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हिरोशिमा की बरसी पर पहली बार अमेरिकी प्रतिनिधि

६ अगस्त २०१०

द्वितीय विश्वयुद्ध खत्म होने वाला था, जापान हथियार डालने के कगार पर था. और 6 अगस्त को हिरोशिमा पर पहले परमाणु हमले के साथ सारी दुनिया में अमेरिकी ताकत की धाक साबित की गई. 1 लाख लोग तुरंत मारे गए.

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तस्वीर: AP

शुक्रवार को हिरोशिमा पर बर्बर परमाणु हमले की 65वीं वर्षगांठ है और पहली बार अमेरिका के प्रतिनिधि वहां हुई स्मृति सभा में उपस्थित थे. स्थानीय समय के अनुसार जैसे ही आठ बजकर पंद्रह मिनट हुए तो पारंपरिक रूप से शांति का घंटा बजाया गया. उसके बाद आसमान में शांति के प्रतीक के रूप में सफ़ेद कबूतर छोडे़ गए. आठ बजकर पंद्रह मिनट पर ही हिरोशिमा में परमाणु बम गिरा. अपने भाषण में हिरोशिमा के मेयर तादातोशी अकीबा ने कहा कि परमाणु हथियारों को मिटाने का सवाल विश्वव्यापी चेतना में फैलता जा रहा है.

दूसरी ओर, जापान के प्रधानमंत्री नाओटो कान ने कहा कि जापान के लिए ज़रूरी है कि वह अमेरिकी परमाणु छतरी के तले रहे. हिरोशिमा के स्मृति समारोह के बाद उन्होंने कहा कि अस्पष्ट और अनिश्चित कारकों के चलते जापान के लिए अमेरिकी परमाणु क्षमता जरूरी बनी हुई है.

सन 1947 में निर्धारित जापान के नए संविधान के अनुसार उसकी न तो सेना हो सकती है और न ही वह युद्ध की घोषणा कर सकता है. लेकिन अब संविधान की इस धारा की व्याख्या इस रूप में की जा रही है कि रक्षा के लिए सशस्त्र बल हो सकते हैं.

पहली बार इस स्मृति सभा में एक अमेरिकी प्रतिनिधि के रूप में भाग लेते हुए अमेरिकी राजदूत जॉन रूस ने कहा कि आनेवाली पीढ़ियों की ख़ातिर परमाणु हथियारों से खाली एक दुनिया के लिए काम करते रहना पड़ेगा.

दूसरी ओर, जापान के मीडिया में रिपोर्टें आई हैं कि एक सलाहकार समिति जल्द ही जापान सरकार से कहने वाली है कि देश में परमाणु अस्त्र लाने पर लगी पाबंदी ढीली की जाए. वैसे कुछ अनुदारवादी नेता यह भी मांग कर रहे हैं कि जापान खुद अपने परमाणु हथियार बनाएं. जनता के बीच ऐसी मांग कतई लोकप्रिय नहीं है. प्रधानमंत्री कान ने भी इस पर जोर दिया कि जापान अपने परमाणु अस्त्र विरोधी सिद्धांतों पर कायम रहेगा.

1945 के परमाणु हमले के बाद जीवित बचे 78 वर्षीय तोमिको मासुमोतो ने पत्रकारों से शुक्रवार कहा कि वे परमाणु निरस्त्रीकरण चाहते हैं, और अगर अमेरिका इस दिशा में आगे बढ़ रहा है तो बाकी देशों को उसका समर्थन करना चाहिए. उन्होंने कहा कि पहले उन्हें अमेरिका से नफ़रत थी, लेकिन अब यह नफ़रत दूर हो चुकी है. वे अमन की दुनिया देखना चाहते हैं.

रिपोर्ट: एजेंसियां/उज्ज्वल भट्टाचार्य

संपादन: ए कुमार

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