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काम के लिए अधिकतम तापमान की सीमा लागू करने की मांग

२५ जुलाई २०२२

यूरोप में गर्मी कहर बरपा रही है और काम करने वालों के लिए हालात चिंताजनक रूप से मुश्किल होते जा रहे हैं. ऐसे में कर्मचारियों ने मांग की है कि तापमान की एक अधिकतम सीमा तय की जाए ताकि कर्मचारियों को खतरे में ना डाला जाए.

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Hitzwelle in Spanien
तस्वीर: Angel Garcia/Zuma/picture alliance

हीट वेव के कारण पिछले हफ्ते स्पेन में तीन लोगों की काम के दौरान मौत हो गई थी. ऐसी घटनाएं दोबारा ना हों, इसलिए कर्मचारी संघों ने यूरोपीय आयोग से मांग की है कि बाहर खुले में काम करने वालों के लिए अधिकतम तापमान की सीमा तय की जाए.

वैसे यूरोपीय संघ के कुछ सदस्य देशों में ऐसे नियम पहले से मौजूद हैं जिनके तहत अत्याधिक गर्मी के दौरान काम करने पर रोक का प्रावधान है. लेकिन अलग-अलग देशों के लिए तापमान की सीमा अलग-अलग है और राष्ट्रीय स्तर पर इस तरह के नियमों का प्रावधान नहीं है.

सर्वेक्षण करने वाली एक एजेंसी यूरोफाउंड की एक रिसर्च के मुताबिक यूरोपीय संघ के कुल कर्मचारियों के कम के कम 23 प्रतिशत अत्याधिक तापमान वाले हालात में काम करते हैं. अपने काम का कम से कम एक चौथाई हिस्सा वे ऐसे हालात में बिताते हैं. सिर्फ कृषि और उद्योगों में काम करने वाले ऐसे लोगों की संख्या 36 प्रतिशत है जबकि निर्माण उद्योग में 38 प्रतिशत कर्मचारियों को अत्याधिक तापमान के दौरान काम करना पड़ता है.

कितना बड़ा है खतरा?

कई शोधों में यह बात सामने आ चुकी है कि अत्याधिक तापमान में काम करने से कामगारों को हमेशा रहने वाली बीमारियां हो जाती हैं और काम के दौरान चोट लगने का खतरा भी बढ़ जाता है. यूरोपीय ट्रेड यूनियन कॉन्फेडरेशन के उप महासचिव क्लाएस-मिकाएल श्टाल कहते हैं, "मजदूर जलवायु परिवर्तन के प्रभावों को झेलने वालों में रोज सबसे आगे खड़े होते हैं. उन्हें लगातार बढ़ रहे अत्याधिक तापमान के खतरों से सुरक्षा की जरूरत है.”

यूनियन का कहना है कि अधिकतर यूरोपीय देशों में काम के दौरान अत्याधिक तापमान की कोई सीमा तय नहीं है. हालांकि बेल्जियम, हंगरी और लातविया में कुछ प्रतिबंध लागू हैं. फ्रांस में अत्याधिक तापमान की कोई सीमा तय नहीं है. 2020 में वहां काम करते वक्त गर्मी के कारण 12 लोगों की जान गई थी.

स्पेन में, जहां पिछले हफ्ते तीन मजदूरों की मौत हुई, अत्याधिक तापमान की सीमा तय है लेकिन यह कुछ पेशों में ही लागू होती है. शनिवार को वहां 60 वर्षीय सफाईकर्मी की मौत हुई थी. वह सिर्फ एक महीने के ठेके पर काम कर रहा था. शुक्रवार को काम के दौरान ही वह बेहोश हो गया और एक दिन बाद उसने दम तोड़ दिया. तब मैड्रिड का तापमान 40 डिग्री सेल्सियस के करीब था.

शनिवार को ही 56 वर्षीय एक वेयरहाउस कर्मचारी की मौत हुई थी. उसे भी काम पर हीट स्ट्रोक हुआ और तत्काल मौत हो गई. इससे पहले गुरुवार को सुरक्षा अधिकारियों ने राजधानी मैड्रिड के बाहरी इलाके में एक व्यक्ति गर्मी से मौत की घोषणा की थी.

