स्पैम भेजने में सबसे आगे है भारत
४ जनवरी २०१२मॉस्को स्थित इंटरनेट सुरक्षा कंपनी 'कास्पेर्स्की लैब' का कहना है की दक्षिण एशिया से जितना स्पैम आता है उतना पूरी दुनिया में और कहीं से नहीं. कंपनी की रिपोर्ट में कहा गया है की साल में जुलाई से सितम्बर के बीच भेजे गए ई-मेल के रिकॉर्ड बताते हैं कि 79.8 प्रतिशत ई-मेल जंक या स्पैम थे. इनमें से 14.8 प्रतिशत भारत से भेजे गए, 10.6 प्रतिशत इंडोनेशिया से और 9.7 प्रतिशत ब्राजील से.
कंपनी की स्पैम विशेषज्ञ दरया गुडकोवा का कहना है कि आंकड़े दिखाते हैं कि दक्षिण एशियाई देशों और लैटिन अमेरिका से जंक बढ़ रहा है. दरया का कहना है कि भारत में इंटरनेट सुरक्षा को लेकर सख्त कानूनों की कमी है. इसी के चलते वहां से इतना स्पैम आता है. इसके आलावा लोगों में इंटरनेट सुरक्षा को लेकर बहुत कम जानकारी है.
भारत में सुरक्षित स्पैमर
भारत में इंटरनेट सुरक्षा के जानकार विजय मुखी का कहना है कि जब से और देशों में सख्त कानून बने हैं तबसे स्पैम भेजने वाले लोगों ने भारत को अपना अड्डा बना लिया है, "हमारे यहां साल 2000 में इन्फॉर्मेशन टेक्नॉलोजी एक्ट लाया गया. लेकिन उसके अंतर्गत कभी किसी पर अपराध साबित नहीं किया गया और स्पैम के बारे में उसमें कुछ भी नहीं कहा गया है." विजय मुखी का कहना है कि भारत में रह कर स्पैम करने वालों को किसी तरह का डर नहीं सताता, "अगर मैं स्पैमर हूं तो मैं भारत से ही भारत और बाकी की दुनिया में स्पैम भेजूंगा क्योंकि मैं जानता हूं कि मुझे कुछ नहीं होगा."
पिछड़ेंगे अमेरिका और चीन
स्पैम उन अनचाहे ई-मेल को कहा जाता है जिन्हें बड़ी तादाद में लोगों को भेजा जाता है. इनका राजनीतिक प्रचार के लिए भी इस्तेमाल किया जाता है और कई चैरिटी संस्थाओं द्वारा चंदा मांगने के लिए भी. लेकिन अधिकतर इन्हें आर्थिक घोटालों के साथ जोड़ कर देखा जाता है और कंप्यूटर वायरस के साथ भी. कई बार लोगों को ऐसे ई-मेल भेजे जाते हैं जिन्हें खोलने से कंप्यूटर पर काबू किया जा सकता है और सभी पासवर्ड्स निकाले जा सकते हैं. ऐसे में बैंक के पासवर्ड का असुरक्षित हाथों में जाना खतरनाक साबित हो सकता है.
भारत में फिलहाल ग्यारह करोड़ से अधिक लोग इंटरनेट का इस्तेमाल करते हैं. इसके साथ ही भारत इंटरनेट इस्तेमाल करने वाला दुनिया का तीसरा सबसे बड़ा देश है. अमेरिका और चीन में इंटरनेट इस्तेमाल करने वाले लोगों की संख्या भारत से ज्यादा है. जानकारों का मानना है कि हर महीने इस संख्या में 50 से 70 लाख की वृद्धि हो रही है और यदि इसी तेजी से यह संख्या बढ़ती रही तो जल्द ही भारत पहले स्थान पर पहुंच जाएगा.
रिपोर्टः एएफपी/ ईशा भाटिया
संपादनः एन रंजन