादरा गायकी, उनमें से कई महिलाएं हैं. इन महिलाओं को कलाकार के तौर पर बहुत सम्मान मिला है और इनकी वजह से संगीत समुदाय में भी बहुत फर्क पड़ा है क्योंकि इनकी वजह से संगीत जगत में नए कलाकार और नई प्रतिभाएं आईं.

हां, लेकिन संगीत में रुचि रखने वाली महिलाओं को आम तौर पर क्या परेशानियां होती हैं?

निजी तौर पर मुझे कोई संघर्ष नहीं करना पड़ा है. मेरे परिवार में संगीत को बहुत सम्मान दिया जाता था, कला को बहुत माना जाता था. हालांकि मेरा परिवार खानदानी संगीतकारों वाला नहीं है. कुछ साल पहले ज्यादातर संगीतकार बड़े संगीत घरानों से आते थे और उन्हीं के पास संगीत सीखने का मौका भी था. मेरे मां बाप इलाहाबाद में अंग्रेजी साहित्य पढ़ाते हैं, और उन्होंने मुझे संगीत सीखने का हर मौका दिया वो भी भारत के बड़े संगीतकारों के साथ. हालांकि इसके बावजूद मैं कहना चाहूंगी कि एक वक्त ऐसा था, करीब 100 साल पहले जब महिला गायकों की कला को सम्मान तो दिया जाता था, लेकिन समाज में इनके खिलाफ कुछ धारणाएं भी थीं. महिला कलाकार शरीफ लोगों में नहीं गिने जाते थे और इसलिए अच्छे घरों की लड़कियां संगीत नहीं सीखती थीं और अगर सीख भी लें तो सार्वजनिक कार्यक्रमों में शामिल नहीं होती थीं. मेरी नानी 1900 में पैदा हुईं और जब उन्होंने संगीत सीखने की इच्छा जताई, तो उनसे कहा गया कि वह पियानो सीख सकती हैं, लेकिन भारतीय शास्त्रीय संगीत नहीं क्योंकि इसे शरीफों वाला संगीत नहीं समझा जाता था. मेरी मां और मौसी भी उसी तरह पली बढ़ीं. वह गायकी और कला में निपुण थीं, लेकिन करियर के तौर पर उन्होंने इसके बारे में नहीं सोचा.

इसके पीछे क्या वजह थी?

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एक तो सार्वजनिक रूप में लोगों की नजर में आना, यानी पुरुषों की नजर में, लेकिन शायद साथ ही कलाकार के जीवन में अनिश्चितता के साथ भी इसका कुछ लेना देना है. कलाकारों के पास पैसे कमाने का कोई स्थायी जरिया नहीं है और माता पिता को इसकी चिंता होती है.

आपने जब अपने गीतों के लिए म्यूजिक वीडियो पर काम किया, तब आपको महिलाओं से जु़ड़ीं कैसी धारणाओं का सामना करना पड़ा?

अगर आपने हाल में मेरे वीडियो देखे हों, तो आप समझ सकती हैं कि मैं वीडियो बहुत पसंद नहीं करती. मुझे यह जरिया समझ में नहीं आता और म्यूजिक वीडियो मुझे एक प्रचार का माध्यम लगता है. भारत में बने म्यूजिक वीडियो बनी बनाई धारणाओं पर चलते हैं. एक आधे को छोड़ सब एक जैसे ही हैं. मेरा वीडियो में शामिल होना और खिड़की से बाहर कहीं दूर झांकना मुझे समझ में नहीं आता. मेरे वीडियोज के लिए मैंने शुरू से ही अपने करार में कह दिया कि मैं इनमें नहीं आना चाहती हूं.

भारत में महिलाओं के संगीत करियर के बारे में आपकी क्या राय है?

मैं आपको केवल कुछ ट्रेंड के बारे में बता सकती हूं. लेकिन मैं कहना चाहूंगी कि मेरे पास आंकड़े नहीं हैं. कई महिलाएं, खासकर बंगाल और महाराष्ट्र में, शास्त्रीय संगीत की ओर आ रही हैं. इनमें से कई संगीत घरानों से नहीं है. फिर भी मैं कहना चाहूंगी कि इन महिलाओं के घर में इनके पति या परिवारवाले इनके लिए भी कमा लेते हैं और इन महिलाओं को फिर आमदनी की चिंता नहीं होती है. वह संगीत से पैसे कमाकर घर नहीं चला रही हैं. और यही फर्क है. और जो पुरुष संगीत में रुचि रखते हैं, वह साथ साथ काम भी करते हैं या फिर पैसे जमा करते हैं और फिर रिटायर करके संगीत सीखते हैं.

एक महिला और एक कलाकार की हैसियत से आप अपने बारे में क्या सोचती हैं?

मैं आपसे सच कह सकती हूं...मैंने कभी नहीं सोचा कि मैं एक महिला कलाकार हूं. मैं सिर्फ कलाकार हूं, मैं बहुत शुक्रगुजार हूं कि मुझे संगीत का तोहफा मिला. लेकिन मुझे कभी नहीं लगा कि मैं एक महिला कलाकार हूं. हां मैं महिला हूं और मुझे अच्छा भी लगता है. लेकिन काम के तौर पर मुझे लगता है कि संगीत इन फर्कों से कहीं ज्यादा बढ़कर है.

इंटरव्यूः मानसी गोपालकृष्णन

संपादनः एन रंजन

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