योगी सरकार में एकमात्र मुस्लिम मंत्री कौन हैं
२८ मार्च २०२२यूपी के बलिया जिले के रहने वाले 31 वर्षीय दानिश आजाद अंसारी किसी भी सदन के सदस्य नहीं हैं और बीजेपी की छात्र इकाई अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद से जुड़े रहे हैं. मुसलमानों के सुन्नी समाज में पिछड़े वर्ग यानी पसमांदा समाज से आने वाले दानिश अंसारी को मंत्री बनाकर बीजेपी ने अपने ऊपर लगे उस धब्बे को धुंधला करने की कोशिश की है कि मुसलमान उससे दूर रहते हैं और वो भी मुसलमानों से दूरी बनाकर रहती है.
हालांकि बीजेपी के कई बड़े नेता अक्सर ऐसे बयान देते हैं कि उन्हें मुस्लिम समाज का वोट नहीं मिलता और विधानसभा चुनाव या फिर लोकसभा चुनाव में मुस्लिम उम्मीदवारों को टिकट ना देने के पीछे भी यही तर्क दिया जाता है लेकिन दानिश अंसारी का दावा है कि अब मुस्लिम समाज तेजी से बीजेपी की ओर आ रहा है और इस बार यूपी विधानसभा चुनाव में बड़ी संख्या में मुसलमानों ने बीजेपी को वोट दिया है.
पिछड़े मुस्लिम तबके को रिझाने की कोशिश
डीडब्ल्यू से बातचीत में दानिश अंसारी कहते हैं, "यूपी में एक युवा को मंत्री बनाया गया है इसके लिए बीजेपी और मोदी-योगी की तारीफ होनी चाहिए. सच्चाई यह है कि बीजेपी ही मुस्लिमों के बारे में वास्तव में सोचती है, बाकी पार्टियों ने सिर्फ इस्तेमाल किया है. सभी सरकारी योजनाओं का लाभ मुस्लिम तबके के लोगों को मिला है और यही वजह है कि मुसलमानों ने इस बार बड़ी संख्या में बीजेपी को वोट किया है. मुसलमान अब गुमराह नहीं हो रहा है. उसे भी पता है कि वास्तव में उनका हित किसके साथ है.”
दानिश अंसारी को मंत्री बनाकर यह संदेश देने की भी कोशिश की गई है कि सुन्नी मुसलमानों से भी बीजेपी अब नजदीकी बढ़ाने की कोशिश कर रही है. मंत्रिपरिषद से शिया समुदाय से आने वाले मोहसिन रजा को हटा कर दानिश अंसारी को मंत्री बनाए जाने से यह स्पष्ट संदेश है कि महज कुछ शिया समुदाय के लोग ही नहीं बल्कि सुन्नी और पसमांदा मुसलमान भी बीजेपी की ओर आकर्षित हो रहे हैं और बीजेपी भी उन्हें महत्व दे रही है.
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लखनऊ, बरेली, रामपुर जैसे जिलों में शिया मुसलमानों का एक वर्ग बीजेपी से जुड़ाव रखता रहा है लेकिन सुन्नी मुसलमानों में अब तक बीजेपी के प्रति किसी तरह का झुकाव नहीं देखने में आया है. बताया यह भी जा रहा है कि बीजेपी सरकार के दौरान जो कल्याणकारी योजनाएं चलाई गई थीं, मसलन, राशन, आवास इत्यादि का लाभ मुसलमानों के इसी वर्ग को हुआ है और इस वर्ग ने कहीं-कहीं बीजेपी को वोट भी दिया है. हालांकि इसे लेकर आशंकाएं भी जताई जा रही हैं लेकिन कुछ हद तक इसमें सच्चाई भी है.
