दिल्ली के तंबू में हंटरवाली
३० अप्रैल २०१३टेंट के बाहर काले रंग के ब्लैक बोर्ड पर ठेठ देसी अंदाज में लिखा है हाउसफुल. राजधानी दिल्ली में टेंट सिनेमा में बैठ कर 7 से 70 साल के लोग 1940 के दशक की हंटरवाली और दिल जिगर का मजा ले रहे हैं. यह काला बोर्ड और दूसरी तैयारियां हिंदी फिल्मों के 100 साल पूरे होने पर हिंदी सिनेमा के शुरूआती दौर और माहौल का मजा दोबारा जिंदा करने की कोशिश का हिस्सा हैं.
हिंदी सिनेमा की पहली स्टंट क्वीन और बेधड़क नादिया के नाम से मशहूर हुई मैरी इवैंस ने हंटरवाली, मिस फ्रंटियर मेल, हरिकेन हंसा और हंटरवाली की बेटी जैसी फिल्मों से भारत में हलचल मचा दी थी. यह तब की बात है जब हिंदी सिनेमा ने बोलना सीखा ही था. आज इतने साल बाद जब हिंदी सिनेमा अभिनेत्रियों को तमाम रूपों में दिखा चुका है तब भी "हंटरवाली की बेटी" का जलवा लोगों को अभिभूत कर रहा है.
टेंट सिनेमा में गैलेंट हर्ट भी दिखाई गई है. यह पहली बोलती फिल्म आलम आरा के दौर में ही बनी थी लेकिन खामोश थी. उम्र के सातवें दशक में पहुंच चुके सिनेमा के शौकीन ओपी मागो लाहौर में टेंट सिनेमा में पंजाबी फिल्में देख कर बड़े हुए थे. विभाजन के बाद दिल्ली और लुधियाना में रहने वाले मागो ने शुरुआती दौर की फिल्मों को फिर से टेंट में बैठ कर देखा तो पुरानी याद ताजा हो गई, "मुझे देव आनंद की टैक्सी ड्राइवर देखना याद है. खामोश फिल्मों में मुझे गैलेंट हार्ट्स बहुत पसंद थी और इसके एक्शन ने मुझे फिल्म से बांध कर रख दिया था." गैलेंट हार्ट्स के बारे में कहा जाता है कि यह हॉलीवुड के थीफ ऑफ बगदाद से प्रेरित थी जिसमें डगलस फेयरबैंक्स ने काम किया था. पुणे की अग्रवाल फिल्म कंपनी के पास इसका एक दुर्लभ प्रिंट मौजूद था.
दर्शकों में 72 साल के लाइल पियर्सन भी हैं जो पहली बार 1970 में भारत आए और नेशनल फिल्म अर्काइव्स ऑफ इंडिया के संस्थापक निदेशक पी के नायर के दोस्त बन गए. वह दक्षिण भारत में टेंट सिनेमा के पुराने दौर को याद कर खुशी से झूम उठते हैं, "1970 के दशक में यहां आने के बाद मैंने 40 साल तक भारतीय सिनेमा पर रिसर्च किया. उस वक्त मैंने मद्रास में टेंट सिनेमा में तमिल फिल्में देखी. तब मैं सोचता था कि अगर मुझे यह भाषा आती तो मैं इनका और मजा लेता. मैंने फॉल ऑफ स्लैवरी और गैलेंट हार्ट्स और फाल्के की कालिया मर्दन देखी. इतिहास को बचाया जाना चाहिए और अगली पीढ़ी को उसका मजा लेना चाहिए.
फिल्म इतिहासकार और क्यूरेटर उस टीम का हिस्सा है जिनकी वजह से सदी के सिनेमा की प्रदर्शनी संभव हो पाई है. उन्होंने भी माहौल बनाते हुए सबको यहां आने के लिए कहा, "आइए आइए देखिए 1920-30 के भारतीयों को और महसूस कीजिए खामोशी के दौर के जादू को." भारत में पारसी कारोबारी जे एफ मदन को टेंट सिनेमा का पायनियर माना जाता है. उन्होंने कोलकाता में 20वीं सदी के शुरुआत में एलफिंस्टन बायोस्कोप कंपनी शुरू की थी और वो वहां मैदान में टेंट शो करवाते थे. बाद में उन्होंने एलफिंस्टन पिक्चर पैलेस के नाम से सिनेमा हॉल बनाने शुरू किए. एलफिंस्टन भारत और यूरोप की उन चुनिंदा कंपनियों में थी जिन्होंने 1911 के ऐतिहासिक दिल्ली दरबार को फिल्माया था. जिसमें किंग जॉर्ज पंचम और क्वीन मैरी शामिल हुए थे. भारत के तमाम शहरों में एलफिंस्टन नाम के थिएटर आज भी उनकी याद दिलाते हैं.
एनआर/एएम (पीटीआई)