दक्षिण-पूर्व एशिया में हो रही है डिजिटल फार्मिंग क्रांति
८ मार्च २०२२मनित बूंखीव जब बालक थे तो अपने दादा-दादी को बैंकॉक के पास धान के खेतों में काम करते देखा करते थे. खेत जोतने के लिए उनके दादा दादी भैंसे से काम लेते थे. बुआई और छिड़काव वह हाथों से ही करते थे. फिर वक्त बदला और उनके माता-पिता उसी काम को ट्रैक्टर और थ्रैशर से करने लगे. अब एक बार फिर वक्त बदल गया है. मनित बूंखीव अपने खेत में ड्रोन प्रयोग करते हैं.
धान, ऑर्किड और फलों की खेती करने वाले मनित के पास मान बाई इलाके में लगभग 40 एकड़ जमीन है. बान माई के किसानों ने मिलकर थाईलैंड की सरकार की एक योजना की मदद से ड्रोन खरीदा है, जो खेती में उनके खूब काम आ रहा है.
यह ड्रोन बीजाई से लेकर खाद और दवाएं छिड़कने आदि तक तमाम तरह के काम करता है. जो बान माई में हो रहा है, वह दक्षिण पूर्वी एशिया में खेती में आ रहे बदलाव की एक झलक है. महामारी के बाद मजदूरों की भयंकर कमी से जूझ रहे इन देशों में ड्रोन खेती में क्रांतिकारी बदलाव ला रहे हैं.
बान माई में सामुदायिक धान केंद्र के नेता, 56 वर्षीय मनित बताते हैं, “मजदूर हमारे लिए सबसे बड़ी चुनौती है. एक तो मिलते नहीं हैं और फिर महंगे भी बहुत हैं.” बान माई सामुदायिक धान केंद्र 57 सदस्यों की एक समिति है जिसके पास करीब 400 एकड़ जमीन है. समिति को ड्रोन के प्रयोग से कई फायदे हुए हैं.
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मनित बताते हैं, “ड्रोन ने ना सिर्फ हम पैसे बचा रहे हैं बल्कि काम ज्यादा सटीक हो गया है. यह तेज है और सुरक्षित भी, क्योंकि हम रसायनों के सीधे संपर्क में नहीं हैं. और यह हमें जलवायु परिवर्तन के प्रभावों जैसे कम बारिश आदि से निपटने में भी मददगार है.”
क्रांतिकारी बदलाव
एशिया पैसिफिक में खेतीबाड़ी में तकनीक का इस्तेमाल अब मशीनों से बढ़कर आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस की ओर जा रहा है. किसान रोबोट, बिग डाटा प्रोसेसिंग और आर्टिफिशियल इंटेलिजेंसी की मदद से ना सिर्फ फसल और आय बढ़ाने मे कामयाब हो रहे हैं बल्कि खेती की तकनीक में भी सुधार हो रहा है.
संयुक्त राष्ट्र की संस्था खाद्य एवं कृषि संगठन (FAO) की एक रिपोर्ट बताती है कि डेटा-आधारित खेती और अन्य डिजिटल युक्तियां प्रयोग करने की वजहों में जलवायु परिवर्तन के अलावा जनसंख्या में आ रहे बदलाव और तकनीकी विकास का भी योगदान है.
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तकनीक के प्रयोग के बारे में संगठन की रिपोर्ट कहती है, “वे किसानो को कम पानी, जमीन, ऊर्जा और मजदूरी में ज्यादा उत्पादन में मदद करती हैं. जैव-विविधता के संरक्षण और कार्बन उत्सर्जन घटाने में भी सहायक हैं.”
लेकिन कृषि-तकनीकी या एग्री-टेक के अपने खतरे भी कम नहीं हैं. जैसे कि इसके कारण नौकरियां घटती हैं और बेरोजगारी बढ़ने से सामाजिक गैरबराबरी बढ़ती है. फिर डेटा की सुरक्षा को लेकर भी चिंताएं जताई गई हैं. कई विशेषज्ञ तकनीकी के कीमत पर सवाल उठाते हैं.