चुनावों में बीजेपी का कोई मुस्लिम उम्मीवार नहीं
दानिश आजाद अंसारी बीजेपी अल्पसंख्यक मोर्चा के महामंत्री हैं और विद्यार्थी जीवन से ही बीजेपी की छात्र शाखा अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद से जुड़े रहे हैं. साल 2017 में यूपी में बीजेपी सरकार आने के बाद उन्हें भाषा समिति का सदस्य बनाया गया और वे मुस्लिम समाज, खासकर युवाओं में लगातार सक्रिय बने रहे. पिछली योगी सरकार में एकमात्र मुस्लिम मंत्री मोहसिन रजा थे और वो भी मंत्री बनते वक्त किसी भी सदन के सदस्य नहीं थे. बीजेपी ने इस बार भी विधानसभा चुनाव में एक भी मुस्लिम उम्मीदवार को टिकट नहीं दिया था. मोहसिन रजा पिछली सरकार में अल्पसंख्यक कल्याण, वक्फ और हज मंत्री थे, दानिश आजाद को भी यही विभाग सौंपे गए हैं.
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दानिश अंसारी को मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ का करीबी माना जाता है. उनके पक्ष में एक बात यह भी है कि वे पूर्वांचल से आते हैं और पूर्वांचल के मुसलमानों में बीजेपी की पैठ ना के बराबर है. हालांकि मुस्लिम राष्ट्रीय मंच के जरिए मुसलमानों को बीजेपी और संघ से जोड़ने की कोशिशें पिछले काफी समय से चल रही हैं लेकिन पूर्वांचल में अब तक इसका ज्यादा असर नहीं दिखा है. माना जा रहा है कि लखनऊ से पढाई करने वाले और बलिया के मूल निवासी दानिश अंसारी के माध्यम से बीजेपी अपने इस अभियान को धार में देने में कुछ हद तक सफल हो सकती है.
भावी चुनावों पर हैं निगाहें बीजेपी की
दरअसल, नरेंद्र मोदी के प्रधानमंत्री बनने के बाद बीजेपी जिस तरह से अपने राजनीतिक और सामाजिक दायरे को बढ़ा रही है, उसे देखते हुए यह स्पष्ट है कि वह इतने बड़े अल्पसंख्यक समुदाय को पूरी तरह से अपने से अलग नहीं रहने देगी. उत्तर प्रदेश की बात करें तो दलित और पिछड़ी जातियों का एक बड़ा हिस्सा साल 2014 के लोकसभा चुनाव से ही उसके साथ आ चुका है लेकिन मुस्लिम तबका अभी भी उससे दूरी बनाए हुए है. हालांकि मुसलमानों का शिया वर्ग अटल बिहारी वाजपेयी के समय से ही बीजेपी के प्रति कुछ हद तक हमदर्दी रखता था लेकिन बड़ा सुन्नी वर्ग उससे दूरी बनाए हुए था.
यूपी में योगी सरकार के दोबारा सत्ता में आने के बाद अब बीजेपी की निगाहें 2024 में होने वाले लोकसभा चुनाव पर हैं और वह अपना जनाधार बढ़ाने का अभियान जारी रखे हुए है और हर नए प्रयोग करने से पीछे नहीं हट रही है. ऐसा माना जा रहा है कि दानिश अंसारी को मंत्री बनाकर और उनके जरिए मुसलमानों के अति पिछड़े वर्ग को अपनी तरफ करने की यह उसकी दूरगामी रणनीति का हिस्सा है. यही नहीं, दलितों में जाटव समाज की नजदीकी भी बीजेपी के इसी अभियान का हिस्सा है.
बीजेपी ने दानिश आजाद अंसारी को मंत्री पद देकर साल 2024 के लोक सभा चुनाव से पहले ही कुछ नए राजनीतिक समीकरण गढ़ने की कोशिश की है. दानिश अंसारी मुस्लिम समुदाय में जिस अंसारी समाज से आते हैं, वह आर्थिक और सामाजिक रूप से पिछड़ा भले ही हो लेकिन संख्या बल में ज्यादा होने के बावजूद राजनीति में इस वर्ग की भागीदारी बहुत कम है. यदि इस समाज को बीजेपी अपने साथ जोड़ने में कुछ हद तक भी कामयाब हो पाती है तो निश्चित तौर पर यह उसके लिए गेमचेंजर साबित हो सकता है.