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2030 तक 55 करोड़ डायबिटीज रोगी

१४ नवम्बर २०१२

विश्व भर में 37 करोड़ लोग मधुमेह के मरीज हैं. चीन में इस बीमारी से नौ करोड़ से ज्यादा लोग पीड़ित हैं. रोग के बढ़ने की रफ्तार से यह तय है कि डायबिटीज की दवाइयों का बाजार 2016 तक करीब 50 करोड़ डॉलर का होगा.

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दिमाग पर असर कर सकता है मधुमेहतस्वीर: Fotolia/Zsolt Biczó

अंतरराष्ट्रीय डायबिटीज फेडरेशन की एक नई रिपोर्ट में कहा गया है कि पिछले साल करीब 36 करोड़ 60 लाख मधुमेह रोगियों के मुकाबले इस साल की संख्या 37 करोड़ पार कर चुकी है. सिर्फ इतना ही नहीं इस बीमारी से और भी कई लोग जूझ रहे हो सकते हैं जो इन आंकड़ों में नहीं हैं. रिपोर्ट का कहना है कि 2030 तक यह संख्या बढ़ कर 55 करोड़ पार कर लेगी.

डायबिटीज को अकसर पश्चिमी देशों में रह रहे लोगों से जोड़ जाता है क्योंकि यह रोग कसरत में कमी और मोटापे से और बढ़ जाता है लेकिन विकासशील देशों में भी इस बीमारी के शिकार हो रहे लोगों की संख्या बढ़ रही है. अब तो डायबिटीज के हर पांच में से चार मरीज विकासशील और गरीब देशों में रहते हैं और दवाई कंपनियां इस बात का फायदा उठा रही हैं.

दुनिया में सबसे ज्यादा मधुमेह मरीज चीन में हैं और यहां नौ करोड़ लोग इस रोग की चपेट में आ गए हैं. डायबिटीज का खतरा सहारा मरुस्थल से जुड़े देशों में भी बढ़ रहा है जहां स्वास्थ्य सेवाएं अकसर कम होती हैं. रिपोर्ट में लिखा है कि करीब 18 करोड़ 70 लाख लोगों को अब भी नहीं पता है कि वह इस बीमारी के शिकार हैं.

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खून में चीनी की मात्रा को भी अब आसानी से नापा जा सकता हैतस्वीर: Fotoimpressionen/Fotolia

डायबिटीज के मरीज अपने शरीर में चीनी की मात्रा का नियंत्रण नहीं रख पाते. इससे कई परेशानियां सामने आती हैं. गुर्दों और नसों पर इसका असर पड़ सकता है और कई बार आंखों की रोशनी जाने का भी खतरा रहता है. कैंसर, हृदय और सांस की बीमारियों के साथ मधुमेह भी लंबे समय तक चलने वाली बीमारी है. स्वास्थ्य कार्यकर्ताओं का कहना है कि संयुक्त राष्ट्र को अपने सहस्राब्दी लक्ष्यों में मधुमेह को खत्म करने का लक्ष्य भी जोड़ना चाहिए.

जहां करोड़ों लोग इस बीमारी का शिकार हो रहे हैं, वहीं दवा कंपनियां इसे एक नए बाजार के रूप में देख रही हैं. आईएमएस हेल्थ नाम की संस्था का कहना है कि 2016 तक यह बाजार 48 से लेकर 53 अरब डॉलर तक बढ़ सकता है. 2011 में इस यह बाजार 39.2 अरब डॉलर का. डेनमार्क की कंपनी नोवो नॉर्डिस्क मधुमेह को नियंत्रण में रखने वाला इंसुलिन बनाती है. अमेरिका के बाद अब चीन में यह दवा सबसे ज्यादा बिक रही है. एली लिली, मेर्क और सानोफी भी अब इंसुलिन के नए बाजारों पर नजर रख रहे हैं.

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इंसुलिन का मॉलेक्यूलतस्वीर: AP

गरीब देशों में इंसुलिन रखना खासा परेशानी है क्योंकि इस दवा को ठंडा रखने की जरूरत है. इन मरीजों को ज्यादातर मेटमॉर्फिन दिया जाता है लेकिन बीमारी बढ़ने पर इंसुलिन की जरूरत पड़ जाती है. नोवो नॉर्डिस्क ने केन्या में एक नया प्रोजेक्ट शुरू किया है जिससे इंसुलिन को मरीजों के लिए सस्ता बनाया जा सके. करीब छह डॉलर में अब मरीज महीने भर की दवा ले सकते हैं. फिलहाल केवल 1,000 लोगों को इससे फायदा हुआ है लेकिन नोवो के प्रमुख जेस्पर होइलांड कहते हैं कि प्रोजेक्ट को आगे बढ़ाने में और मुनाफा कमाने में तीन से पांच साल तक लगेंगे. भारत और नाइजीरिया में भी इस तरह के प्रयोग किए जा रहे हैं. सानोफी भी सस्ती दवाओं के साथ बाजार में उतर रहा है.

एमजी/एनआर(रॉयटर्स)

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