मद्रास हाई कोर्ट ने सुझाए सीबीआई से जुड़े सुधार
१८ अगस्त २०२१सीबीआई को पूर्ण रूप से स्वतंत्र बनाने पर बहस दशकों से चल रही है. अब इसी बहस को आगे ले जाते हुए मद्रास हाई कोर्ट की मदुरई पीठ ने केंद्र सरकार को कुछ निर्देश दिए हैं. पीठ ने कहा है कि इस आदेश का उद्देश्य "पिंजरे में बंद तोते को आजाद करना" है.
2013 में सुप्रीम कोर्ट ने सीबीआई को एक "पिंजरे में बंद तोता" बताया था और मद्रास हाई कोर्ट ने उन्हीं शब्दों को दोहराया है. मदुरई पीठ ने कहा कि सीबीआई देश की प्रमुख जांच संस्था है और जनता को उस पर बहुत भरोसा है.
मिले वैधानिक दर्जा
पीठ ने 12 निर्देश दिए, जिनमें से प्रमुख हैं - सीबाई को वैधानिक दर्जा देने के लिए जल्द एक नया कानून लाया जाए, उसे चुनाव आयोग और सीएजी की तरह स्वतंत्र बनाया जाए, उसके लिए बजट में अलग से आवंटन हो.
इसके अलावा उसके निदेशक को केंद्र सरकार के सचिव जैसी शक्तियां दी जाएं, वो डीओपीटी की जगह सीधा प्रधानमंत्री या किसी मंत्री को सीधा रिपोर्ट करे और सीबीआई के पुनर्गठन और मूल सुविधाएं बढ़ाने के मामलों में डीओपीटी छह सप्ताह के अंदर फैसला ले.
पीठ ने सीबीआई से कहा कि वो छह सप्ताह के अंदर उसके विभागों और अधिकारियों की संख्या को बढ़ाने के लिए भी सरकार को एक विस्तृत प्रस्ताव दे. केंद्र ने अभी तक इस फैसले पर अपनी प्रतिक्रिया नहीं दी है. 2019 में केंद्र सरकार ने संसद में दिए एक बयान में कहा था कि सीबीआई में आमूलचूल परिवर्तन लाने की उसकी अभी कोई योजना नहीं है.
राजनीतिक हस्तक्षेप से मुक्ति
सीबीआई का गठन अप्रैल 1963 में एक प्रस्ताव के पारित होने के साथ हुआ था. संस्था को उसकी शक्तियां 1946 के दिल्ली विशेष पुलिस स्थापना अधिनियम से मिलती हैं. 1998 में विनीत नारायण बनाम केंद्र सरकार मामले में सुप्रीम कोर्ट ने संस्था के निदेशक की नियुक्ति को लेकर नई व्यवस्था बनाई थी.
लेकिन 2017 में निदेशक पद को लेकर संस्था के दो उच्च अधिकारियों के बीच हुई सार्वजनिक लड़ाई के बाद स्पष्ट हो गया कि अभी भी निदेशक की नियुक्ति की प्रक्रिया में सुधार की जरूरत है.
सीबीआई पर अक्सर केंद्र में सत्ता में बैठी पार्टी के इशारों पर काम करने के आरोप लगते हैं. राजनीतिक हस्तक्षेप से प्रभावित होने के आरोप से खुद को मुक्त करना संस्था के लिए सबसे बड़ी चुनौती है. देखना होगा कि इस दिशा में मद्रास हाई कोर्ट के निर्देशों का क्या असर होता है.