भारत में फिल्मों की नए श्रेणी बनाने की तैयारी
६ फ़रवरी २०११सेंट्रल बोर्ड ऑफ फिल्म सर्टिफिकेशन (सीबीएफसी) की प्रमुख का कहना है, "मुझे लगता है कि बोर्ड को नई श्रेणी बनानी चाहिए. 15 प्लस की यह श्रेणी यू/ए और ए श्रेणी के बीच में होनी चाहिए क्योंकि 12 और 15 साल की उम्र में बहुत बड़ा फर्क होता है. इस बारे में प्रस्ताव संसद के सामने रखना जाना है लेकिन मुझे लगता है कि ज्यादातर निर्माता इस बदलाव से खुश होंगे."
फिलहाल भारत में फिल्मों को चार श्रेणियों में बांटा गया है. ये हैं यू, यू/ए, ए और एस. इनमें यू श्रेणी की फिल्मों को हर उम्र के दर्शक देख सकते हैं. यू/ए श्रेणी की फिल्में भी हर उम्र के दर्शकों के लिए होती हैं लेकिन हो सकता है कि उनके कुछ दृश्य 12 साल के कम उम्र के बच्चों के लिए ठीक न हों. वहीं ए श्रेणी की फिल्में 18 साल के ज्यादा उम्र के दर्शकों के लिए होती हैं. एस श्रेणी की फिल्म विशेष दर्शकों के लिए होती हैं, मसलन डॉक्टरों के लिए.
प्रकाश झा, सुधीर मिश्रा और मधुर भंडारकर जैसे फिल्मकारों की फिल्मों की जिन श्रेणियों में रखा जाता है, वे उनसे खुश नहीं रहे हैं, लेकिन 2004 में सेंसर बोर्ड की प्रमुख बनी टैगोर का कहना है कि बदलते वक्त के साथ बदलाव की कोशिश की जा रही है. वह कहती हैं, "मैं इस बात से इनकार नहीं करती हूं कि मेरे अध्यक्ष रहते बोर्ड काफी लचीला हो गया. दर्शक भी बदले हैं. उनकी सोच में भी बदलाव आया है और यही बात सिनेमा पर भी लागू होती है."
बोर्ड ने ओमकारा, कमीने, इश्किया और नो वन किल्ड जैसिका जैसी विवादास्पद फिल्में बिना किसी कट के पास की हैं हालांकि उन्हें ए यानी व्यस्क दर्शकों की श्रेणी में रखा गया. टैगोर फिल्म में कट के खिलाफ हैं क्योंकि काटे गए सीन से फिल्म बर्बाद होती जाती है. वह कहती हैं, "हम कोशिश करते हैं कि फिल्मों पर कैंची न चलाई जाए. लेकिन कभी कभी प्रोड्यूसर हमारे पास आते हैं और कहते हैं कि वह ए सर्टिफिकेट से खुश नहीं हैं.
अगर नो वन किल्ड जैसिका के प्रोड्यूसर हमसे कहें कि वे यू/ए सर्टिफेकेट चाहते हैं तो फिर हमें फिर हमें गालियों वाले सीन काटने होंगे और इससे रानी मुखर्जी का किरदार बर्बाद हो जाएगा. अगर आपको यूए सर्टिफिकेट चाहिए तो फिर कट्स के लिए भी तैयार रहना होगा और कट्स से फिल्म बर्बाद हो जाती है."
मशहूर अदाकारा रहीं 66 वर्षीय टैगोर उन फिल्मकारों से सहमत नहीं हैं जो सेंसर बोर्ड पर सवाल उठाते हैं. वह कहती हैं कि सिनेमा के मानकों को बनाए रखना बहुत जरूरी है क्योंकि भारत में अलग अलग इलाकों में अलग अलग संवेदनशीलताएं होती हैं.
रिपोर्टः एजेंसियां/ए कुमार
संपादिनः एस गौड़