अमीर जर्मनी में बढ़ते जा रहे हैं बेघर लोग
२६ दिसम्बर २०२३बर्लिन के ताबोर चर्च के दरवाजे खुलने से आधे घंटे पहले से ही बेघर लोग वहां जुटने लगते हैं. हफ्ते में एक बार चर्च अपने कैफे में बेघर लोगों की मेजबानी करता है. ऐसे लोग वहां कुछ खा, पी सकते हैं और टॉयलेट का इस्तेमाल कर सकते हैं. उम्मीद है कि जल्द ही यहां उन लोगों को कुछ गर्म खाने को भी दिया जा सकेगा.
जर्मन राजधानी बर्लिन की कड़ाके की ठंड वाली रातों से बचने के लिए यह चर्च लोगों को हफ्ते सप्ताह में एक बार अंदर सोने की सुविधा भी देता है. करीब 40 लोग अकसर यहां नीचे सोते हैं, कभी-कभी इनकी तादाद 60 के पार भी चली जाती है. यहां उन्हें खाना भी मिलता है और दो स्वयंसेवी डॉक्टर भी मौजूद रहते हैं जो बेघर लोगों की किसी चोट या बीमारियों का इलाज करते हैं.
ताबोर चर्च की पादरी सबीने अल्ब्रेष्ट बताती हैं कि जो लोग यहां सोने के लिए जगह की तलाश में आते हैं, वे कैफे में आने वाले लोगों से अलग होते हैं. वह कहती हैं, "सामाजिक सुरक्षा के घेरे से छूट गए लोग यहां आ सकते हैं. कई तो बहुत दयनीय हाल में होते हैं."
'गंभीर सामाजिक समस्या'
कहीं सोने की जगह खोजने वाले कई लोग पूर्वी यूरोप से आते हैं. वे या तो बेरोजगार हैं या किसी अस्थायी काम से जुड़े हैं. कई लोगों में नशे की समस्या होती है, हिंसा के शिकार हुए होते हैं और मानसिक बीमारियों से भी जूझ रहे होते हैं. अल्ब्रेष्ट बताती हैं कि एक आदमी तो यहां बीते 20 सालों से सो रहा है. कुछ नियमित "अतिथियों" का इन सालों में निधन भी हो गया.
वह आसपास के इतने दुख से कैसे निपटती हैं? इस सवाल पर अल्ब्रेष्ट कहती हैं कि "हेल्पर सिंड्रोम से कोई भला नहीं होता, इसके लिए आपको मजबूत बनने और चीजों को पर्सनली नहीं लेना सीखने की जरूरत होती है." यह भी सीखना होता है कि आक्रामक और अशिष्ट लोगों से कैसे निपटा जाए. कुछ ऐसा जो करने में मार्गोट मोसर सक्षम हैं. 30 साल पहले शुरु हुई चर्च में सोने की सेवा को व्यवस्थित करने में 79 वर्षीया मोसर ने शुरु से चर्च की मदद की है. उन्हें इस काम से जुड़ना अच्छा लगता है क्योंकि वे खुद भी कम पैसों में गुजारा करने का दर्द समझती हैं.
जर्मन एसोसिएशन फॉर होमलेस असिस्टेंस (बीएजी डब्ल्यू) की प्रबंध निदेशक वेरेना रोसेनके ने डीडब्ल्यू को बताया, "होमलेसनेस एक गंभीर सामाजिक समस्या है." वह अफोर्डेबल हाउसिंग में भारी कमी को बेघर होने की मुख्य वजह के रूप में देखती हैं.
बेघर होने की रोकथाम की कुंजी
बीएजी डब्ल्यू जर्मनी में इमरजेंसी आवास सहायता सेवाओं और सुविधाओं से जुड़ा एक राष्ट्रीय संगठन है. इसके सबसे हालिया आंकड़ों के अनुसार, 2022 में जर्मनी में 6,07,000 लोग बेघर हुए थे. इनमें से करीब 50 हजार लोग सड़क पर रह रहे थे. संघीय सांख्यिकी कार्यालय केवल सरकारी सुविधाओं में पंजीकृत बेघर लोगों को रिकॉर्ड करता है और उसके अनुसार जर्मनी में 3,72,060 ऐसे लोग हैं.
