रहने लायक नहीं रह जाएगा बेंगलुरू
२७ जून २०२०दुनिया की कुछ सबसे बड़ी टेक्नोलॉजी वाली कंपनियां बेंगलुरू से ही चलती हैं. 2019 में रश आवर के दौरान लोगों ने यहां ट्रैफिक जाम में अपने 243 घंटे बर्बाद किए. यानि साल भर में 10 दिन और तीन घंटे, ट्रैफिक जाम की भेंट चढ़े. इस झमेले से मुक्ति पाने का सबसे अच्छा तरीका क्या हो सकता है?
टेक्सास इंस्ट्रूमेंट्स इंडिया कंपनी के लिए काम करने वाले इंजीनियर कार्तिक रंगनाथन अपनी साइकिल से इसका जबाव खोजते हैं, "हम बिन्नामंगला मंदिर में हैं और हमें दोमलुर फ्लाईओवर तक पहुंचना है, वह यहां से करीब दो किलोमीटर दूर है. अंकित, वहीं मिलते हैं."
कार्तिक और अंकित नारेदी एक ही कंपनी के लिए काम करते हैं. अंकित कार से यात्रा करेंगे और कार्तिक अपनी साइकिल से दफ्तर निकलेंगे. और थोड़ी ही देर बार अंकित पिछड़ने लगे. वह कहते हैं, "10 मिनट हो चुके हैं, मैं ट्रैफिक में फंसा हुआ हूं. यहां बहुत ही ज्यादा ट्रैफिक है. कभी कभार तो जरा सी दूरी तय करने में काफी समय लग जाता है."
गाड़ी का घमंड और साइकिल की शालीनता
साइकिल बचपन से कार्तिक के डेली रूटीन का हिस्सा है. वह एक कुशल साइक्लिस्ट हैं. गाड़ियों से ठस महानगर की सड़कों में भी वे आसानी से रास्ता खोज लेते हैं, वो भी इको फ्रेंडली तरीके से. नौ मिनट बाद कार्तिक निर्धारित जगह पर पहुंच गए. और, उसके छह मिनट बाद, अंकित वहां पहुंचते हैं.
साफ तौर पर कार्तिक जीत गए हैं. कोरोना वायरस के कारण फिलहाल सड़कों पर कम गाड़ियां हैं. लेकिन अनुमान है कि 2022 तक शहर में वाहनों की संख्या एक करोड़ से ज्यादा हो जाएगी. ऐसे में साइकिल का सफर तेज तो होगा, लेकिन जोखिम भरा भी. शहर की सड़कों पर साइकिल के लिए अलग लेन नहीं हैं. कार्तिक साइकिल चलाने से पहले हमेशा हेलमेट और ग्लव्स चेक करते हैं.
'साइकिल टू वर्क' अभियान
शहर प्रशासन की साइकिल टू वर्क नाम की पहल के लिए कार्तिक 2019 में अपनी कंपनी के बाइिसकल एंबैसेडर भी बने. वह अपने सहकर्मियों को भी साइकिल से दफ्तर आने के लिए प्रेरित करते हैं, ताकि सड़कों पर भीड़ भाड़ कम करने के लिए एक लॉन्ग टर्म हल निकाला जा सके.
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'साइकिल टू वर्क' का मकसद उन लोगों तक पहुंचना है, जिनके पास काम पर जाने के लिए कई विकल्प हों लेकिन वे साइकिल का चुनाव करें. प्रोजेक्ट की पहल सत्य शंकरन ने की. शंकरन एक इंजीनियर हैं. वह स्मार्ट सिटीज के लिए अर्बन मोबिलिटी और डाटा बेस्ड प्लानिंग कंसल्टेंट के रूप में काम करते हैं. वह कहते हैं, "कारें और निजी वाहन सड़कों को भर देते हैं और प्रदूषण भी करते हैं. और वे मिलकर ऐसा कर रहे हैं. आप सिर्फ ट्रैफिक या फिर अकेले प्रदूषण की समस्या का हल करने का दावा नहीं कर सकते."
ऐप की मदद ले रहा आईटी के लिए मशहूर शहर
सत्यनारायणन शंकरन को बेंगलुरू के बाइसकिल मेयर के रूप में भी जाना जाता है. एक मानद सम्मान जो उन्हें BYCS ने दिया है. BYCS एक डच सामाजिक संस्था है, जो 2030 तक दुनिया भर के शहरों में 50 फीसदी ट्रैफिक साइकिलों के जरिए तय करने का लक्ष्य रखती है. शंकरन के मुताबिक इस पहल के कई फायदे हैं, "मुझे लगता है कि जिस भी वक्त कोई शख्स साइकिल इस्तेमाल करने का फैसला करता है तो पूरे शहर को फायदा होता है. आप स्वस्थ और साइकिल का आनंद लेने वाले व्यक्ति बन सकते हैं. साथ ही दूसरी तरफ शहर की गिनती में इसे शामिल भी कर सकते हैं."
उन्होंने साइकिल टू वर्क नाम का प्लेटफॉर्म डेवलप किया है. साइकिल सवार इसे मुफ्त में इस्तेमाल कर सकते हैं. एक ऐप रोज दफ्तर जाने के लिए की गई साइक्लिंग का डाटा जुटाता है. हर ट्रिप के डाटा में दफ्तर की लोकेशन, रूट, दूरी और इस दौरान बचाए गए कार्बन उत्सर्जन की गणना होती है. इस तरह रियल टाइम में एक पब्लिक लीडरबोर्ड बनता है.
लीडरबोर्ड के साए में साइकिल से दफ्तर जाना, इसके चलते साइकिल सवारों में एक खेल जैसी प्रतिस्पर्धा भी पैदा हुई है. व्यावहारिक बदलाव के लिए यह एक जरूरी कदम है. साइकिल टू वर्क अपने सभी सदस्यों में से बेस्ट टीमों का चुनाव भी करता है.
अब साइकिल टू वर्क ऐप में बेंगलुरू के करीब 2,000 लोग रजिस्टर हैं. दो साल के भीतर इन सब ने अपने अपने दफ्तर आने जाने के लिए साइकिल से छह लाख किलोमीटर की यात्रा की.
लॉकडाउन संबंधी ढील के साथ ही शहर में ट्रैफिक के पुराने ढर्रे में लौटने की आशंका है. लेकिन बेंगलुरू के ये लोग साबित करना चाहते हैं कि शहरों में काम करने वाले भारतीयों के लिए साइकिल सबसे अच्छा और इको फ्रेंडली विकल्प है.
रिपोर्ट: जूही चौधरी
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