होलोकॉस्ट की भयावहता को दर्शाती कला
होलोकॉस्ट के वक्त जीना एक सतत संघर्ष था. कितने ही लोग यातना शिविरों में सताए गए और कितने ही इसके डर से छिप कर जीवन जीने को मजबूर थे. अंडरग्राउंड जीवन बिताते हुए कुछ लोगों ने उन बुरी यादों को कला के रूप में उकेरा.
भूले बिसरे कलाकार
नाजियों द्वारा यातना शिविरों में डाले गए कई कलाकार विश्व प्रसिद्ध हुए. वहीं यातना शिविर में रहते हुए पेंटिंग करने वाले वाल्डेमार नोवाकोव्स्की (तस्वीर में) जैसे कई कलाकार विस्मृत भी हो गए. ऐसे ही गुनाम रहे कई कलाकरों की कृतियां 27 जनवरी 2015 से जर्मन संसद में शुरु हुई प्रदर्शनी का हिस्सा बनी हैं.
खौफ को उकेरते
लेखक, क्यूरेटर और इतिहासकार युर्गेन काउमकोएटर ने करीब 15 साल तक होलोकॉस्ट आर्ट पर शोध किया. उनका ध्यान केवल पेंटिंग पर ही नहीं, बल्कि कला के ऐसे किसी भी रूप पर था जिससे उस काल की घटनाओं के बारे में पता चलता हो. लियो हास की उकेरी हुई इस कलाकृति में 1947 के थेरेसिएनश्टाट यातना शिविर की एक तस्वीर दिखती है.
'कैंप म्यूजियम' के लिए पेंटिंग
थेरेसिएनश्टाट में कलाकारों का अपना 'कैंप म्यूजियम' हुआ करता था. थेरेसिएनश्टाट कैंप में कलाकारों को पेंसिलें, ब्रश और कागज दिए जाते थे, जिससे वे नाजियों से मिला काम पूरा कर सकें. बाकि कृतियां वे छिप कर बनाया करते थे. तस्वीर में देखें, 1943-44 के बीच मारियान रुत्सामस्की की बनाई एक सेल्फ पोर्ट्रेट.
गवाह थे जो कलाकार
येहूदा बाकन (तस्वीर में दाएं) 1942 में केवल 13 साल की उम्र में थेरेसिएनश्टाट कैंप पहुंचे. दिसंबर 1943 में उन्हें आउशवित्स-बिरकेनाउ भेजा गया, जहां उन्हें एक मेसेंजर का काम दिया गया. इसके अलावा उन्हें जाड़ों में शवदाहगृह की भठ्ठी से खुद को गर्म रखने की अनुमति मिली थी. युद्ध के बाद अपनी कई तस्वीरों में उन्होंने अपने आंखों देखें दृश्यों का ब्यौरा दिया.
मौत का प्रतीक
येहूदा बाकन की कई कृतियों में आउशवित्स को साफ साफ नहीं दिखाया गया. फिर भी शवदाहगृह की चौकोर चिमनियों और लोगों की छाया देखकर समझा जा सकता था कि उन्होंने किस खूबी से गैस चैंबर में मारे गए लोगों की कहानी कही है.
दूसरी पीढ़ी
मिषेल किषका इस्राएल के एक प्रभावशाली कॉमिक इलस्ट्रेटर हैं. अपने 'दूसरी पीढ़ी' नाम के एक ग्राफिक उपन्यास में उन्होंने आउशवित्स के पीड़ित अपने पिता के साथ अपने संबंधों का ब्यौरा दिया है. बचपन से ही उन्हें पिता के झेले दर्दनाक अनुभव जानकर काफी सदमा लगा था. पिता ने ही बाद में शिविर के बारे में हल्की फुल्की बातें कर किषका की दहशत को कम करने की कोशिश की.
होलोकॉस्ट के कई रूपक
इस्राएली कलाकार सिगालिट लांडाउ के माता पिता होलोकॉस्ट से बचकर निकलने वालों में से थे. आउशवित्स में लंबा समय बिताने वाले येहूदा बाकन उनके कला शिक्षक थे. लांडाउ आज भी एक कलाकार और प्रोफेसर के रूप में इस्राएल में काफी सक्रिय जीवन बिता रही हैं. उनकी कला में रूपकों का काफी महत्व है. जैसे कि यहां दिख रहे जूते जो कि आउशवित्स की स्थाई प्रदर्शनी में दिखाए गए जूतों के ढेर वाली कृति से प्रेरित हैं.
मौत के साथ सब खत्म नहीं होता
सिगालिट लांडाउ ने इस्राएल से सैकड़ों जूते इकट्ठे किए और फिर उन्हें डेड सी में डुबो कर रखा. डेड सी में जूतों के ऊपर नमक की कई पर्तें जम गईं जो कि मौत के बाद जीवन का एक रूपक है. इस कृति से वह यही संदेश देना चाहती हैं कि हताशा को पार कर उम्मीद का दामन पकड़ना चाहिए.