खाइए और मनमर्जी बिल बनाइए
२८ मार्च २०१३सेंट लुइस के पैनेरा ब्रेड कैफे में एक कटोरा भर के टर्की चिली का मजा आप अपनी इच्छानुसार दाम में ले सकते हैं. पैसे एक डॉलर देने हैं या पांच या फिर शायद सौ डॉलर यह इस बात पर निर्भर करता है कि उसे खाकर आपका दिल कितना खुश हुआ और आप खुशी खुशी कितने पैसे देना चाहते है. कम पैसे देने पर कोई बुरा भी नहीं मानेगा. दिल्ली के हौज खास विलेज में कुंजुम कैफे पर्यटन, फिल्म और फोटोग्राफी से लेकर कला के दूसरे क्षेत्रों के शौकीन लोगों की पसंदीदा जगह बनता जा रहा है. यहां आप अपनी पसंद के अनुसार जो चाहें उसमें हिस्सा ले सकते हैं और पीने के लिए कुछ चाहिए तो बेझिझक होकर पीजिए क्योंकि कुछ भी आपकी जेब पर महंगा नहीं पड़ेगा. आप अपनी मर्जी से जितने चाहें पैसे दें.
दरवाजे सबके लिए खुले
कुंजुम कैफे के मालिक अजय जैन ने डॉयचे वेले से बताया, "इस कैफे को शुरू करने के पीछे यही मकसद था कि लोग यहां आने से पहले अपनी जेब टटोल कर हिचकिचाएं नहीं. कैफे का मकसद है ज्यादा से ज्यादा लोगों को एक दूसरे से जोड़ना, फिर इसमें रेस्तरां का महंगा या सस्ता होना आड़े नहीं आना चाहिए." यहां नए कलाकारों की फिल्में भी दिखाई जाती हैं. इसके अलावा सैलानी अलग अलग जगह से जुड़े अपने अनुभव बांटते हैं. कैफे का अपना एक किताबों का संग्रह भी है. लोग यहां जितनी देर तक चाहें बैठ कर किताब पढ़ने के साथ चाय की चुस्की का मजा ले सकते हैं. कई बार नए गायक और संगीतकार साथ बैठ कर गाते बजाते हैं और चाय या कॉफी के बदले जितना दिल करता है उतना दे जाते हैं.
जैन ने बताया कि इस काम में उन्हें अभी तक मुनाफा ही हुआ है. कोई कॉफी के दस रुपये तो कोई पांच सौ से हजार तक भी दे जाता है. कुल मिलाकर औसत आमदनी मुनाफे भरी ही है. जैन कुंजुम की और शाखाएं भी खोलना चाहते हैं. वह इस रेस्तरां को शुरू करने से पहले अपनी यात्राओं के दौरान खींची तसवीरों को फेसबुक के जरिए बेचा करते थे. अब उनकी ये तसवीरें कैफे में ही बिकती हैं. उनका मानना है यह ऑनलाइन नहीं बल्कि असल जिंदगी के फेसबुक जैसा है जहां लोग एक दूसरे से जुड़ते हैं. फिर किसकी जेब में कम और किसकी जेब में ज्यादा पैसे हैं इसका कोई महत्व नहीं रह जाता.
खाने के साथ चैरिटी
सेंट लुइस में पैनेरा रेस्तरां की तीन साल पहले शुरुआत हुई थी. अब कैफे ने शहर में अपनी सभी शाखाओं में एक चैरिटी आइटम की शुरुआत की है, जिसके तहत टर्की चिली के लिए 5.89 डॉलर के दाम का सुझाव रखा गया है. इसकी लागत से ऊपर जो भी मुनाफा कैफे को होता है उसे उन ग्राहकों को खिलाने पर खर्च किया जा रहा है जो रेस्तरां में खाने का पूरा बिल भरने की स्थिति में नहीं हैं. पैनेरा के अनुसार यह सामाजिक जिम्मेदारी में हाथ बंटाने जैसा है. रेस्तरां को इससे टर्की चिली पर लगभग दुगना मुनाफा हो रहा है. पैनेरा के मालिक रॉन शेक कहते हैं कि कई ऐसे लोग भी आते हैं जिनके पास जेब में देने के लिए केवल तीन डॉलर या कभी कभी कुछ भी नहीं होता है. रेस्तरां पेट भरने में उनकी मदद कर पाता है.
कैलिफोर्निया विश्वविद्यालय के लीफ नेल्सन की 2010 में साइंस पत्रिका में छपी एक रिपोर्ट के अनुसार जब लोगों को पता चलता है कि उनका पैसा चैरिटी में जाएगा तो वे अक्सर ज्यादा पैसे दे जाते हैं. लेकिन उसी रिपोर्ट में यह भी कहा गया था कि इस तरह के चैरिटी कार्यक्रमों के चलते कई लोग पैसे खर्च करने से झिझकते भी हैं क्योंकि उन्हें पता नहीं होता कि उन्हें आखिर कितने पैसे देने चाहिए, और जो वे दे रहे हैं वह बहुत कम या बहुत ज्यादा तो नहीं. पैनेरा को होने वाले मुनाफे का पैसा कैफे में ही चलने वाले जॉब ट्रेनिंग कार्यक्रम के लिए भी होता है.
बढ़ता चलन
ब्रिटेन में भी अपनी मर्जी से पैसे देने वाले रेस्तरां का चलन बढ़ रहा है. लंदन का एमजेयू रेस्तरां इस तरह का एक और रेस्तरां हैं जहां आप अपनी मर्जी से ही पैसे देते है. फिर भी इसकी लोकप्रियता ने इसे लंदन के कुछ चुनिंन्दा रेस्तरां में शामिल कर दिया है. इसी तरह नॉर्थ लंदन का फ्रेंच रेस्तरां 'जस्ट अराउंड द कॉर्नर' और एडिनबर्ग का 'स्वीट मेलिंडास' भी इसी श्रेणी के रेस्तरां हैं जहां आप अपना बिल खुद बनाते हैं. रेस्तरां मालिकों का कहना है कि अगर आप ग्राहकों को खुश रखेंगे तो नुकसान का सवाल ही नहीं उठता. इसी श्रेणी में अमेरिका के सॉल्ट लेक शहर का 'वन वर्ल्ड एवरीबडी ईट' रेस्तरां दस साल पहले शुरू हुआ था. कैलिफोर्निया के वेगन कैफे में दिन के मेनु में कोई एक आइटम ऐसा रखा जाता है जिसके बदले पैसे आप दान की नीयत से देते हैं. इस तरह के ज्यादातर रेस्तरां मालिकों का कहना है कि उन्हें निर्धारित दामों वाले मेनु के मुकाबले ज्यादा मुनाफा होता है.
रिपोर्ट: समरा फातिमा (एपी)
संपादन: महेश झा