पिछले हफ्ते ही स्पेन के कर्मचारी संघों और अधिकारियों के बीच एक समझौता हुआ था जिसके तहत 39 डिग्री से कम तापमान में ही गलियों की सफाई करने की बात पर सहमति बनी है.

ग्लोबल वॉर्मिंग का प्रभाव

ओद्यौगिक क्रांति के पहले के मुकाबले पृथ्वी का औसत तापमान 1.1 डिग्री सेल्सियस बढ़ चुका है और यूरोप में तेज गर्मी के दौर बार-बार आ रहे हैं. वैज्ञानिकों का अनुमान है कि कार्बन प्रदूषण के लगातार बढ़ते स्तर के चलते घातक ग्रीष्म लहरें और ज्यादा बढ़ेंगी.

संयुक्त राष्ट्र के जलवायु विज्ञान पैनल ने इसी साल जारी एक रिपोर्ट में चेतावनी दी थी कि दुनिया के करोड़ों लोगों पर बढ़ती गर्मी का सीधा असर होगा. इस कारण बड़े पैमाने पर मौतें होने व लोगों के बेघर हो जाने जैसे नतीजे भी देखने को मिलेंगे.

श्टाल कहते हैं, "जैसा कि इस गर्मी में हमने स्पेन में देखा, बिना धूप से सुरक्षा के काम करते लोगों के लिए हीट वेव घातक हो सकती है. यूरोपीय संघ को पूरे महाद्वीप के लिए अधिकतम तापमान की सीमा तय करने की जरूरत है क्योंकि मौसम राष्ट्रीय सीमाओं को नहीं देखता.”

भारत में स्थिति

भारत के कई हिस्सों ने इस साल ग्रीष्म लहर का सबसे घातक रूप देखा है. देश में करोड़ों मजदूर असहनीय हालात मेंबिना मूलभूत सुविधाओं के काम करते हैं. हजारों फैक्ट्रियां ऐसी हैं जहां पंखे जैसी सामान्य सुविधाएं भी नहीं हैं. अहमदाबाद में काम करने वाले एक मजदूर नागेंद्र यादव ने समाचार एजेंसी रॉयटर्स को बताया था, "फैक्ट्री के मालिक के दफ्तर में एसी लगा है लेकिन जहां हम काम करते हैं वहां पंखा तक नहीं है. 12 घंटे की शिफ्ट होती है. हममें से कुछ लोग बीमार होते हैं और उस कारण तन्ख्वाह कटवाते हैं लेकिन फिर काम पर लौट आते हैं. हमारे पास और कोई चारा नहीं है.”

संयुक्त राष्ट्र के सहयोग से तैयार की गई एक रिपोर्ट में भारतीय मजदूरों के हालात बयान किए गए हैं. सस्टेनेबेल एनर्जी फॉर ऑल नामक संस्था द्वारा तैयार यह रिपोर्ट कहती है कि भारत में 32.3 करोड़ लोग अत्याधिक गर्मी के खतरे में हैं और उन्हें तापमान कम रखने के लिए कोई सामान्य सुविधा भी उपलब्ध नहीं है.

राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन प्राधिकरण (NDMA) ने देश के 28 में से 23 राज्यों के 100 शहरों को अत्याधिक गर्मी के खतरे के दायरे में बताया है. इनमें से 19 राज्यों ने अत्याधिक गर्मी के दौरान मजदूरों के काम करने की परिस्थितियों पर योजनाएं तैयार की हैं. एनडीएमए के वरिष्ठ वैज्ञानिक अनूप कुमार श्रीवास्तव बताते हैं कि प्राधिकरण ने कुछ दिशा-निर्देश जारी किए थे जिनमें मजदूरों के लिए पीने का पानी उपलब्ध कराने से लेकर काम के घंटे बदलने व स्वास्थ्य सुविधाएं मुहैया कराने जैसी बातें शामिल हैं.

वीके/सीके (एएफपी, रॉयटर्स)

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