सविता की मौत से गर्माया आयरलैंड
१७ नवम्बर २०१२केनी ने कहा कि उनकी सरकार रिपोर्ट पढ़ेगी. उन्होंने संकेत दिया कि सरकार इस कानून पर फैसला लेने में समय लेगी. 31 साल की सविता हलप्पनवर की हाल ही में मौत हो गई थी क्योंकि डॉक्टरों ने गर्भ में बच्चे की मौत के बाद भी गर्भपात करने से इनकार कर दिया था. इसके बाद सविता के शरीर में जहर फैल गया और तीन दिन बाद अस्पताल में उनकी मौत हो गई.
इसके बाद आयरलैंड में गर्भपात कानून को लेकर विरोध हुए. भारत ने भी आयरलैंड के राजदूत को समन कर अपनी चिंता जताई और उम्मीद जताई कि मामले की जांच स्वतंत्र होगी.
आयरलैंड के स्वास्थ्य मंत्री जेम्स रेली ने भी संकेत दिए कि सरकार गर्भपात से जुड़े कानून के बारे में तुरंत कोई फैसला नहीं लेगी और गलत निष्कर्ष नहीं निकालेगी क्योंकि इसके नतीजे गंभीर हो सकते हैं. उन्होंने माना कि गर्भपात के अधिकार पर कैथोलिक देश लंबे समय से बंटा हुआ है लेकिन साथ ही उन्होंने यह भी कहा कि इस संवेदनशील मुद्दे से निबटने के लिए सरकार प्रतिबद्ध है.
आयरलैंड में एमनेस्टी इंटरनेशनल के कार्यकारी निदेशक कोम ओ गोरमन ने कहा, "एक के बाद एक आयरलैंड की सरकारें अधिकार कैसे सुरक्षित रखे जा सकते हैं, इसमें विफल रही हैं. इस कारण आयरलैंड की महिलाएं बहुत ही कमजोर स्थिति में पहुंच गई हैं. सरकार को इस मुद्दे पर स्पष्टता तेजी से सुनिश्चित करनी चाहिए."
एमनेस्टी इंटरनेशनल सचिवालय की वरिष्ठ नीति सलाहकार मारियाने मोलमान के मुताबिक, "अंतरराष्ट्रीय मानवाधिकार संगठन काफी समय से आयरलैंड की आलोचना करते हैं क्योंकि वह अंतरराष्ट्रीय मानवाधिकार मूल्यों पर आधारित घरेलू कानून लाने में विफल रहा है. जबकि मानवाधिकारों की यूरोपीय अदालत ने इस मामले में साफ फैसला किया हुआ है."
भारतीय जनता पार्टी में महिला धड़े की अध्यक्ष स्मृति ईरानी सहित कई लोगों ने आयरलैंड के दूतावास के सामने विरोध प्रदर्शन किए. उन्हें चार सदस्यों वाले प्रतिनिधिमंडल के साथ राजदूत से मिलने की अनुमति भी दी गई. उन्होंने कहा, "आयरिश राजदूत ने हमें आश्वासन दिया कि मामले की जांच में अंतरराष्ट्रीय विशेषज्ञों को बुलवाया जा सकता है. हमने उन्हें कहा कि सविता के पति को भी इसका हिस्सा होना चाहिए. राजदूत ने माना कि (आयरलैंड पर) भारी दबाव है. सिर्फ भारत का ही नहीं बल्कि हलप्पनवर की मौत के मामले में दुनिया भर से." वहीं भारत के विदेश मंत्री सलमान खुर्शीद ने डेन्टिस्ट की मौत पर दुख जताया है.
लंबित कानून
आयरलैंड में मौजूद डॉयचे वेले संवाददाता जॉन सेपुल्वाडो बताते हैं कि 20 साल से सरकार इस बात पर कोई फैसला नहीं ले पाई है कि गर्भावस्था में मां के जीवन को खतरा होने पर क्या फैसला किया जाए. 1992 में एक्स केस नाम से मशहूर मामले की सुनवाई के दौरान आयरलैंड के सुप्रीम कोर्ट ने फैसला दिया था कि अगर मां का जीवन खतरे में हो तो उन्हें गर्भपात का अधिकार मिलना चाहिए. अदालत ने इस फैसले का कारण संविधान बताया था. लेकिन सरकारों ने अभी तक इसे मानने से इनकार किया है. हाल ही में आयरलैंड की संसदीय कमेटी द डेल ने सितंबर में गर्भपात के बारे में सरकारी रिपोर्ट जारी करने निलंबित कर दिया.
सरकार के रूढ़ीवादी धड़े को मंजूर नहीं कि जनता गर्भपात के मुद्दे पर बहस करे जबकि जनता दूसरे विवादास्पद कानून चिल्ड्रन्स रेफरेंडम पर मतदान करने वाली है.
सुप्रीम कोर्ट के फैसले को संहिता बनाने के लिए जरूरी है कि सरकार अबॉर्शन रिपोर्ट जारी करे. फिलहाल आयरलैंड के अस्पतालों का प्रबंधन तय करता है कि गर्भपात किया जाए या नहीं.
च्वाइस आयरलैंड नाम की संस्था की प्रवक्ता सिनेद अहेर्न कहती हैं, “गर्भपात के अधिकारों को साफ करने में किसी भी तरह की देर की सरकार के लिए सफाई देना मुश्किल है. देश में इस मुद्दे पर गहरी चुप्पी और दाग है. और अब तो यह राजनीतिक एजेंडा में शामिल हो गया है.“
गहरा मतभेद
सरकार के कई वरिष्ठ अधिकारियों ने कहा कि अबॉर्शन रिपोर्ट को जल्द ही सार्वजनिक किया जाएगा. डेल के सदस्यों को यह रिपोर्ट मंगलवार की शाम दी गई. हलप्पनवर की रिपोर्ट सार्वजनिक होने से ठीक पहले. “इस मौत के कारण रिपोर्ट में तेजी दिखाई जाएगी. पहले हमें कहा गया था कि इसे जारी करने का कोई तय वक्त नहीं है. लेकिन अब क्या हो रहा है, इस घटना के कारण कई गंभीर सवाल उठे हैं."
आयरलैंड की सीनेटर जिलियान फान टर्नहोट लंबे समय से बच्चों के अधिकारों के लिए काम कर रही हैं. वह कहती हैं कि इससे पहले उन्होंने कभी गर्भपात के मुद्दे पर सार्वजनिक टिप्पणी नहीं की. लेकिन वह मानती हैं कि आयरलैंड में इस पर गहरा मतभेद है.
पिछले सालों के सर्वे से पता चलता है कि आयरलैंड में इस मुद्दे पर काफी बदलाव हुए हैं. लेकिन इस पर मतभेद बना हुआ है कि इसे वैध और देश में संभव बनाया जाना चाहिए या नहीं. सीनेटर फान टर्नहोट के मुताबिक हर साल 6000 से ज्यादा आयरिश महिलाएं ब्रिटेन जा कर गर्भपात कराती हैं, "मैं निजी तौर पर गर्भपात का समर्थन नहीं करती हूं. लेकिन गैलवे (आयरलैंड का शहर) में जो हुआ वह कभी नहीं होना चाहिए था. एक महिला जो उस स्थिति में है, उसे चुनाव का मौका मिलना चाहिए."
रिपोर्टः आभा मोंढे (पीटीआई, एएफपी)
संपादनः अनवर जे अशरफ