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सुप्रीम कोर्ट का फैसला, निराधार नहीं है आधार

मारिया जॉन सांचेज
२६ सितम्बर २०१८

सुप्रीम कोर्ट ने आधार कार्ड योजना को तो संवैधानिक घोषित कर दिया है लेकिन उसके प्रावधानों पर रोक लगा दी है और आम नागरिक को कुछ राहत देते हुए उसके दुरुपयोग को रोकने के उद्देश्य से महत्वपूर्ण निर्देश भी दिए हैं.

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Indien Aadhar Card biometrische Personen-Indentifizierung
तस्वीर: picture-alliance/NurPhoto/R. Shukla

आधार कार्ड को ले कर पांच-सदस्यीय संविधान पीठ के भीतर इस पर पूरी तरह से एक राय नहीं बन पायी और जस्टिस धनंजय यशवंत चंद्रचूड़ ने चार न्यायाधीशों की राय से पूर्ण असहमति जताते हुए आधार संबंधी कानून को पूरी तरह से असंवैधानिक माना. यदि भविष्य में कभी किसी वृहत्तर संविधान पीठ ने इस प्रश्न पर पुनर्विचार किया, तब उनकी राय और उसे पुष्ट करने के लिए दिए गए कानूनी तर्क एक बार फिर महत्वपूर्ण हो उठेंगे. लेकिन अभी तो बहुमत की राय को ही देश का कानून माना जाएगा.

प्रधान न्यायाधीश जस्टिस दीपक मिश्र, जस्टिस एएम खानविलकर, जस्टिस एके सीकरी और जस्टिस अशोक भूषण ने आधार कानून को संविधानसम्मत मानते हुए भी उसके अनेक प्रावधानों को रद्द कर दिया है, जबकि जस्टिस चंद्रचूड़ ने इसे संसद में "धन विधेयक" की तरह पारित किए जाने को संविधान के नाम पर किया गया फ्रॉड बताया है, जो अपने आप में बहुत गंभीर और कड़ी टिप्पणी है.

बहरहाल अब सुप्रीम कोर्ट द्वारा दी गयी व्यवस्था के तहत पैन कार्ड और आधार कार्ड को आपस में जोड़ना और आयकर रिटर्न भरने के लिए आधार का होना अनिवार्य है. सरकार द्वारा दी जाने वाली सब्सिडी और अन्य लाभों के लिए भी आधार अनिवार्य कर दिया गया है लेकिन निजी कंपनियां इसके लिए नागरिकों को बाध्य नहीं कर सकेंगी.

सर्वोच्च अदालत ने सरकार को आगाह किया है कि वह इन सब्सिडियों और लाभों का दायरा अधिक न बढ़ाए. अब मोबाइल फोन के लिए नया सिम कार्ड लेने, बैंक में नया खाता खोलने, स्कूल में प्रवेश लेने और जेईई, सीबीएसई तथा यूजीसी की परीक्षाओं में बैठने के लिए आधार कार्ड की कोई जरूरत नहीं रह गयी है. लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने यह विकल्प नहीं दिया है कि जिन लोगों ने आधार कार्ड की जानकारी मुहैया करा दी है, वे इसे वापस ले सकें यानी 'ऑप्ट-आउट' का विकल्प नहीं है.

कानूनी जानकार यह सवाल भी उठा रहे हैं कि ऑनलाइन आयकर रिटर्न भरने के लिए यदि आधार कार्ड अनिवार्य है, तो फिर बैंकों के लिए भी वह एक तरह से अनिवार्य ही हो जाएगा. यानी आज के फैसले के बाद भी यह झोल बना रहेगा और आगे भी इस संबंध में सुप्रीम कोर्ट के सामने याचिकाएं लाए जाने की संभावना बनी रहेगी.

सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार को यह निर्देश भी दिया है कि वह डाटा संरक्षण के लिए जल्दी ही एक मुकम्मल और मजबूत कानून बनाए और सुनिश्चित करे कि अवैध रूप से आने वालों को आधार कार्ड न दिया जाए. सुप्रीम कोर्ट ने वह प्रावधान भी रद्द कर दिया है जिसके तहत राष्ट्रीय सुरक्षा के नाम पर नागरिकों के बारे में सभी डाटा साझा किया जा सकता था. यानी सुप्रीम कोर्ट ने बीच का रास्ता अपनाया है और आधार कार्ड की अवधारणा को बचाते हुए उसके दुरुपयोग पर अंकुश लगाने की कोशिश की है. लेकिन आज के फैसले के बाद भी यह सवाल बना रहेगा कि क्या डाटा चोरी के इस युग में नागरिकों की निजता का संरक्षण हो सकेगा. क्या उनका बायोमीट्रिक डाटा सरकार की निगरानी में सुरक्षित है? आशा है कि आने वाले दिनों में इन सवालों का जवाब भी तलाशा जाएगा.

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