पुरुषों और महिलाओं के बीच बराबरी एक पीढ़ी पीछे
३१ मार्च २०२१मंच की ताजा रिपोर्ट आने से पहले पिछले साल तक यह अनुमान था कि पुरुषों और महिलाओं के बीच की खाई को भरने में 99.5 साल लग सकते हैं. अब अनुमान यह लगाया जा रहा है कि कोरोना वायरस की वजह से यह फासला करीब 36 साल और आगे बढ़ गया है. यानी इस खाई को पाटने में अब कम से कम 135.6 साल लग सकते हैं.
रिपोर्ट में अंतरराष्ट्रीय श्रम संगठन के हवाले से कहा गया है कि जहां पुरुषों की नौकरियां 3.9 प्रतिशत की दर पर गईं, महिलाओं के लिए यही दर पांच प्रतिशत रही. इसका आंशिक कारण ज्यादा महिलाओं का उन उद्योगों में काम करना भी है जिन पर तालाबंदी की ज्यादा चोट लगी थी.
मार्केट रिसर्च कंपनी इप्सॉस के आंकड़ों के मुताबिक महिलाओं पर स्कूल, क्रेच, क्लिनिक जैसे कई दूसरे संस्थान बंद होने का भी ज्यादा असर पड़ा, क्योंकि घर के काम, बच्चों की देखभाल और बुजुर्गों की जिम्मेदारी अधिकांश घरों में महिलाओं के कंधों पर ही आ पड़ी. इसके अलावा मंच की रिपोर्ट में यह भी कहा गया है कि तेजी से बढ़ती "भविष्य की नौकरियों" में महिलाओं की भागीदारी ऐतिहासिक रूप से कम है.
रिपोर्ट के मुताबिक क्लाउड कंप्यूटिंग में सिर्फ 14 प्रतिशत महिलाएं हैं, इंजीनियरिंग में 20 प्रतिशत, डाटा और आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस में 32 प्रतिशत. मंच की प्रबंधक निदेशक सादिया जाहिदी का कहना है, "महामारी ने घर और दफ्तर दोनों में लैंगिक बराबरी पर मूलभूत रूप से असर डाला है और सालों की प्रगति को पीछे धकेल दिया है. अगर हमें भविष्य की अर्थव्यवस्था को गतिशील बनाना है तो इसके लिए कल की नौकरियों में महिलाओं की भागीदारी बेहद जरूरी है."
स्वास्थ्य में 95 प्रतिशत लैंगिक फर्क को भर लिया गया है, लेकिन शिक्षा में फासले को भरने में अभी भी 14.2 साल लगेंगे. अभी तक सिर्फ 37 देश शिक्षा में अंतर को भर पाए हैं. आइसलैंड एक बार फिर लैंगिक बराबरी के मोर्चे पर सभी देशों से आगे पाया गया है. प्रांतों में पश्चिमी यूरोप सबसे आगे है, लेकिन वहां भी मौजूदा दर पर अंतर को भरने में 52.1 साल लगेंगे.
सबसे ज्यादा लैंगिक अंतर मध्य एशिया और उत्तरी अफ्रीका में है, जहां अंतर को भरने में 142.4 साल लगने का अनुमान है. इन प्रांतों में सिर्फ 31 प्रतिशत महिलाएं घर के बाहर काम करती हैं. सालाना वैश्विक लैंगिक अंतर रिपोर्ट का यह 15वां साल है. यह चार मानकों पर काम करती है - आर्थिक भागीदारी और अवसर, शिक्षा की उपलब्धि, स्वास्थ्य और राजनीतिक सशक्तिकरण.
सीके/एए (डीपीए)