गरीबी पर संयुक्त राष्ट्र सम्मेलन आज से
२० सितम्बर २०१०शिखर भेंट में विश्व भर के 125 सरकार व राज्य प्रमुख भाग ले रहे हैं जो तीन दिनों के सम्मेलन में दस साल पहले तय लक्ष्यों पर हुए कामकाज का लेखा जोखा करेंगे. जर्मन चांसलर अंगेला मैर्केल मंगलवार को शिखर भेंट में बोलेंगी. जर्मन सरकार ने 2000 के बाद से विकास मंत्रालय का बजट 3.6 अरब से बढ़ाकर 6 अरब यूरो कर दिया है.
शिखर सम्मेलन में भाग लेने वाले नेताओं में जर्मन चांसलर के अलावा अमेरिकी राष्ट्रपति बराक ओबामा, चीन के प्रधानमंत्री वेन च्यापाओ और ईरानी राष्ट्रपति महमूद अहमदीनेजाद भी होंगे. वे समय से पीछे चल रहे सहस्राब्दी लक्ष्यों को पटरी पर लाने की अपनी अपनी रणनीति पेश करेंगे.
अधिकांश विशेषज्ञों का कहना है कि तय किए आठ लक्ष्यों में किसी को भी पूरा करना असंभव होगा. संयुक्तराष्ट्र महासचिव बान की मून सहस्राब्दी लक्ष्यों को पूरा करने के अभियान को नया जीवन देने के लिए और अधिक धन तथा राजनीतिक इच्छा की जरूरत है. ऐसी संभावना है कि शिक्षा पर खर्च के लिए यूरोपीय संघ एक अरब डॉलर और वर्ल्ड बैंक द्वारा 75 करोड़ डॉलर देने का एलान करेंगे. लेकिन अगले पांच वर्षों में और 120 अरब डॉलर का इंतजाम करना करना होगा. आर्थिक संकट ने पैसे जुटाने को मुश्किल बना दिया है.
सम्मेलन से पहले जर्मन चांसलर अंगेला मैर्केल ने भूखमरी और गरीबी के खिलाफ संघर्ष में अधिक सक्रियता की मांग की है. उन्होंने कहा कि यह अच्छी खबर है कि पिछले साल भूखमरी से पीड़ित लोगों की संख्या में 10 करोड़ की कमी हुई है लेकिन फिर भी सब कुछ बहुत धीमा हो रहा है. शिखर भेंट में जर्मन चांसलर विकास सहायता में बदलाव की वकालत करेंगी. उनका कहना है कि विकास सहायता को नतीजों के साथ जोड़ा जाना चाहिए. यदि कोई लक्ष्य पूरा नहीं होता है तो कम सहायता दी जानी चाहिए.
दस साल पहले विश्व समुदाय ने तथाकथिक सहस्राब्दी लक्ष्य तय किया था जिसमें 2015 तक गरीबों की संख्या में आधी कटौती की बात कही गई थी. इसके अलावा शिक्षा के क्षेत्र में बेहतर मौके उपलब्ध कराने तथा मां और शिशुओं की मृत्यु दर में भारी कमी का लक्ष्य भी तय किया गया था. गैर सरकारी संगठनों का आरोप है कि औद्योगिक देश अभी भी पर्याप्त विकास सहायता नहीं दे रहे हैं. जर्मनी 2010 से अपनी विकास सहायता बढ़ाकर सकल राष्ट्रीय उत्पादन का 0.4 फीसदी करने जा रहा है. लेकिन 2014 तक की बजट योजना में विकास मंत्रालय के बजट में फिर से कटौती होगी. औद्योगिक देशों ने हर साल जीडीपी का 0.7 फीसदी विकास सहायता में देने का वायदा किया था.
रिपोर्ट: एजेंसियां/महेश झा
संपादन: एन रंजन