ट्रेन ने सात हाथियों को कुचला
१४ नवम्बर २०१३राज्य के वन मंत्री हितेन बर्मन का कहना है कि उनकी याददाश्त में हाथियों से जुड़ी इससे बड़ी दुर्घटना नहीं है. उन्होंने अंदेशा जताया है कि मारे गए हाथियों की संख्या बढ़ सकती है. ट्रेन चपरामारी जंगलों से करीब 80 किलोमीटर प्रति घंटे की रफ्तार से गुजर रही थी, जब यह 40 हाथियों के झुंड से टकरा गई. बर्मन ने बताया कि ये हाथी रेलवे लाइन पार कर रहे थे.
उन्होंने कहा, "इसके बाद उनका झुंड तितर बितर हो गया. लेकिन फौरन रेलवे लाइन के पास लौट आया. बाद में वनरक्षकों और रेल कर्मचारियों को उन्हें वन में धकेलने में काफी वक्त लगा." बर्मन का कहना है कि उनके विभाग ने कई बार मांग की है कि इस इलाके से गुजरते हुए ट्रेनों की रफ्तार कम कर दी जाए, लेकिन किसी ने उनकी नहीं सुनी. जलपाइगुड़ी का यह इलाका पश्चिम बंगाल की राजधानी कोलकाता से करीब 670 किलोमीटर दूर है. भारतीय रेल कई जगहों पर वनों और पार्कों से होकर गुजरती है और इस इलाके में आए दिन हाथी इनसे कुचले जाते हैं. पिछले दिसंबर में उड़ीसा में ऐसे ही एक मामले में पांच हाथी मारे गए.
कदम का अभाव
हालांकि बार बार ऐसी घटनाओं के बाद भी कोई ठोस कदम नहीं उठाया गया. लगभग तीन साल पहले हाथियों के मारे जाने के बाद उस वक्त के केंद्रीय पर्यावरण और वन मंत्री जयराम रमेश ने इलाके का दौरा किया था और हाथियों पर निगरानी रखने के लिए 10 मीनार बनाने की बात कही थी और इसके लिए 25 लाख रुपये भी दिए गए. लेकिन इस साल जनवरी तक सिर्फ दो ऐसे टावर बन पाए.
केंद्रीय वन और पर्यावरण मंत्रालय ने इन घटनाओं पर रोक लगाने के उपाय सुझाने के लिए सात सदस्यों की समिति बनाई. बाद में विश्व वन्यजीव कोष (डब्ल्यूडब्ल्यूएफ) ने भी ट्रेनों की टक्कर से हाथियों की मौत की वजहों का पता लगाने के लिए एक सर्वेक्षण किया. रिपोर्ट में कहा गया कि 33 फीसदी हादसे सुबह, 42 फीसदी शाम और 17 फीसदी आधी रात के बाद हुए. उसकी सिफारिशों में पश्चिम बंगाल के डुआर्स इलाके से गुजरने वाली ट्रेनों की रफ्तार कम करने और हाथियों को बचाने के लिए सतर्कता बढ़ाने की बात कही गई. इन सिफारिशें पर ज्यादा काम नहीं हुआ.
रेल का शुभंकर भी हाथी
वन्यजीव कार्यकर्ता अनिमेश बासु का कहना है, "यह विडंबना है कि बंगाल के उत्तरी हिस्से में इस तरह हाथी ट्रेनों के नीचे आ रहे हैं. हाथियों को भारत में विरासत के जानवर घोषित किया जा चुका है और यहां तक कि भारतीय रेल का शुभंकर भी एक हाथी (भोलू) ही है." उनका दावा है कि 2004 से अब तक कम से कम 50 हाथी ट्रेनों से कुचल कर मारे जा चुके हैं. भारत में करीब 26,000 जंगली हाथी हैं.
ट्रेनों से हाथियों के कुचले जाने के मामलों को लेकर एलिफैंट फैमिली नाम की संस्था ने इसी साल ब्लड ऑन ट्रैक (पटरियों पर खून) नाम का अभियान चलाया और इसके समर्थन में करीब 15,000 लोगों ने रेल मंत्री को चिट्ठी लिखी. संस्था की वेबसाइट पर जानकारी दी गई है, "मामला संसद में उठा और विशेषज्ञों की टीम बना कर ट्रेनों की गति कम करने का काम चल रहा है. इसमें मालगाड़ी को रात में नहीं चलाने का भी प्रस्ताव है."
दो से साढ़े तीन मीटर बड़े भारतीय हाथियों को नई बस्तियों और हाथी दांत की वजह से शिकार बनना पड़ता है. अब ट्रेनों से कटने की वजह से उनकी मुश्किल और बढ़ गई है.
एजेए/एमजी (एएफपी)