हर रोज मर रही हैं 200 माएं
३१ अक्टूबर २०१३संयुक्त राष्ट्र की 'मदरहुड इन चाइल्डहुड' रिपोर्ट 2010 में इकट्ठा किए गए आंकड़ों के आधार पर तैयार की गई है. इसके अनुसार हर साल मां बनने वाली महिलाओं में 73 लाख लड़कियां 18 साल से कम उम्र की हैं. ऐसा सबसे ज्यादा दक्षिण एशिया और सब सहारा अफ्रीका में हो रहा है. सर्वे के अनुसार मां बनने वाली बीस लाख लड़कियों की उम्र 14 साल से कम है. कुछ देशों में 19 फीसदी युवा माएं अपने पहले बच्चे को जन्म खुद 18 बरस की होने से पहले देती हैं.
गरीबी से सीधा संबंध
सर्वे के दौरान पाया गया कि दक्षिण एशिया में 15 साल से कम उम्र वाली 29 लाख माएं हैं और सब सहारा अफ्रीका में 18 साल से कम उम्र वाली करीब 18 लाख माएं हैं.
बाल या किशोरावस्था में मां बनने वाली लड़कियों की सबसे ज्यादा तादाद (51 फीसदी) नीगर और चाड (48 फीसदी) में है. कम उम्र में गर्भधारण या प्रसव के दौरान मौत का खतरा ज्यादा होता है. कई बार लंबे प्रसव या सुविधाओं की कमी में भी ये मौतें होती हैं. ऐसे कई मामलों में शिशु की मौत हो जाती है और मां को सर्जरी के बगैर ही छोड़ दिया जाता है, जो कि उनके लिए खतरनाक है. अमीर देशों में किशोरावस्था में ग्रभधारण के कारण इतनी मौतें नहीं होती हैं. ये केवल 5 फीसदी ही हैं जिनमें से 6.8 लाख यानि लगभग आधी मौतें केवल अमेरिका में ही होती हैं.
मानवाधिकारों का हनन
रिपोर्ट को तैयार करने वाले रिचर्ड कोलोज ने कहा, "जिस तरह की असमर्थता से ये लड़कियां गुजरती हैं यह मानवाधिकारों का हनन है." उन्होंने कहा कि जब एक लड़की की शादी 18 साल से कम उम्र में होती है, जब वह गर्भवती होती है और जब उसे स्कूल जाने से रोका जाता है, तब उसके सभी अधिकारों का हनन हो रहा होता है.
संयुक्त राष्ट्र के जनसंख्या पर नजर रखने वाली संस्था यूएनएफपीए के कार्यकारी निदेशक बालाटुंडे ओसोटिमेहिन ने कहा, "ज्यादातर मामलों में तो समाज लड़कियों को ही गर्भवती होने के लिए जिम्मेदार ठहराता है." वह मानते हैं कि सच्चाई यह है कि इन लड़कियों के पास ज्यादा विकल्प नहीं होते. और गर्भवती हो जाने पर उन्हें अक्सर समाज के दबाव के रहते स्कूल जाने से भी रोक दिया जाता है.
इसके मुख्य कारण यौन हिंसा और वाल विवाह जैसी समस्याएं हैं. जिन देशों में ऐसा सबसे ज्यादा पाया गया उनमें 10 में से 9 मामले पारिवारिक और पारंपरिक परिवेश में हुई शादियों के हैं. ओसोटिमेहिन मानते हैं, "गर्भधारण से बचने के लिए उठाए जाने वाले कदम, कंडोम के विज्ञापन या इनका मुफ्त बांटा जाना उन लड़कियों के लिए कोई मायने नहीं रखता जिनके हाथ में निर्णय लेने की शक्ति ही नहीं दी गई है."
यूएनएफपीए के अनुसार ज्यादा से ज्यादा लड़कियों को शिक्षा मुहैया कराने की जरूरत है. इसके अलावा जरूरी है कि उन्हें यौन स्वास्थ्य और बेहतर जीवनशैली से संबंधित जानकारी दी जाए.
एसएफ/आईबी (एएफपी, आइपीएस)