रोहिंग्या शरणार्थियों को बेंत मारने की सजा पर रोक की मांग
२१ जुलाई २०२०अधिकार समूह एमनेस्टी इंटरनेशनल ने मलेशिया की सरकार से आग्रह किया है कि वह "आप्रवासन अपराध" के आरोपी कम से कम 20 रोहिंग्या शरणार्थियों को बेंत से मारने की सजा की योजना पर रोक लगा दे. मानवाधिकार संस्था ने इस तरह की सजा को "क्रूर और अमानवीय" बताया है. रोहिंग्या शरणार्थिों के इस समूह में सभी पुरुष हैं. जून में इन्हें बेंत मारने की सजा के साथ-साथ सात महीने की जेल हुई थी. अप्रैल में रोहिंग्या शरणार्थियों का दल भागकर मलेशिया पहुंचा था, जिनमें यह पुरुष भी शामिल हैं. एमनेस्टी इंटरनेशनल ने सोमवार 20 जुलाई को एक बयान में कहा कि मलेशिया के कोर्ट को अधिकार है कि वो आने वाले दिनों में बेंत मारने की सजा पर रोक लगा दे.
एमनेस्टी इंटरनेशनल की मलेशिया शोधकर्ता रेचेल छोआ हावर्ड ने बयान में कहा, "जिन पुरुषों को जेल की सजा के साथ-साथ बेंत मारने की सजा मिली है वे पहले ही म्यांमार में प्रताड़ना और मानवता के खिलाफ अपराध का सामना कर चुके हैं." रेचेल ने आगे कहा, "उन्होंने मलेशिया पहुंचने के लिए समंदर में खतरनाक सफर तय किया ताकि उन्हें सुरक्षित ठिकाना मिल सके. इस दृष्टिकोण की अमानवीयता अत्याचार है." नौ महिलाओं को भी सात महीने की जेल की सजा हुई है और 14 बच्चों पर बिना वर्क परमिट के मलेशिया में रहने का आरोप लगा है.
मानवाधिकार संस्था ने मलेशिया की सरकार से अन्य सभी रोहिंग्या शरणार्थी जो कि कथित "आप्रवासन अपराध" के तहत दोषी पाए गए हैं उन्हें रिहा करने का आग्रह किया है. उसके मुताबिक शरणार्थियों को इस तरह से सजा देना अंतरराष्ट्रीय कानून के उलट है. एमनेस्टी के मुताबिक 2020 की शुरूआत से ही अब तक करीब 1,400 रोहिंग्या लोग अंडमान सागर और बंगाल की खाड़ी में म्यांमार में प्रताड़ना झेलने के बाद और बांग्लादेश में राहत शिविर से भागने के बाद फंस चुके हैं. अप्रैल में मलेशिया के अधिकारियों ने 202 रोहिंग्याओं को नाव से उतरने की इजाजत दी थी लेकिन अन्य नावों को वापस बांग्लादेश भेज दिया गया था.
एमनेस्टी का कहना है कि बेंत मारने की सजा बेहद क्रूर होती है और यह दोषी को कई हफ्ते और यहां तक की सालों तक दर्द के साथ-साथ मानसिक पीड़ा दे जाती है. बेंत की सजा पाने वाला कभी-कभी दर्द से बेहोश भी हो जाता है. अंतरराष्ट्रीय मानवाधिकार कानून के तहत सभी प्रकार के शारीरिक दंड पर रोक है. म्यांमार में प्रताड़ना से बचने के लिए रोहिंग्या अक्सर नाव के सहारे बांग्लादेश, इंडोनेशिया और मलेशिया शरण के लिए जाते हैं. अक्सर उन्हें अधिकारी वापस लौटा देते हैं. कई बार समंदर के सफर के दौरान उनकी नाव हादसे का शिकार भी हो जाती है.
म्यांमार में अगस्त 2017 में सेना की कार्रवाई के बाद सात लाख रोहिंग्या मुसलमान बांग्लादेश भागकर शरणार्थी शिविरों में रह रहे हैं. म्यांमार की सरकार पर रोहिंग्या लोगों का पूरी तरह से सफाया करने के आरोप लगते आए हैं. हालांकि म्यांमार का कहना है कुछ सैनिकों ने ही रोहिंग्या के खिलाफ युद्ध अपराध किए हैं ना कि सेना ने.
एए/सीके (डीपीए)
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