क्या आधार कार्ड छीन रहा है गरीबों का आहार?
१२ सितम्बर २०१८झारखंड के रामगढ़ जिले के रहने वाले प्रेम मल्हार से बेहतर आधार कार्ड के महत्व को शायद ही कोई जानता होगा. उनका आरोप है कि उनके 50 वर्षीय पिता की मौत भूख से इसलिए हो गई क्योंकि उनके पास आधार कार्ड नहीं था, जिससे उन्हें सब्सिडी पर खाना मिल सके. लेकिन यह कहानी सिर्फ प्रेम के परिवार की नहीं है. दरअसल झारखंड में 14 लोगों की भूख से मौत कथित तौर पर इसलिए हो चुकी है क्योंकि उनके पास पहचान बताने के लिए आधार कार्ड नहीं था.
सामाजिक कार्यकर्ताओं का कहना है कि इन मौतों के पीछे कारण यह है कि पिछले एक साल से प्रशासन पुराने हाथ से लिखे राशन कार्ड को रद्द कर उन्हें बायोमीट्रिक आधार कार्ड से बदल रहा है.
भोजन के अधिकार को लेकर मुहिम चलाने वाली तरामनी साहू झारखंड सरकार पर आधार कार्ड जारी करने में देरी का आरोप लगाती हैं. उनका कहना है कि सरकार ने करीब 10 लाख पुराने राशन कार्डों को रद्द किया और नए कार्ड देने में वक्त लगा दिया. इससे उन गरीबों पर मार पड़ी जो खाने के लिए राशन कार्ड पर निर्भर थे.
जुलाई 2017 में नई दिल्ली की रहने वाली 10 साल से भी कम उम्र की तीन बहनों की खाना न मिलने के कारण मौत हो गई. हालांकि इन मौतों के पीछे आधार कार्ड के होने का मामला सामने तो नहीं आया, लेकिन लोगों का गुस्सा दिखा क्योंकि भारत में प्रतिवर्ष आठ अरब डॉलर का खाद्यान्न पैदा होता है और कुल उत्पादन का 40 फीसदी हर साल बर्बाद हो जाता है.
मौत के बाद भी मुश्किलें बाकी
वहीं रामगढ़ निवासी प्रेम मल्हार के पिता की मौत के बाद भी दिक्कतें कम नहीं हुई है. झोपड़ी में रहने वाले 25 वर्षीय मल्हार और उनके भाई के पास अब आधार कार्ड है, लेकिन अभी वे सब्सिडी पर मिलने वाले खाने के लिए योग्य नहीं हैं. वह इसे अधिकारियों की मूर्खता बताते हैं. प्रतिदिन करीब 195 रुपये की कमाई करने वाले मल्हार के मुताबिक, ''मेरे पिता की मौत इसलिए हुई क्योंकि उनके जीते-जी उन्हें आधार कार्ड नहीं मिल सका और अब मुझे आधार कार्ड मिल गया है लेकिन आधार कार्ड अभी राशन की दुकान से लिंक नहीं हो पाया है.''
इस इलाके में राशन की तीन सरकारी दुकानें हैं और दुकानदारों का कहना है कि वे बिना आधार कार्ड वाले लोगों को सब्सिडी पर अनाज नहीं दे सकते हैं. उनके मुताबिक, मल्हार परिवार का कार्ड इसलिए सिस्टम से लिंक नहीं हुआ क्योंकि इसे किसी अन्य सरकारी विभाग को करना था.
विपक्ष को मिला चुनावी मुद्दा
विपक्षी दलों ने इसे मु्द्दा बना लिया है और 2019 में तीन राज्यों में होने वाले चुनावों में इसे जोरशोर से उठाने की तैयारी है. बीजेपी नेता व आधार से जुड़ी नीतियां बनाने वाले संसदीय पैनल के सदस्य निशिकांत दुबे मानते हैं कि कल्याणकारी योजनाओं को आधार कार्ड से जोड़े जाने से सरकारी फंड का बेहतर इस्तेमाल हो रहा है. झारखंड में हुई मौतों पर वह कहते हैं, ''राजनीतिक फायदे के लिए विपक्षी दल गैरजिम्मेदार तरीके से इसे मुद्दा बना रहा है.''
