अब कर्नाटक में बीजेपी का नेतृत्व संकट
२७ जुलाई २०२१बी एस येदियुरप्पा के लिए यह प्रकरण इतिहास के दोहराए जाने जैसा है. 2011 में जब उन्हें भ्रष्टाचार का दोषी पाया गया था तब पार्टी के आदेश पर उन्हें इस्तीफा देना पड़ा था. इस बार अंतर यह है कि उन्होंने पार्टी आला कमान से मिल रहे संकेत को स्वीकार कर लिया और बिना आदेश मिले खुद इस्तीफा दे दिया.
अंतर जो भी हो, इस पूरे प्रकरण की वजह से पूरे दक्षिण भारत में बीजेपी के पहले मुख्यमंत्री के रूप में जाने जाने वाले येदियुरप्पा चौथी बार मुख्यमंत्री का कार्यकाल पूरा नहीं कर पाए. उन्हें पद से हटाए जाने के पार्टी के फैसले के पीछे कई कारण बताए जा रहे हैं.
अलिखित नियम
सबसे ज्यादा चर्चा उनकी उम्र को लेकर है. वह 78 वर्ष के हो गए हैं और बीजेपी के नेता पार्टी में पदों की जिम्मेदारी सौंपने के लिए 75 वर्ष की आयु सीमा को एक अलिखित नियम बताते रहे हैं. येदियुरप्पा ने खुद भी अपने एक संबोधन में इसकी चर्चा की.
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह और बीजेपी राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा का धन्यवाद करते हुए उन्होंने कहा, "पार्टी ने 75 वर्ष से ज्यादा आयु वाले किसी भी नेता को कोई पद नहीं दिया लेकिन मेरी इज्जत करते हुए उन्होंने मुझे दो साल तक मुख्यमंत्री रहने दिया."
हालांकि सवाल यह उठता है कि अगर येदियुरप्पा 2019 में 76 वर्ष की उम्र में मुख्यमंत्री पद सौंपे जाने के योग्य थे, तो फिर अचानक 78 वर्ष की आयु में अयोग्य कैसे हो गए. और वह भी कार्यकाल के बीच में. कर्नाटक की राजनीति पर नजर बनाए रखने वालों का मानना है कि असली कारण कुछ और है.
भ्रष्टाचार का बोझ
असली कारण को लेकर भी कई अटकलें हैं. मीडिया में आई कुछ खबरों में येदियुरप्पा के खिलाफ एक बार फिर भ्रष्टाचार के कई आरोप सामने आने की बात की गई है. कुछ ही सप्ताह पहले भ्रष्टाचार के एक पुराने मामले में कर्नाटक के लोकायुक्त द्वारा दायर समापन रिपोर्ट को एक विशेष अदालत ने खारिज कर दिया था.
इस विशेष अदालत में सिर्फ विधायकों और सांसदों के खिलाफ भ्रष्टाचार के आरोपों की सुनवाई होती है. इस मामले में येदियुरप्पा के खिलाफ मूल शिकायत 2013 में दर्ज की गई थी और कर्नाटक हाई कोर्ट ने दिसंबर 2020 में इस मामले में जांच के आदेश दिए थे.
विशेष अदालत ने अब लोकायुक्त के साथ जुड़े पुलिस विभाग को मामले में आगे जांच कर 21 अगस्त को रिपोर्ट पेश करने को कहा है. दिसंबर 2020 के बाद से येदियुरप्पा के खिलाफ भ्रष्टाचार के और भी पुराने मामलों ने तूल पकड़ ली है. इनमें से एक मामला 2011 का है, एक 2015 का और एक 2020 का.
पार्टी के लिए संकट
2011 वाला मामला तो सुप्रीम कोर्ट तक पहुंच गया था, लेकिन येदियुरप्पा सर्वोच्च अदालत से स्थगन आदेश लेने में सफल हुए थे. जानकारों का मानना है कि संभव है कि पार्टी ने भ्रष्टाचार के इतने सारे आरोपों का बोझ ढोने से बेहतर यही समझा कि मुख्यमंत्री से इस्तीफा ले लिया जाए.
हालांकि पार्टी के लिए कर्नाटक में येदियुरप्पा को हटा कर दूसरा मुख्यमंत्री नियुक्त करना आसान नहीं है. येदियुरप्पा राज्य की राजनीति पर बड़ा असर डालने वाले लिंगायत समाज से आते हैं. राज्य में करीब 17 प्रतिशत लोग लिंगायत समाज के माने जाते हैं और यह आबादी के हिसाब से राज्य में सबसे बड़ा समुदाय है.
इस समाज के राज्य में कई बड़े मठ हैं जिनका राजनीति पर बड़ा असर है. लगभग सभी मठ येदियुरप्पा का समर्थन करते हैं. कुछ ही दिन पहले इन सभी के मठाधीश येदियुरप्पा को समर्थन का प्रदर्शन करने के लिए उनके घर पर इकट्ठा भी हुए थे.