कृत्रिम पत्थर पर प्रतिबंध लगाने वाला पहला देश ऑस्ट्रेलिया
१५ दिसम्बर २०२३इस हफ्ते ऑस्ट्रेलिया इंजीनियर्ड स्टोन पर प्रतिबंध लगाने वाला दुनिया का पहला मुल्क बन गया. सस्ते और लंबे समय तक चलने वाले ये पत्थर दुनियाभर में घरों और बाथरूम का हिस्सा हैं. लेकिन अगली जुलाई से ऑस्ट्रेलिया में ये पत्थर नहीं बेचे जा सकेंगे.
क्या हैं इंजीनियर्ड स्टोन?
इंजीनियर्ड स्टोन असल में कृत्रिम रूप से बनाए गए पत्थर होते हैं. ये पत्थरों के चूरे से बनाए जाते हैं. इनमें 90 फीसदी तक क्वॉर्ट्ज का चूरा होता है और बाकी हिस्सा धातुओं और रंगीन कांच के रूप में मिलाया जाता है.
ऑस्ट्रेलिया ने इंजीनियर्ड स्टोन पर प्रतिबंध तो अब लगाया है लेकिन इन पत्थरों पर विवाद कई साल से चल रहा है. 2015 में सबसे पहले यह मामला उठा था जब एक ऑस्ट्रेलियाई मजदूर को सिलिकॉसिस हो गया था. सिलिकॉसिस फेफड़ों की एक बीमारी है जो सिलिका रेत लगातार फेफड़ों में जाने से होती है. यह कारीगर इंजीनियर्ड स्टोन बनाने की फैक्ट्री में काम करता था.
इस पत्थर से जुड़ा यह पहला ऐसा मामला था. तब से ऐसे सैकड़ों मामले सामने आ चुके हैं. हाल ही में खबर आई थी कि ऑस्ट्रेलिया में लगभग 700 मजदूरों ने सिलिकॉसिस होने की वजह से अपनी कंपनियों से मुआवजा पाया है.
प्रतिबंध क्यों?
ऐसे बढ़ते मामलों के कारण इंजीनियर्ड स्टोन को "2020 के दशक का एस्बेस्टस" जैसा नाम दिया गया था. एस्बेस्टस एक बेहद जहरीला रसायन है जो दशकों तक भवन निर्माण में इस्तेमाल होता रहा और जिसके कारण बहुत से लोगों की जान गई थी.
कर्मचारियों के हितों की देखरेख करने वाली ऑस्ट्रेलिया की एजेंसी सेफ वर्क ऑस्ट्रेलिया ने इसी साल मामले की गहन जांच की और अक्टूबर में एक रिपोर्ट जारी की. इस रिपोर्ट में कहा गया कि इंजीनियर्ड स्टोन पर काम करने वाले कारीगरों में सिलिकॉसिस होने के मामले अन्य उद्योगों की अपेक्षा कहीं ज्यादा हैं.
रिपोर्ट के मुताबिक इंजीनियर्ड स्टोन उद्योग में काम करने वाले जिन लोगों को सिलिकॉसिस हो रहा है उनमें से ज्यादातर 35 साल से कम के हैं. साथ ही अन्य उद्योगों में काम करने वाले लोगों की तुलना में इस उद्योग में काम करने वालों में बीमारी तेजी से फैलती है और मृत्यु दर भी ज्यादा है.
रिपोर्ट में सिफारिश की गई थी कि "हर तरह के इंजीनियर्ड स्टोन के प्रयोग पर प्रतिबंध लगा दिया जाना चाहिए."
इसी सिफारिश के आधार पर ऑस्ट्रेलिया की सरकार ने राष्ट्रीय स्तर पर प्रतिबंध लगाने का ऐलान किया जो अगले साल जुलाई से लागू हो जाएगा.
दुनियाभर में चिंता
पत्थर काटने और बनाने के उद्योगों में काम करने वाले मजदूरों में सिलिकॉसिस एक बड़ी है. इस वजह से पूरी दुनिया में इसे लेकर बहस और विवाद जारी है. 2020 में आई एक रिपोर्ट में बताया गया था कि यूरोपीय संघ में 50 लाख से ज्यादा लोग क्रिस्टल सिलिका का खतरा झेल रहे हैं, जो सिलिकॉसिस की मुख्य वजह है.
ऑक्युपेशनल एंड एनवायरर्नमेंटल मेडिसिन में इसी साल प्रकाशित हुई ऑस्ट्रेलिया की मोनाश यूनिवर्सिटी के एक अध्ययन में वैज्ञानिकों ने पाया कि कृत्रिम बेंचटॉप बनाने वाली फैक्ट्रियों में काम कर चुके एक चौथाई से ज्यादा लोगों को घातक रोग सिलिकॉसिस हुआ.
भारत में भी सिलिकॉसिस एक बहुत बड़ा खतरा है. यूके के नेशनल इंस्टिट्यूट ऑफ हेल्थ की पत्रिका नेशनल लाइब्रेरी ऑफ मेडिसिन में प्रकाशित एक शोध पत्र के मुताबिक भारत में निर्माण उद्योग में काम करने वाले लगभग 30 लाख मजदूर सिलिका रेत की सीधी जद में हैं जबकि 85 लाख मजदूर ऐसे हैं जो क्वॉर्ट्ज की जद में हैं.