क्यों महाराष्ट्र की नई सरकार राजनीति में एक नया प्रयोग है
२९ नवम्बर २०१९शिव सेना प्रमुख उद्धव ठाकरे ने महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री के रूप में शपथ ले तो ली है, लेकिन जिस गठबंधन सरकार के नेतृत्व का उन्होंने बीड़ा उठाया है वह महाराष्ट्र के लिए ही नहीं पूरे देश की राजनीति के लिए एक नया प्रयोग है. शिव सेना, कांग्रेस और एनसीपी के इस गठबंधन में एनसीपी कांग्रेस से ही निकली हुई पार्टी है, इसलिए दोनों पार्टियों की वैचारिक नींव एक ही है. दोनों पार्टियां पिछले 15 सालों से गठबंधन में भी हैं.
शिव सेना की वैचारिक पृष्ठभूमि इन दोनों से बिलकुल विपरीत है. जहां कांग्रेस और एनसीपी को लेफ्ट और सेंटर-लेफ्ट समझा जाता है, सेना को एक हिन्दू राष्ट्रवादी पार्टी के रूप में जाना जाता है. इसके अलावा सेना की राजनीति का एक और चेहरा है, महाराष्ट्र में प्रवासियों के मुकाबले राज्य के स्थानीय लोगों को ज्यादा अवसर के लिए संघर्ष करने वाली पार्टी का.
वास्तव में सेना का जन्म इसी मांग को ले कर 1966 में हुआ था, जब मुंबई में रहने वाले कार्टूनिस्ट बाल ठाकरे ने छह साल प्रवासी विरोधी कार्टून छापने के बाद अपनी मुहिम को राजनीतिक मोड़ देने का फैसला किया. उसके बाद से ठाकरे और उनकी सेना लगभग एक अर्ध शताब्दी तक महाराष्ट्र की राजनीति पर एक किंगमेकर के रूप में हावी रहे.
शिव सेना ने कई प्रवासी विरोधी अभियान छेड़े और इनमें शिव सैनिकों ने अक्सर मार-पीट और हिंसक गतिविधियों का भी सहारा लिया. सत्तर के दशक से सेना ने हिंदुत्व की राजनीति को अपनाना शुरू किया. 80 के दशक में वो राम मंदिर आंदोलन से भी जुड़ गई और बाबरी मस्जिद को गिराने के आंदोलन में बढ़ चढ़ कर हिस्सा लिया. तब से शिव सेना को उसकी धुर मुस्लिम विरोधी राजनीति के लिए जाना जाता है.
दिसंबर 1992 में मस्जिद गिराए जाने के बाद देश भर में जो दंगे हुए उनमें मुंबई के दंगों के लिए शिवसेना पर भी आरोप लगते हैं. इन दंगों में मुंबई में कम से कम 900 लोग मारे गए थे. बाल ठाकरे को 2000 में दंगों में उनकी कथित भूमिका के लिए हिरासत में भी लिया गया था पर जल्द ही उन्हें तकनीकी कारणों की वजह से छोड़ दिया गया.
आज समीक्षकों की दिलचस्पी यही देखने में है कि जिस पार्टी की ऐसी विरासत है उसके साथ कांग्रेस और एनसीपी कैसे रिश्ता निभा पाएंगी.
गठबंधन को भी ये अहसास है कि सबसे ज्यादा समीक्षा इसी सवाल पर होगी. इसीलिए गठबंधन का जो साझा न्यूनतम कार्यक्रम तैयार किया गया है, उसकी पहली ही लाइन में 'सेक्युलर' शब्द का जिक्र है. कार्यक्रम की प्रस्तावना की पहली लाइन कहती है, "गठबंधन के सहयोगी दल संविधान में प्रतिस्थापित 'सेक्युलर' मूल्यों को कायम रखने के प्रति प्रतिबद्धता व्यक्त करते हैं." दूसरी लाइन में लिखा है कि जब भी गठबंधन में कोई विवाद जन्म लेगा तो तीनों दल साथ बैठ कर उसपर विमर्श करेंगे और सहमति बनाएंगे.
इस शब्द पर सेना की व्यग्रता पहले ही दिन देखने को मिली, जब बतौर मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे ने अपनी पहली प्रेस वार्ता का सामना किया. वार्ता में उनसे पूछा गया कि क्या अब शिव सेना 'सेक्युलर' हो गई है? इस सवाल पर वो थोड़ा विचलित हुए और सवाल का जवाब सवाल से ही देते हुए बोले, "पहले आप मुझे बताइये कि 'सेक्युलर' का मतलब क्या होता है?" फिर कुछ क्षणों में अपने आप को संभालते हुए वो बोले, "जो संविधान में लिखा हुआ है, वही मतलब है."
इस एक घटना ने साबित कर दिया कि समीक्षकों की चिंता सही है. एकदम विपरीत विचारधारा की राजनीति करती आई इन तीनों पार्टियों के लिए अचानक एक साझा कार्यक्रम पर काम करना बहुत मुश्किल है. अगर ये सरकार सफल हो गई तो ये तीनों पार्टियां भारत की राजनीति में एक नया अध्याय लिख जाएंगी.
__________________________
हमसे जुड़ें: WhatsApp | Facebook | Twitter | YouTube | GooglePlay | AppStore