इराकी जेल में दरिंदगी की दास्तान
२९ जनवरी २०१३
ब्रिटेन की फौज ने इराक युद्ध में जेल में बंद कैदियों से बेहद अमानवीय व्यवहार किया. छह साल तक ब्रिटेन के फौजियों ने कैदियों को जैसी यातनाएं दीं, उनकी वजह से अब ब्रिटेन सरकार को सवालों का सामना करना पड़ रहा है. ब्रिटेन के वकील फिल शिनर लंदन हाई कोर्ट के सामने 180 लोग बयान पेश कर रहे हैं. ये बयान शिनर और जनहित में काम करने वाली वकीलों की टीम ने जुटाए हैं. बयान उन कैदियों के हैं जो 2003 से 2008 तक ब्रिटिश सैनिकों के नियंत्रण में रही इराकी जेलों में बंद थे.
बयानों की संख्या और उनमें दर्ज बातें चौंकाने वाली हैं. शिनर के मुताबिक अभी 827 बयान आने बाकी हैं. खालिद नाम के एक व्यक्ति का बयान है, "एक ब्रिटिश सैनिक ने फिर मेरे लिंग को पकड़ लिया और उसे खींचते हुए मुझे जमीन पर घसीटने लगा. मुझे नंगा रखते हुए उसने मुझसे उठक बैठक कराई और मेर गुप्तांग में अंगुली डाल दी. मैं इसका हिस्सा बनने के बजाए मरना ज्यादा पसंद करता."
हलीम नाम के एक पूर्व कैदी ने कहा, एक जवान ने "मेरी पतलून की बेल्ट उतारी और कहा अब जिग्गी जिग्गी. फिर जवान ने मेरे सीने पर बूट रखा और मेरी पतलून उतार दी."
करीब दो दर्जन ऐसे बयान हैं जिनसे पता चलता है कि कैदियों के साथ अमानवीय और असंवेदनशील व्यवहार किया गया. कई बार तो हिरासत में रखे कैदियों को धमकी दी गई कि उनकी महिला रिश्तेदारों से बलात्कार किया जाएगा. कैदियों को लगातार पीटा जाता रहा. उनके धर्म का अपमान किया जाता रहा.
जवाबदेही तय करने की कोशिश
शिनर इन मामलों को सामने लाकर सरकार और सेना का असली चेहरा दिखाना चाहते हैं. ब्रिटेन की सरकार अब तक ज्यादातर ऐसे मामलों को सफाई देकर दबाने की कोशिश करती रही है. शिनर का दावा है कि जितनी बड़ी संख्या में उन्होंने सबूत जुटाए हैं उससे साफ है कि अमानवीय व्यवहार 'सुनियोजित' था. मानवाधिकारों पर यूरोपीय संघ के समझौते का हवाला देते हुए वह विस्तृत जांच की मांग कर रहे हैं.
ब्रिटेन के अखबार ऑब्जर्वर से बात करते हुए शिनर ने कहा कि सबूतों से यह साफ हो रहा है कि "हिंसा राज्य की कार्रवाई में शामिल है."
मनावाधिकार संगठन एमनेस्टी इंटरनेशनल के कार्यकर्ता कार्तिक राज भी शिनर से सहमत हैं, "दुर्व्यवहार के आरोप, बुरे बर्ताव और हिरासत में मौत के मामले, इनमें से कई आरोप नहीं हैं बल्कि साबित किए जा चुके तथ्य हैं. ये इतने विश्वसनीय हैं कि पूरे मामले की निष्पक्ष और विस्तृत जांच की जरूरत है."
डॉयचे वेले से बात करते हुए कार्तिक ने कहा, "यह ऐसा मामला है जिसे सुनियोजित मुद्दा समझा जाना चाहिए, इसे व्यक्तिगत नहीं मानना चाहिए."
मूसा का केस
धीरे धीरे मामले की सच्चाई सामने आ रही है. बाहा मूसा के केस से यह साबित भी हो रहा है. 26 साल के मूसा इराकी शहर बसरा के एक होटल में रिशेप्सनिस्ट थे. सितंबर 2003 में मूसा को हिरासत में लिया गया, जहां उनकी मौत हो गई. ब्रिटेन सरकार ने जांच रिपोर्ट में यह स्वीकार किया कि मूसा को कुल 36 घंटे हिरासत में रखा गया, इस दौरान 24 घंटे तक उनके मुंह को ढंका रखा गया और खूब पीटा गया. उनके बदन पर चोट के कम से कम 93 निशान थे. उनकी पसलियां फ्रैक्चर हुई और नाक टूट गई. रिपोर्ट के मुताबिक मूसा को खाना और पानी भी नहीं दिया गया, उन्हें डर, तनाव और अथाह दम घोंटने वाले हालात में रखा गया. जांच रिपोर्ट के अंत में कहा गया कि मूसा को लात मारकर मौत के मुंह में भेजा गया.
जांच रिपोर्ट के मुताबिक मूसा से पूछताछ के लिए कुछ ऐसे तरीकों का इस्तेमाल किया गया जो ब्रिटेन में 1970 के दशक की शुरुआत से ही गैरकानूनी है. कैदियों के साथ बर्ताव को लेकर यूरोपीय मानवाधिकार अदालत की आयरलैंड संधि के हिसाब से भी ये तरीके गैरकानूनी हैं. बीते साल दिसंबर तक ब्रिटेन दुर्व्यवहार के चलते 150 से ज्यादा इराकी कैदियों को 1.4 करोड़ पाउंड मुआवजा दे चुका है.
लेकिन इसके बावजूद दोषी जवानों को उचित दंड नहीं मिला. मूसा के मामले में सात जवानों पर युद्ध अपराध के आरोप लगे. छह को बरी कर दिया गया. सातवें को सेना ने बर्खास्त कर एक साल जेल की सजा दी गई. हालांकि उसे भी सजा नरसंहार और न्याय में बाधा डालने के दोष में नहीं दी गई. सिर्फ अमानवीय बर्ताव के लिए सजा दी गई. सुनवाई के दौरान जज रोनाल्ड मैकिनन ने कहा, "इनमें से किसी भी जवान पर किसी भी तरह के आरोप तय नहीं किए जा सकते क्योंकि उनके खिलाफ कोई सबूत ही नहीं है."
लेकिन अब शिनर की कोशिशों से उम्मीद जगी है कि इराक में यातनाएं देने वाले फौजियों के खिलाफ गंभीर जांच शुरू होगी और दोषियों को सजा मिलेगी. शिनर और वकीलों की टीम का कहना है कि ये तो वो यातनाएं हैं जो हिरासत में लिए कैदियों को दी गई, ब्रिटिश सेना ने सड़कों पर भी आम लोगों के साथ काफी बदसलूकी की. ऐसे आरोप सिर्फ ब्रिटिश सेना पर ही नहीं लग रहे हैं. इराक की अबू गरेब जेल में अमेरिकी सैनिकों ने भी ऐसी ही बर्बर यातनाएं दी.
रिपोर्ट: बेन नाइट/ओ सिंह
संपादन: ए जमाल