भारत जैसे हालात में
अलायंस फॉर सस्टेनेबेल ऐंड होलीस्टिक एग्रीकल्चर नामक संस्था के साथ काम करने वाले नचिकेत उदूपा कहते हैं, “भारत में तो चिंताएं बहुत गंभीर हैं जिनकी ओर सरकार को ध्यान देने की जरूरत है. हमने भारत में किसानों द्वारा न्यूनतम समर्थन मूल्य बढ़ाने के लिए विशाल प्रदर्शन होते देखे हैं. ड्रोन हासिल करना उनके लिए सबसे बड़े मुद्दे नहीं हैं.”
दुनियाभर में क्लाउड कंप्यूटिंग और आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस आधारित तकनीकों ने खेतीबाड़ी से जुड़ी कई गतिविधियों में बिग डेटा के प्रयोग को आसान बनाया है. इन गतिविधियों में सिंचाई नियंत्रकों से लेकर मिट्टी की गुणवत्ता, मौसम और फसल उत्पादन आदि के अनुमानों के लिए डेटा कलेक्शन शामिल हैं. डिजिटल फार्मिंग के लिए एशिया पैसिफिक सबसे तेजी से बढ़ते बाजारों में से एक बन गई है. इसमें सूचनाएं, वित्तीय युक्तियां, ब्लॉकचेन तकनीक आदि का प्रयोग खूब जमकर किया जा रहा है.
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लेकिन यह भी एक तथ्य है कि इस क्षेत्र में छोटे किसानों की संख्या बहुतायत में है. एफएओ का कहना है कि ऐसे किसानों के लिए भी सस्ती तकनीक जैसे मिट्टी की गुणवत्ता की जांच, ऐप या टेक्स्ट मेसेज आधारित सेवाओं के जरिए मौसम का पूर्वानुमान आदि जैसी सुविधाएं उपलब्ध हैं जिन्हें वे वहन कर सकते हैं.
गरीबों की मदद कैसे हो?
एक अन्य चुनौती इन तकनीकों तक महिलाओं की पहुंच बढ़ाना भी है. उदूपा कहते हैं कि भारत में, जहां जोत का औसत आकार दो एकड़ जितना छोटा है और तकनीकों का इस्तेमाल महंगा बना देता है. फसलों का विश्लेषण करने की सुविधा देने वाले एआई आधारित ऐप बनाने वाली डेटावैल ऐनालिटिक्स के सहसंस्थापक एम हरिदास कहते हैं भारत में दो करोड़ किसान खेती में तकनीक का इस्तेमाल कर रहे हैं जो 50 करोड़ किसानों के देश में रत्तीभर है.
हरिदास कहते हैं, “डेटा से खेती ज्यादा लोकतांत्रिक हो जाती है. छोटे किसान भी एआई और मशीन लर्निंग का इस्तेमाल अपना उत्पादन बढ़ाने के लिए कर सकते हैं. सबसे बड़ी चुनौती है इंटरनेट की कनेक्टिविटी, कम डिवाइस और ट्रेनिंग ना होना.”
एफएओ ने इंटरनेट को ज्यादा दूर तक उपलब्ध करवाने के लिए माइक्रोसॉफ्ट और आईबीएम जैसी बहुराष्ट्रीय कंपनियों के सहयोग से ‘डिजिटल विलेज’ नाम की योजना शुरू की है. दुनियाभर की एक हजार से ज्यादा जगहों पर चल रही यह योजना नेपाल, बांग्लादेश, फिजी, इंडोनेशिया. पापुआ न्यू गिनी और वियतनाम के किसानों की मदद कर रही है.
एफएओ में वरिष्ठ खाद्य सुरक्षा अधिकारी श्रीधर धर्मपुरी का कहना है, “इस योजना का मकसद तकनीक की मदद से खेती को आधुनिक बनाना, उसमें सुधार करना और ग्रामीण आबादी के लिए स्वास्थ्य और पोषण उपलब्ध बनाना है. जैसे 4जी सेवाएं फैलती हैं और 5जी सेवाओं का विस्तार होता है, और स्मार्टफोन की कीमतें कम होती हैं तो डिजिटल सेवाओं का विस्तार होगा और छोटे किसानों और उनके परिवारों का भी सशक्तिकरण होगा.”
वीके/सीके (रॉयटर्स)