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कानून और न्याययूरोप

क्या कुछ है यूरोपीय संघ के नए प्रवासन समझौते में

१८ अप्रैल २०२४

यूरोपीय संघ के 27 सदस्य देशों के साथ आठ साल तक चली बातचीत के बाद यूरोपीय संसद ने शरण नीति में बुनियादी सुधार को मंजूरी दी.

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खतरनाक समुद्री रास्तों से यूरोप पहुंचने की कोशिश में जाती हैं कई जानें
खतरनाक समुद्री रास्तों से यूरोप पहुंचने की कोशिश में जाती हैं कई जानेंतस्वीर: Laurin Schmid/picture alliance

नए प्रवासन समझौते में कई आपस में जुड़े कानून शामिल हैं. इसका मुख्य उद्देश्य नए आने वाले लोगों की संख्या को कम करना है. साथ ही शरण प्रक्रिया में तेजी लाना और इसके लिए यूरोपीय संघ की बाहरी सीमाओं पर केंद्र स्थापित करना है.

यूरोपीय संघ (ईयू) की सांख्यिकी एजेंसी यूरोस्टेट के मुताबिक, पिछले कुछ सालों में शरण आवेदनों की संख्या में लगातार बढ़ोतरी हुई है. पिछले साल इन आवेदनों की संख्या 11 लाख से ज्यादा थी. 2022 से लेकर अब तक यूक्रेन के करीब 40 लाख शरणार्थियों को यूरोपीय संघ में जगह मिल चुकी है.

बाहरी सीमाओं पर कैसे लागू होगा समझौता

भविष्य में, शरण चाहने वालों और शरणार्थियों की स्पष्ट पहचान ईयू में पहुंचने के सात दिनों के भीतर की जाएगी. उनसे जुड़ी जानकारियों को यूरोपीय शरण फिंगरप्रिंट डाटाबेस ‘यूरोडैक' में स्टोर किया जाएगा. जिसमें बाद में और बायोमेट्रिक डाटा भी जोड़ा जाएगा.

जिन देशों की पहचान दर 20 फीसदी से कम है, वहां के प्रवासियों को सीमा पर 12 हफ्तों तक हिरासत में रखा जा सकेगा. इन देशों में भारत, पाकिस्तान और मोरक्को जैसे देश शामिल हैं. हिरासत केंद्र ग्रीस, इटली, माल्टा, स्पेन, क्रोएशिया और साइप्रस में स्थापित किए जाएंगे. वहां पर अधिकारी तय करेंगे कि आवेदकों से पूछताछ किए बिना उन्हें उनके मूल देश वापस भेजा जाए या नहीं. उम्मीद की जा रही है कि इससे आने वाले लोग कम संख्या में ही प्रभावित होंगे. पूरे ईयू में फैले इन केंद्रों में किसी भी समय 30 हजार लोगों को रखने की क्षमता होनी चाहिए.

जिन देशों की पहचान दर ज्यादा है, वहां के प्रवासी नियमित शरण प्रक्रिया से गुजर सकेंगे. फिलहाल, इस प्रक्रिया में सालों लग सकते हैं और इस समय को कम किया जाना है. जिन लोगों के आवेदन खारिज कर दिए गए हैं, उन्हें सीधे ईयू की बाहरी सीमाओं पर निर्वासित कर दिया जाएगा.

एंट्री पॉइंट्स से बोझ कम किया जाएगा

नए समझौते में यह भी कहा गया है कि जिन देशों में प्रवासी सबसे पहले आते हैं, वे शरण चाहने वाले कुछ लोगों को ईयू के अन्य सदस्य देशों में भी भेज सकेंगे. इसके लिए ‘अनिवार्य एकजुटता' की प्रणाली लागू की जाएगी.

अगर हंगरी जैसे देश लोगों को स्वीकार करने से मना करते हैं तो उन्हें जिस देश में प्रवासी सबसे पहले पहुंचे हैं, उसे मुआवजा देना होगा या फिर वहां उपकरण और लोग भेजने होंगे. मुआवजे की राशि 20 हजार यूरो प्रति व्यक्ति रखी गई है. हालांकि, ये बाध्यकारी नहीं है और सदस्य देश आपस में बातचीत कर इस पर फैसला ले सकते हैं.

अगर किसी देश को लगता है कि उस पर बहुत ज्यादा बोझ है तो वो और ज्यादा मदद मांग सकता है. वहीं, संकट के मामलों में सभी 27 देश मिलकर फैसला लेंगे.

ईयू में शर्तों को एक जैसा बनाना

इसे एक उदाहरण से समझते हैं. फिलहाल, ग्रीस और इटली पहुंचे कई शरणार्थी अपनी यात्रा जारी रखने की कोशिश करते हैं. वे जर्मनी, ऑस्ट्रिया, फ्रांस, नीदरलैंड्स और बेल्जियम पहुंचना चाहते हैं. मामला यह है कि किसी को शरण दी गई है या नहीं.

मौजूदा प्रक्रिया के मुताबिक, आवेदक सबसे पहले जिन देशों में पहुंचते हैं, उन देशों को शरण नहीं पाने वाले लोगों को वापस लेना होता है. लेकिन ऐसा आमतौर पर नहीं होता है.

