जर्मनी में रूसी लोगों के साथ बदसलूकी हो रही है
९ मार्च २०२२फ्रीडरीष का कहना है, "सबसे ज्यादा मुझे हैरानी तब हुई जब एक प्राथमिक स्कूल के टीचर ने रूसी छात्र को पूरी क्लास के सामने खड़े हो कर पुतिन की नीतियों से दूरी बनाने और अपना मत साफ करने के लिए कहा."
सामाजिक कार्यकर्ता फ्रीडरीष का जन्म रूस के ओम्स्क में हुआ और उनकी दादी यूक्रेन की हैं. उन्हें बीते दिनों में इस तरह की घटनाओं की कई शिकायतें मिली हैं. कोलोन के हाईस्कूल में एक रूसी छात्र को उसके सहपाठियों ने गिरा कर पिटाई की है. इसी तरह पोलैंड की एक महिला को हार्डवेयर की दुकान में रूसी समझ कर उसके साथ बदसलूकी की गई है. रूसी लोगों के साथ बस में, उनके काम की जगह या फिर स्कूल के मैदान में आए दिन दुर्व्यवहार की घटनाएं हो रही हैं.
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बढ़ रही है दुर्व्यवहार की घटनाएं
फ्रीडरीष का कहना है, "यह बहुत व्यापक पैमाने पर नहीं है" लेकिन घटनाओं की संख्या बढ़ रही है. जर्मनी में रूसी भाषा बोलने वाले करीब 60 लाख लोग रहते हैं. इनमें से ज्यादातर जर्मन नागरिक हैं, यानी जातीय रूप से ऐसे जर्मन जो रूस, यूक्रेन और कजाखस्तान जैसे सोवियत देशों से आए थे. वास्तव में ये लोग जर्मनभाषी मध्य यूरोपीय लोग हैं, जो अलग अलग कारणों से 18वीं शताब्दी के मध्य में रूसी साम्राज्य के कई इलाकों में जा कर बस गए. पश्चिमी जर्मनी में इन लोगों का पुनर्वास 1950 के दशक में शुरू हुआ, लेकिन करीब 20 लाख लोग 1990 के दशक में आए.
ये लोग आमतौर पर रुढ़िवादी पारिवारिक मूल्यों को मानते हैं. दूसरे प्रवासियों की तुलना में ये अच्छे पढ़े लिखे हैं और शायद ही इनमें कोई बेरोजगार है. सिर्फ बुजुर्गों को ही उनके लहजे से पहचाना जा सकता है. मीडिया का ध्यान "रूसी जर्मन" लोगों की तरफ तब गया, जब इनमें से एक बड़ी संख्या ने धुर दक्षिणपंथी राष्ट्रवादी लोकलुभावन पार्टी अल्टरनेटिव फॉर डॉयचलैंड का समर्थन किया.तो युद्ध शुरू होने से पहले ही रूसी लोगों पर एएफडी से सहानुभूति रखने वालों का ठप्पा लग चुका था. अब उन्हें पुतिन से सहानुभूति रखने वाला कहा जा रहा है. फ्रीडरीष कहते हैं, "इसका नतीजा यह हो रहा है कि ये लोग खुद को पीड़ित और ज्यादा अलग थलग महसूस करने लगे हैं."यह भी पढ़ेंः यूक्रेन युद्ध ने पाकिस्तानियों और भारतीयों को करीब ला दिया
सुपर स्टोर से रूसी सामान हटाए गए
रोमान फ्रीडरीष धाराप्रवाह रूसी और यूक्रेनी भाषा बोलते हैं. उनका कहना है कि वह सुपरमार्केट के मालिक से सिर्फ बात कर रहे थे, जिसने उनसे सलाह मांगी थी. ओबरहाउजन शहर में रूसी पोलिश दुकान पर हमला हुआ. वहां खिड़कियों के शीशे तोड़े गए और ग्राफिटी के जरिए अनाप शनाप लिख दिया गया. बहुत से दुकान मालिक समझ नहीं पा रहे हैं कि क्या उन्हें अपनी दुकानों से रूसी सामान हटा देना चाहिए.
यूरोप में 330 स्टोर की चेन चलाने वाली "मिक्स" मार्केट ने एलान किया है कि वह रूस में बने सामान नहीं बेचेगी. डीडब्ल्यू के एक लिखित सवाल के जवाब में कंपनी ने बताया है, "हमारे डंप्लिंग पेलमेनी न्यूरेम्बर्ग में बनते हैं, टवोरोग नाम का स्लोवाकी चीज पोलैंड से आता है और मीठा कंडेस्ड मिल्क हॉलैंड में बनता है. इसी तरह दूथ से बनने वाला सामान लिथुआनिया से आता है जबकि रूसी सॉसेज बवेरिया में बनता है. बीयर डेनमार्क की कार्ल्सबर्ग ब्रुअरी से आती है या फिर एनहायजर बुश से और हमारी पेस्ट्री और मिठाइयां यूक्रेन में बनती हैं.
रोमान फ्रीडरीष ने जर्मन राजनेताओं से रूसी समुदाय को बचाने की मांग की है क्योंकि लोगों का गुस्सा बढ़ रहा है. उनका कहना है, "जब हिंसा के लिए उकसाया जाता है, तो अभियोजन कार्यालय को तुरंत कार्रवाई करनी चाहिए. मॉस्को की हरकतों के लिए सारे रूसी लोगों को जिम्मेदार नहीं ठहराया जाना चाहिए. कानून का शासन लागू होना चाहिए, समाज को सक्रियता दिखा कर इस तरह की चीजों के खिलाफ निर्णायक रूप से लड़ना चाहिए."