1. कंटेंट पर जाएं
  2. मेन्यू पर जाएं
  3. डीडब्ल्यू की अन्य साइट देखें
समाज

भारत में बंधुआ मजदूरी एक कड़वा सच

२५ सितम्बर २०२०

भारत में बंधुआ मजदूर दंपति ने इलाज के अभाव में अपने आठ साल के बेटे को खो दिया. घटना मध्य प्रदेश के गुना की है. कड़े कानून के बावजूद भारत में बंधुआ मजदूरी अब भी सामान्य बात है.

https://p.dw.com/p/3izf5
फाइल तस्वीर.तस्वीर: picture-alliance/dpa/zpress/Keystone/P. Pattisson

मध्य प्रदेश के गुना में एक बंधुआ मजदूर दंपति के बेटे की मौत के बाद प्रशासन से आसपास के इलाकों में ऐसे मामलों पर कार्रवाई की मांग तेज हो गई है. अधिकार समूह मांग कर रहे हैं कि ऐसे संदिग्ध मामलों की जांच होनी चाहिए.  कर्ज लेकर बंधुआ बन जाना गुलामी का सबसे सामान्य तरीका है, हालांकि चार दशक पहले इसे गैरकानूनी घोषित कर दिया गया था. लाखों लोग बतौर बंधुआ मजदूर ईंट भट्टों, खेत, चावल मिलों में काम कर कर्ज चुकाने की कोशिश करते हैं.

पुलिस के मुताबिक बच्चे के माता-पिता पर 25,000 रुपये का कर्ज था और वह उसे चुकाने के लिए खेत पर पिछले पांच सालों से बिना वेतन के ही काम कर रहे थे. उनके पास रहने के लिए मकान भी नहीं है और प्लास्टिक की छत के नीचे उनकी जिंदगी जैस तैसे कट रही है. पुलिस का कहना है कि जब उन्होंने अपने मालिक से बच्चे के इलाज के लिए पैसे मांगे तो उनके साथ मारपीट की गई.

गुना कैंट के एसएचओ योगेंद्र सिंह के मुताबिक, "बच्चे के पिता अपने नियोक्ता के खिलाफ शारीरिक हमले की शिकायत दर्ज कराने आए थे लेकिन जब हमने जांच की तो यह बंधुआ मजदूरी का मामला निकला." उन्होंने आगे कहा, "जब हम उनके गांव पहुंचे तो देखा दूसरे बच्चे भी बीमार थे और उन्हें अस्पताल पहुंचाया. परिवार की हालत भी ठीक नहीं थी."

स्थानीय श्रम अधिकारियों का कहना है कि बच्चे की मौत 20 सितंबर को अस्पताल में इलाज के दौरान हो गई, दंपति के तीन और बच्चों का मलेरिया के लिए अस्पताल में इलाज चल रहा है.

दिहाड़ी पर काम करने वालों पर कोरोना वायरस महामारी आफत पर बनकर टूटी है. एक तरफ तो श्रमिकों का रोजगार चला गया दूसरी तरफ उनके बचाए हुए पैसे भी भी खाने पर और परिवार पर खर्च हो गए. कई श्रमिकों को कर्ज भी लेना पड़ा है. इसी कारण यह आशंका बढ़ गई है कि बंधुआ मजदूरी कहीं और ना बढ़ जाए.

2011 की जनगणना में देश में 1,35,000 बंधुआ मजदूरों की पहचान की गई थी. भारत में बंधुआ मजदूरी के खात्मे के लिए पहली बार कानून 1976 में बना था. कानून में बंधुआ मजदूरी को अपराध की श्रेणी में रखा गया था. साथ ही बंधुआ मजदूरी से मुक्त कराए गए लोगों के आवास व पुर्नवास के लिए दिशा निर्देश भी इस कानून का हिस्सा हैं. लेकिन चार दशक बाद भी बंधुआ मजदूरी से जुड़े मामले आते रहते हैं.

गुना के मामले में बंधुआ मजदूरी कराने वाले व्यक्ति, उसके पिता और उसकी पत्नी को बंधुआ मजदूरी के आरोप में गिरफ्तार किया गया है. साथ ही उनपर एससी-एसटी एक्ट के तहत भी मुकदमा दर्ज किया गया है. श्रम अधिकारियों का कहना है कि वे उस गांव में जांच कर रहे हैं कि कितने और लोग बंधुआ मजदूरी के जाल में फंसे हुए हैं.

श्रम अधिकार समूहों का कहना है कि अधिकारियों को गुना क्षेत्र में गहराई से सर्वे कर पता करना चाहिए कि कितने और लोग बंधुआ मजदूरी कर रहे हैं. गैर लाभकारी संगठन बंधुआ मुक्ति मोर्चा के निर्मल गोराना कहते हैं, "गुना में हजारों बंधुआ मजदूर हैं. सरकार को सर्वे कराना चाहिए."

एए/सीके (थॉमसन रॉयटर्स फाउंडेशन)

__________________________

हमसे जुड़ें: Facebook | Twitter | YouTube | GooglePlay | AppStore

इस विषय पर और जानकारी को स्किप करें

इस विषय पर और जानकारी

और रिपोर्टें देखें