नया समझौता पूरे यूरोपीय संघ में अधिक समान सेवाएं और शर्तें लागू करके प्रणाली को बदलने का प्रयास करेगा. ताकि शरणार्थी कुछ सदस्य देशों को दूसरों की तुलना में ज्यादा आकर्षक ना मानें.

शरणार्थियों का निर्वासन होगा आसान

नए समझौते के बाद लोगों को उनके मूल देश या जिस देश के रास्ते वे ईयू पहुंचे थे, वहां जल्दी निर्वासित किया जा सकेगा. हालांकि, लोगों को सुरक्षित घोषित देशों में ही निर्वासित किया जाएगा. यूरोपीय संघ ट्यूनीशिया, मिस्त्र और मॉरिटानिया जैसे गैर-ईयू देशों के साथ अधिक समझौते करने की कोशिश कर रहा है. जिससे उन्हें ऐसे अधिक लोगों को स्वीकार करने के लिए राजी किया जा सके जिनके ईयू में शरण के आवेदन खारिज हो गए हैं.

उदाहरण के लिए, ट्यूनीशिया आर्थिक सहायता के बदले में अपने नागरिकों को वापस लेने पर सहमत हो गया है. लेकिन उनकी सरकार उप-सहारा अफ्रीका के उन लोगों को स्वीकार नहीं करना चाहती, जो ट्यूनीशिया के रास्ते यूरोपीय संघ पहुंचे थे.

ग्रीस में बने ऐसे सेंटर की तरह ही ईयू के बाहरी सीमावर्ती इलाकों में और सेंटर बनाए जाएंगे
ग्रीस में बने ऐसे सेंटर की तरह ही ईयू के बाहरी सीमावर्ती इलाकों में और सेंटर बनाए जाएंगेतस्वीर: Nicolas Economou/NurPhoto/picture alliance

यूरोपीय संघ और तुर्की के बीच 2016 में एक समझौता हुआ था. इसके बाद चार सालों तक ग्रीस पहुंचने वाले सीरियाई नागरिकों की संख्या में कमी आई थी. लेकिन अब तुर्की सरकार उन सीरियाई नागरिकों को वापस नहीं लेना चाहती, जिनके आवेदन खारिज हो गए हैं. ऐसे में अब यह समझौता लागू नहीं होता.

डाटाबेस में मिलेगी पूरे ईयू की जानकारी

नए समझौते के मुताबिक, यूरोपीय संघ की बाहरी सीमाओं पर तैनात कर्मचारी भविष्य में ईयू में प्रवेश करने वाले सभी लोगों का रिकॉर्ड रखेंगे. बायोमेट्रिक जानकारी एक डाटाबेस में स्टोर की जाएगी, जो पूरे ईयू के लिए उपलब्ध होगी. ईयू के किसी देश में अगर कोई व्यक्ति शरण के लिए आवेदन करेगा तो डाटा के जरिए यह पता चल जाएगा कि उस व्यक्ति का आवेदन किसी दूसरे ईयू देश में खारिज तो नहीं हो चुका है. इससे लोगों को उनके मूल देश या जहां से वे घुसे थे, वहां भेजना भी आसान हो जाएगा.

2015 से ऐसे डाटाबेस को लागू करने के कई प्रयास किए गए हैं. मौजूदा यूरोडैक डाटाबेस केवल फिंगरप्रिंट इकट्ठे करता है और उसमें कई तकनीकी खामियां हैं.

विवादों में घिरा नया समझौता

नए समझौते के समर्थकों का तर्क है कि शरण देने के कठोर नियमों और प्रक्रियाओं से निर्वासन में तेजी आएगी. शरण मिलने की संभावना सीमित होगी, इसलिए कम लोग ही यूरोप की यात्रा करने का जोखिम उठाएंगे.

वहीं, आलोचकों का कहना है कि यह समझौता यूरोपीय संघ में शरण लेने के मौलिक अधिकार को कमजोर करता है. यह भी डर है कि ऐसे लोग जिन्हें सुरक्षा की जरूरत है, उन्हें अस्वीकार कर दिया जाएगा. उन्होंने कहा है कि भूमध्य सागर पार करके यूरोपीय संघ जाने की कोशिश करने वाले लोग अपनी जान गंवाते रहेंगे.

आगे क्या होगा?

यूरोपीय संघ की परिषद सभी 27 सदस्य देशों का प्रतिनिधित्व करती है. अप्रैल के अंत में इस परिषद को नए प्रवासन समझौते को अपनी मंजूरी देनी होगी. लेकिन इसे सिर्फ औपचारिकता माना जा रहा है. जब यह समझौता अपने विभिन्न कानूनों और नियमों के साथ लागू होगा, तब यह देखा जाएगा कि क्या सदस्य देश अपने नए दायित्वों को निभाएंगे.

क्या इटली अपनी सीमाओं पर केंद्र स्थापित करेगा. क्या ईयू के उत्तरी और पूर्वी सदस्य देश एकजुटता दिखाते हुए अधिक प्रवासियों को स्वीकार करेंगे या उनके लिए धन उपलब्ध कराएंगे. उम्मीद लगाई जा रही है कि समझौते को लागू होने में दो साल लग जाएंगे. लेकिन यह कुछ सालों बाद ही साफ हो पाएगा कि समझौते की वजह से यूरोप में शरण चाहने वाले लोगों की संख्या कम हुई या नहीं.