बेहतर दुनिया का संघर्ष
२६ सितम्बर २०१३संयुक्त राष्ट्र की महासभा में इस साल सीरिया युद्ध या ईरान के साथ परमाणु विवाद जैसे मुद्दे प्रमुख हैं, जिनपर 193 सदस्य देशों के प्रतिनिधि बातचीत कर रहे हैं. साथ ही उनके बीच एक और बहस चल रही है.यह बहस है 2000 में तय आठ सहस्राब्दी लक्ष्यों पर अमल का लेखा जोखा करने और उसे आगे चलाने पर, जिसके साथ संयुक्त राष्ट्र गरीब देशों में 2015 तक विकास को बढ़ावा देना चाहता था.
उस समय सदस्य देशों ने गरीबों की तादाद आधी करने, सबों को प्राथमिक शिक्षा की गारंटी देने, पांच साल से कम उम्र के बच्चों में मृत्यु दर को दो तिहाई घटाने और साफ पेयजल से वंचित लोगों की संख्या आधी करने जैसे लक्ष्य तय किए थे. इनका खर्च विकास सहायता के जरिए उठाने का इरादा था.
सफलता और विफलता
जहां तक सहस्राब्दी लक्ष्यों की सफलता का सवाल है, उसके लिए जिम्मेदार संयुक्त राष्ट्र अवर महासचिव डेविड मेलोन ने बताया कि नतीजा मिलाजुला बताया. उन्होंने कहा कि सभी लक्ष्यों को 2015 तक पूरा करना मुश्किल होगा, लेकिन भारी गरीबी के खिलाफ संघर्ष जैसे कुछ लक्ष्यों को सफलता के साथ पूरा कर लिया गया है. मेलोन का कहना है कि हर दिन सवा डॉलर की तय सीमा से कम पर जीवन बसर करने को मजबूर लोगों की तादाद उम्मीद के मुताबिक आधी हो गई है.
हालांकि राहत संस्थाएं सफलता के संदेश को सही परिप्रेक्ष्य में डालते हैं. जर्मनी राहत संस्था वेल्ट हुंगरहिल्फे के वोल्फगांग यामान का कहना है कि हालात सुधरने की वजह एशिया का आर्थिक विकास है. वे कहते हैं, "सहारा के दक्षिणवर्ती अफ्रीका में स्थिति अभी भी नाटकीय है. वहां अमीरों और गरीबों के बीच खाई बढ़ रही है." अभी भी 90 करोड़ लोग भूखमरी का शिकार हैं, विश्व की आबादी का सातवां हिस्सा.
डेविड मेलोन एड्स के खिलाफ संघर्ष में भी सकारात्मक संकेतों की बात करते हैं. संयुक्त राष्ट्र 2015 तक उसके प्रसार पर रोक लगाकर बीमारी को कम करना चाहता था. हालांकि अब पहले के मुकाबले कम लोग संक्रमित हो रहे हैं, यह साफ नहीं है कि क्या संयुक्त राष्ट्र यह लक्ष्य पूरा कर पाएगा. शिक्षा के मामले में भी विश्व संस्था अपने को सही रास्ते पर बता रही है, लेकिन मेलोन स्वीकार करते हैं कि भले ही ज्यादातर बच्चे स्कूल जा रहे हों, अभी भी 6 करोड़ बच्चे इस संभावना से वंचित हैं. वे भविष्य में शिक्षा के स्तर को बेहतर बनाने पर भी जोर देते हैं.
पीने का पानी
संयुक्त राष्ट्र का कहना है कि लोगों को साफ पानी मुहैया कराने का एक महत्वपूर्ण लक्ष्य पिछले साल ही पूरा हो गया. दुनिया भर की 90 फीसदी आबादी यानि छह अरब लोगों को अब पीने का साफ पानी मिल रहा है. यह 1990 के मुकाबले 2 अरब ज्यादा है. इसके लिए भी विकास सहायता से ज्यादा एशिया का आर्थिक विकास जिम्मेदार है. चूंकि वहां के शहर आधुनिक और साफ सुथरे बन रहे हैं, बिना किसी बाहरी मदद के साफ सफाई की स्थिति सुधर रही है.
मेलोन कहते हैं कि सहायता राशि देने की परंपरा पर विचार करने का समय आ गया है. "ये मदद सार्थक है, लेकिन निर्णायक नहीं." उनका कहना है कि ज्यादा जरूरी यह है कि संबंधित देशों में विकास के लक्ष्यों पर सहमति होनी चाहिए. दुनिया भर में यह विचार जोर पकड़ रहा है. पूर्व जर्मन राष्ट्रपति हॉर्स्ट कोएलर ने डॉयचे वेले से कहा कि द्विपक्षीय विकास सहयोग पुराना नहीं पड़ा है, "लेकिन उसे पुराने विचारों से मुक्त करना होगा." कोएलर उस रिपोर्ट के लेखकों में शामिल हैं जिसमें 2015 के बाद भी सहस्राब्दी लक्ष्यों को जारी रखने की वकालत है. महासभा ने इस पर अगले साल सितंबर से बातचीत शुरू करने का फैसला किया है.
संयुक्त राष्ट्र का नया एजेंडा भविष्य में सिर्फ गरीबी, महामारी या शिक्षा जैसे सामाजिक कारकों पर ही आधारित नहीं होगा. कोएलर कहते हैं कि उसका दृष्टिकोण व्यापक है. इसमें बेहतर व्यापार और वित्त व्यवस्था के साथ साथ ग्लोबल वार्मिंग को रोकने के वाली पर्यावरण संरचना जैसे मुद्दों को भी शामिल किया जाएगा. इन लक्ष्यों के लिए कारोबारियों और आर्थिक नेताओं से समर्थन लेने का भी इरादा है. कोएलर कहते हैं कि विश्व में सामाजिक सुरक्षा के महत्व को नजरअंदाज नहीं किया जाना चाहिए. 2030 तक 40 करोड़ ऐसे युवा लोग होंगे, जो रोजगार और कमाई की मांग करेंगे. "यदि हम उन्हें संभावना नहीं देंगे तो वे विद्रोह कर देंगे."
रिपोर्ट: हाइमो फिशर/एमजे
संपादन: निखिल रंजन