खेतों से सीधे आपके घर तक सामान लाता है फैमिली फार्मर
४ जुलाई २०२०आमतौर पर लोगों का एक फैमिली डॉक्टर होता है जिसे परिवार के सभी सदस्यों की सेहत का हाल पता होता है. समय के साथ धीरे धीरे फैमिली डॉक्टर परिवार का एक हिस्सा बन जाता है. उसको लोग किसी भी स्वास्थ्य संबंधित परेशानी में सबसे पहले फोन करते हैं और सलाह लेते हैं. जाने अनजाने में फैमिली डॉक्टर को लोग अपना मानने लगते हैं. क्या आपने कभी सोचा है कि इसी तरह आपका कोई फैमिली फार्मर भी हो सकता है?
अनाज या फल-सब्जी लेते समय किसी का ध्यान इस ओर नहीं जाता है कि ये सब चीजें किसके खेत से आई, कैसे आप तक पहुंची, इसके पीछे किसकी मेहनत है. लेकिन कैसा हो अगर आप फैमिली डॉक्टर की तरह अपने फैमिली फार्मर को भी जानते हों. आपका उससे जुड़ाव हो, वो आपको ताजा और बिना मिलावट का सामान उपलब्ध कराए. उसका नंबर आपके फोन में सेव हो और वह भी फैमिली डॉक्टर की ही तरह आपके परिवार का सदस्य हो जाए. वाराणसी में कुछ ऐसा ही हो रहा है. वहां 2,000 से अधिक परिवार एक अनूठे स्टार्टअप के माध्यम से अपने अपने फैमिली फार्मर से जुड़ गए हैं.
स्टार्टअप को मिला लॉकडाउन का फायदा
स्कॉटलैंड में क्वीन मार्गरेट यूनिवर्सिटी से सोशल डेवलपमेंट एंड हेल्थ की डिग्री करने के बाद दीप्ति जब वाराणसी लौटीं, तो उन्हें विचार आया कि जीवन में डॉक्टर, ड्राइवर और फार्मर का कितना महत्त्व है. वे बताती हैं, "हम अकसर किसानों का योगदान भूल जाते हैं. लेकिन किसान आपकी भूख मिटाने का और आपको जिंदा रखने का काम करता है. इसीलिए विचार आया कि क्यों न किसानों को भी महत्व दिया जाए." इस अभियान की शुरुआत उन्होंने दो साल पहले की. लेकिन इसे इतनी सफलता नहीं मिली. फिर इस साल मार्च में दीप्ति ने एक सोशल ऑडिट कार्यक्रम रखा, जिसके फौरन बाद लॉकडाउन लग गया.
लेकिन आपदा में भी अवसर की संभावनाएं रहती हैं. लॉकडाउन के कारण देश भर में खाने पीने के सामान की दिक्कत होने लगी. लोग अपने घरों में बंद हो गए. ऐसे में दीप्ति ने नए सिरे से काम शुरू किया. अपने स्टार्टअप को उन्होंने गृहस्थ का नाम दिया.
जैसे जैसे लोगों तक इस स्टार्टअप की बात पहुंची, नए नए किसान जुड़ते गए. अब लगभग 250 किसान इस पहल का हिस्सा हैं, जो कि वाराणसी के अलावा भदोही, चदौली, मिर्जापुर, सोनभद्र और गाजीपुर तक फैले हैं. वाराणसी के लगभग 2,000 परिवारों के पास अब अपना अपना फैमिली फार्मर है. बनारस हिन्दू विश्वविद्यालय में रहने वाले लगभग 70% परिवार इस अभियान से जुड़ चुके हैं. दीप्ति मानती हैं कि लॉकडाउन के कारण उनके इस अभियान को गति मिली है.
कैसे काम करता है यह मॉडल?
ग्राहक अपने फैमिली फार्मर से व्हाट्सऐप या फोन कॉल के जरिए जुड़ सकते हैं. दीप्ति ने एक वेबसाइट और ऐप भी शुरू किया है, जिस पर लोग अपना ऑर्डर दे सकते हैं. डिलीवरी 24 घंटे या उससे भी कम समय में हो जाती है. इस पूरे काम का सोशल ऑडिट भी होता है. दीप्ति ऐसे "गेट टुगेदर" आयोजित करती हैं, जिनमें किसान और ग्राहक एक दूसरे से मिलते हैं और विचारों का आदान प्रदान करते हैं. इस काम से दोहरा लाभ है. एक तरफ किसानों को उनकी उपज का सही मूल्य मिलता है और बिक्री आसान हो जाती है. वहीं दूसरी ओर लोगों को ताजा सामान सही मूल्य पर मिलने लगा है. मिलावट के इस दौर में शुद्ध सामान मिलना ही बड़ी बात है. वाराणसी निवासी रेनू कुमार बताती हैं, "ऐसी ऐसी चीज़ें दिखी जो कभी नहीं देखी थी. हम खुद गए और सरसों का तेल पेरते हुए, हल्दी को मिट्टी की गहराई में खोदते हुए, हाथ से दाल को साफ करते हुए देखा. सबकुछ एकदम शुद्ध. आजकल ऐसा कहां मिलता है? ये अत्यंत अनूठा अनुभव है."
चंद्रशेखर वाराणसी में किसान हैं. वे भी इस मुहीम से जुड़े हैं. वे बताते हैं, "अब हम डायरेक्ट पहुंच रखते हैं. उपज का सही मूल्य मिलना एक अलग बात है. लेकिन सबसे बड़ी बात है कि मेरा एक परिवार से अपनापन का रिश्ता जुड़ गया है. ये मेरे लिए ज्यादा महत्वपूर्ण है. समय समय पर उनसे मिलना हो जाता है." इस पहल के जरिए किसानों का भी भला हो रहा है और आटा, तेल, सब्जी और तरह तरह के मसाले लोगों को होम-डिलीवरी के जरिए आसानी से मिल रहे हैं. और तो और इस आइडिया को भारत सरकार के कृषि मंत्रालय द्वारा भी प्रोत्साहित किया जा रहा है.
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