इन दोनों आंकड़ों में बड़े अंतर का संबंध इस बात से है कि दोनों की गिनती अलग तरीके से की जाती है. बीएजी डब्ल्यू एक पूरे कैलेंडर वर्ष के आंकड़े जमा करता है, ना कि कुछ खास दिनों में. इनमें ऐसे तथाकथित छुपे हुए बेघर लोगों की गिनती भी होती है जो अपना घर खोने के बाद दोस्तों या परिवार के साथ रह रहे होते हैं.
रोसेनके रोकथाम को सबसे महत्वपूर्ण चीज मानती हैं. वह कहती हैं, "हमें लोगों को उनका घर खोने से रोकना होगा. बहुतों को यह भी पता नहीं है कि वे आवास लाभ के लिए आवेदन कर सकते हैं या नागरिक भत्ते के लिए आवेदन कैसे करें." उन्होंने कहा कि स्थानीय अधिकारियों के लिए यह कहीं सस्ता होगा अगर वे होटलों या अन्य आवासों में रात बिताने वालों का खर्च देने की बजाय किराए वाले लोन को निपटा दें.
"सामाजिक आवास" का लक्ष्य
जबसे जर्मनी की मौजूदा गठबंधन सरकार सत्ता में आई है तबसे उसने हर साल चार लाख नए घर बनाने का लक्ष्य रखा, जिनमें से एक लाख कल्याणकारी या सामाजिक आवास के लिए होने थे. "सामाजिक आवास" का मतलब है कि एक मकान मालिक सामाजिक आवास पात्रता प्रमाण पत्र के साथ किरायेदारों को सामान्य बाजार दर से काफी कम कीमत पर अपार्टमेंट किराए पर लेने के बदले में राज्य से सब्सिडी प्राप्त करता है. सरकार अपने लक्ष्यों को पूरा करने से मीलों दूर है.
वेरेना रोसेनके का मानना है कि सामाजिक आवास का लक्ष्य बहुत मामूली था. वह कहती हैं, "अगर हर साल एक लाख सामाजिक आवास इकाइयां बन भी जातीं तो भी किफायती आवास की कमी का मुकाबला करने के लिए वो काफी नहीं होगा." रोसेनके ने कहा, सामाजिक आवास के अलावा एक लाख किफायती घरों की जरूरत है. बीएजी डब्ल्यू प्रमुख की शिकायत है कि हाल के समय में सालाना लगभग 25,000 सस्ती नई आवास इकाइयां ही बनाई गई हैं. रोसेनके सामाजिक आवासों में बेघर लोगों के लिए तय कोटा की मांग कर रही हैं, क्योंकि पूर्वाग्रहों के कारण उन्हें अकसर किराये पर घर नहीं मिल पाता.
जर्मनी में 2024 की शुरुआत से लागू होने जा रहे एक्शन प्लान की मदद से वर्ष 2030 तक देश में होमलेसनेस को मिटाने का लक्ष्य है. हालांकि 16 जर्मन राज्यों, शहरों और नगर पालिकाओं में इसे लागू करने में कई साल और लग सकते हैं.
वापस ताबोर पैरिश की ओर चलते हैं जहां करीब 10 लोग इकट्ठा हो चुके हैं. एक आदमी हीटर के सामने गठरी बना बैठा है. पादरी सबीने अल्ब्रेष्ट मुस्कुराते हुए कहती हैं, "बहुत से लोग जल्दी से गर्मी पाने के लिए ऐसा करते हैं." पास ही दो और लोग किताबें पढ़ रहे हैं. उनके सामने टेबल पर वहीं से मिली ब्रेड और कॉफी रखी है. दिखने में बुजुर्ग छात्रों जैसे लगते हैं. अल्ब्रेष्ट कहती हैं, "मैं लगातार ज्यादा से ज्यादा ऐसे लोगों को हमारे कैफे में आते हुए देख रही हूं जिनके जरूरतमंद या बेघर होने की मैं कभी कल्पना भी नहीं करती."
यह लेख मूल रूप से जर्मन भाषा में लिखा गया था.