झारखंड के खाद्यान्न मंत्री सरयू राय का कहना है कि उन्होंने स्थानीय अधिकारियों को निर्देश दिया है कि वे बिना आधार कार्ड वालों को भी सब्सिडी पर भोजन उपलब्ध कराएं. हालांकि सामाजिक कार्यकर्ता असहमति जताते हुए कहते हैं कि ये निर्देश राशन की दुकानों तक पहुंचे ही नहीं और असर नहीं दिख रहा है.
मौतों पर मंत्री राय का कहना है कि अभी यह साफ नहीं है कि झारखंड में भुखमरी से मौत हुई है और अधिकारियों का कहना है कि मौत के पीछे कारण बीमारी और खाने की कमी रही है. सरयू राय कहते हैं, ''यह जानने का एक सिस्टम होना चाहिए जिससे मालूम चल सके कि किन वजहों से भूख से मौत होती है. खाद्य कार्यकर्ता अगर मिलकर काम करें तो उनका स्वागत है." अन्य राज्यों में अधिकारियों ने आधार कार्ड को अनिवार्य बनाए जाने में ढील दी है. हालांकि कार्यकर्ताओं का मानना है कि बीजेपी प्रशासित राजस्थान में कुछ परिवार ऐसे मिले हैं जिन्हें सब्सिडी पर खाद्यान्न नहीं मिला.
डिजिटल इंडिया बनाने पर जोर
दरअसल आधार कार्ड पर सरकार का जोर देना डिजिटल इंडिया अभियान का हिस्सा है. इसके जरिए सरकार से होने वाले सभी लेन-देन किए जाएंगे जिसमें बैंक, राशन, टैक्स भुगतान आदि को जोड़ा गया है. सरकार का कहना है कि आधार कार्ड की मदद से खाद्य से जुड़ी कल्याणकारी योजनाओं में से हर साल करीब 23.63 अरब डॉलर की चोरी आदि पर लगाम लग सकेगी. इन योजनाओं से देश के गरीबों को भोजन और ईंधन मुहैया कराया जाता है.
हर साल गरीबों के लिए जारी किए जाने वाले सस्ते खाद्यान्न में से एक तिहाई दुकानदारों या बिचौलियों द्वारा चोरी कर लिया जाता है. सरकार का कहना है कि आधार कार्ड के आने से करीब तीन करोड़ फर्जी राशन कार्ड खत्म होंगे जिससे सरकार के 2.35 अरब डॉलर बचेंगे.
महिला एवं बाल कल्याण मंत्री मेनका गांधी ने जानकारी दी है कि देश में करीब 14 लाख आंगनवाड़ी चल रहे हैं जिससे करीब 10 करोड़ महिलाओं और बच्चों को फायदा पहुंच रहा है. सरकार की कल्याणकारी योजनाओं में फर्जीवाड़े का आलम यह है कि पूरे देश में करीब एक करोड़ फर्जी नाम आंगनवाड़ी से जुड़े हैं जिन्हें हाल ही में केंद्र सरकार ने सूची से बाहर किया है.
पर्याप्त संसाधनों की कमी
आधार कार्ड को बनाने की अपनी समस्याएं हैं. कई बार लोगों के फिंगरप्रिंट डाटाबेस से मेल नहीं खाते है. वहीं कार्ड को बनाते वक्त बिजली, इंटरनेट कनेक्शन आदि की जरूरत पड़ती है जो भारत के सुदूर इलाकों में मुश्किल है. भारतीय विशिष्ट पहचान प्राधिकरण यानी यूआईडीएआई के सीईओ अजय भूषण पांडे का कहना है कि आधार कार्ड को बनाते वक्त मूल सुविधाओं की कमी समस्या पैदा करती है, लेकिन अधिकारियों को निर्देश दिए गए हैं कि लोगों के अन्य पहचान पत्रों को स्वीकार किया जाए.
झारखंड के पूर्व मुख्यमंत्री और मौजूदा नेता विपक्ष हेमंत सोरेन का इस पर कहना है, ''सरकार की सख्ती की वजह से लोगों की मौत हो रही है. अगले चुनाव में जनता इन्हें सबक सिखाएगी." सरकार और प्रशासन के दावों के बीच प्रेम मल्हार की सारी उम्मीदें टूट चुकी हैं. वह कहते हैं कि उनका सरकार पर से भरोसा उठ चुका है और दुर्भाग्य यह है कि उनके पिता की मौत के बाद भी प्रशासन का रुख कठोर बना हुआ है.
वीसी/ओएसजे (रॉयटर्स)
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