जर्मनी के इस गांव में एक हजार चीनी रहते हैं
१० अक्टूबर २०१८चीनी कारोबारी झांग जियांक्सिन जब जर्मनी के एक छोटे से गांव में अपने निवेश की जगह पर पहुंचे तो उन्हें लगा कि उनके साथ धोखा हुआ है. उन्हें और 11 दूसरे चीनी कारोबारियों में से हरेक को सवा लाख यूरो के बदले गांव में अपार्टमेंट का वादा किया गया था. साथ ही जर्मनी की ब्यूरोक्रैसी से निपटने में मदद का भरोसा भी. खासतौर से रेजीडेंसी परमिट और यहां कारोबार शुरू करने में. झांग ने समाचार एजेंसी एएफपी को बताया, "पहली बार मैं जब यहां आया तो घास इंसानों से लंबी थी...मैंने आईसीसीएन के सीईओ को बताया कि मुझे लग रहा है कि यह सब धोखा है." आईसीसीएन चीन और जर्मनी में सक्रिय एक प्लेसमेंट एजेंसी है. छह साल बाद अब उसी हॉपश्टेटेन वायर्जबाख में 1000 चीनी लोग हैं. गांव की कुल आबादी 3500 है और इन लोगों ने यहां अपनी जरूरतों को पूरा करने वाली दुकानें भी खोल ली हैं.
इन सभी लोगों को चीनी महिला कारोबारी जेन होउ और उनके जर्मन पार्टनर आंद्रेयास शोल्त्स ने यूरोप में सबसे बड़े चीनी कारोबार केंद्र बनाने के विचार पर रजामंद किया था. पश्चिमी जर्मनी के राइनलैंड प्लाटिनेट राज्य में जंगलों से घिरे इस गांव में 300 छोटी बड़ी चीनी फर्मों ने खुद को रजिस्टर कराया है. यहां अगले 5-7 सालों में 12 और इमारतें बन जाएंगी जिनमें 500 निवेशकों को ठिकाना मिलेगा. आज यह कल्पना से परे है कि इन सबकी शुरूआत होउ और शोल्त्स की फ्रैंकफर्ट एयरपोर्ट पर एक छोटी सी बातचीत से हुई थी.
शोल्त्स तब एयरपोर्ट पर एक दुकान संभालते थे. वो बताते हैं, "हमने बातचीत की और बिजनेस कार्ड एक दूसरे को दिए." दो हफ्ते बाद होउ ने उन्हें बताया कि वे एक जर्मन सेल्स रिप्रेजेंटेटिव को नौकरी पर रखना चाहते हैं जो दूतावास के साथ संपर्क भी बना सके. शोल्त्स बताते हैं, "तीन हफ्ते बाद मैंने दो बैग पैक किये, नौकरी को नोटिस दिया, अपना घर और अपनी चीजें या तो बेच दी या बांट दी और चीन चला गया."
चीन के शेंजेन में एक छोटे से दफ्तर से निकल कर दोनों चीनी कारोबारियों को जर्मनी आने के लिए तैयार करने में जुट गए. उनका कहना था कि जर्मनी में रजिस्टर की हुई कंपनी को कारोबार के लिए ज्यादा भरोसेमंद समझा जाएगा. शोल्त्स का कहना है, "जर्मन कंपनियों के लिए कभी भी शेंजेन या शंघाई में चीनी लिमिटेड कंपनियों के साथ व्यापार करना जोखिमभरा काम था क्योंकि यहां इस तरह के कानून नहीं हैं. दुर्भाग्य से ऐसे कई उदाहरण मिल जाएंगे जब पैसे गायब हो गये या आए ही नहीं, या फिर चीनी साझीदार ही गायब हो गया, या फोन पर कोई जवाब देने वाला ही नहीं मिला."
होउ को जर्मन शख्स के जरिए हॉपश्टेटेन वायर्जबाख में अमेरिकी सेना के चले जाने के कारण खाली पड़े घरों के बारे में पता चला. फ्रैंकफर्ट एयरपोर्ट से सड़क के रास्ते यहां पहुंचने में 90 मिनट लगते हैं और यहां के युवा शहरों की तरफ जा रहे थे इसलिए गांव की आबादी भी घट रही थी. यही वजह है कि जब आईसीसीएन ने इन खाली पड़े मकानों को चायनीज कारोबारियों को बेचने का प्रस्ताव रखा तो स्थानीय राजनेताओ ने भी इसे खुशी खुशी स्वीकार कर लिया.
गांव के शांत वातावरण की चीन के उभरते शहरों से तुलना करें तो दोनों दुनिया का फर्क नजर आएगा लेकिन यह उनके लिए एक और फायदे की बात साबित हुई. झांग कहते हैं, "यहां बहुत कम लोग हैं. मेरा दिल शांत रहता है." इसी तरह एक संभावित निवेशक यांग हई यहां की "साफ हवा और पानी" से बड़े प्रभावित हुए जो कि आप नल खोल कर सीधे पी सकते हैं.
यहां से कंपनियां चीन का सामान जर्मनी तक पहुंचाने के अलावा जर्मन सामान को चीन निर्यात भी कर रही हैं. जल्द ही यहां दवा कंपनियां अपने निर्माण केंद्र भी खोलने की तैयारी में हैं. झांग कहते हैं, "हमने कनाडा और अमेरिका को भी देखा लेकिन जर्मनी बेहतर है क्योंकि कनाडा बहुत ठंडा है और अमेरिका में बहुत कुछ अप्रत्याशित होता रहता है."
जर्मनी के कई इलाकों में विदेशियों के लिए विरोध प्रदर्शन हुए हैं लेकिन यहां आने वाले नए लोगों का गांव में रहने वाले स्थानीय लोग स्वागत करते हैं. मेडिकल उपकरण का कारोबार करने वाले गुई जिन कहते हैं, "यहां आने से पहले थोड़ी चिंता थी कि शायद स्थानीय लोग हमें ना स्वीकारें लेकिन वास्तव में वो काफी दोस्ताना हैं."
शोल्त्स मानते हैं कि इस तरह का प्रोजेक्ट जर्मनी में हर जगह नहीं चल सकता. इसके साथ ही वो यह भी बताते हैं कि यह गांव बहुत पहले से ही विदेशियों के साथ रहने का आदी है. जब अमेरिकी सेना यहां से गई तो नौकरियां और कारोबार के मौके भी कम हो गए. इससे आर्थिक नुकसान हुआ. अब तो हाल यह है कि जब भी कोई घर खाली होता है तो उसे खरीदने वाला कोई चीनी ही होता है.
यहां आने वाले चीनी लोगों की रोजमर्रा की जरूरतें, कार, फर्नीचर और दूसरी चीजें मुहैया कराने से स्थानीय कारोबार भी तेज हो गया है. इस बीच होउ और शोल्त्स ने आपस में शादी कर ली है और उनकी एक बेटी भी है. वो झांग परिवार के पड़ोस में ही रहते हैं.
एनआर/ओएसजे (एएफपी)