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समाज

भारत-चीन तनाव क्या अनजाने में युद्ध करा सकता है?

७ सितम्बर २०२०

एलएसी पर भारत और चीन के बीच महीनों से तनाव बना हुआ है. जानकारों की चेतावनी है कि यह कहीं युद्ध का कारण ना बन जाए.

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तस्वीर: Getty Images/AFP/T. Mustafa

परमाणु हथियारों से लैस चीन और भारत के बीच पिछले कुछ महीनों से वास्तविक नियंत्रण रेखा पर तनाव बना हुआ है. जानकारों की चेतावनी है कि दशकों बाद तीखी झड़प के बाद दोनों देश अनजाने में युद्ध की तरफ फिसल सकते हैं. 45 साल से लिखित और अलिखित समझौतों की श्रृंखला ने कश्मीर के हिमालयी क्षेत्र के पूर्वी छोर पर असहज तनाव बनाए रखा. लेकिन पिछले कुछ महीनों में झड़प और सेना की हलचल ने स्थिति को अप्रत्याशित बना दिया है. यह जोखिम को और बढ़ाने वाला है कि अगर एक गलत कदम दोनों में किसी एक ओर से लिया जाता है, तो इसके गंभीर नतीजे हो सकते हैं, जो कि ठंडे इलाके से बढ़कर आगे जा सकता है.  

लेफ्टिनेंट जनरल (रिटायर्ड) डीएस हुड्डा कहते हैं, ''जमीन पर स्थिति बहुत खतरनाक है और यह नियंत्रण से बाहर हो सकती है.'' 2014 से लेकर 2016 तक सेना का नार्दर्न कमांड का नेतृत्व संभालने वाले हुड्डा कहते हैं, ''बहुत कुछ इस पर निर्भर करेगा कि क्या दोनों पक्ष अस्थिर स्थिति को नियंत्रित करने में सक्षम हैं या नहीं और यह सुनिश्चित करें कि यह अन्य क्षेत्रों में नहीं फैलता है.''

दोनों एशियाई दिग्गज देशों के बीच कई स्तरों की बातचीत सैन्य कमांडरों की हुई है, हालांकि इसमें कोई सफलता हासिल नहीं हुई है. अब ऐसे संकेत मिल रहे हैं कि बातचीत सैन्य से हटकर राजनीतिक छोर पर जाते दिख रही है. दोनों देशों के रक्षा मंत्री पिछले हफ्ते रूस की राजधानी में मुलाकात कर गतिरोध को खत्म करने की कोशिश करते दिखे. चार महीने पहले लद्दाख में दोनों देशों की सेनाओं के बीच झड़प के बाद यह पहली उच्च स्तरीय बैठक थी. पिछले हफ्ते ही दोनों देशों ने एक दूसरे पर नए सिरे से उकसावे की कार्रवाई का आरोप लगाया था. साथ ही सेना ने एक दूसरे पर एलएसी को पार करने का भी आरोप लगाया था.

Konflikt China Indien | Ganderbal-Grenze
जानकारों का कहना है कि तैयारी दोनों ओर से चल रही है.तस्वीर: picture-alliance/ZUMA Press/I. Abbas

भारत ने इस घटना पर कहा था कि उसकी सेना ने चीन के आक्रामक सैन्य गतिविधि को नाकाम कर दिया था. इसके जवाब में चीनी रक्षा मंत्रालय ने कहा था कि भारतीय सेना ने एलएसी को पार किया और सीमा पर तनाव बढ़ाने का काम किया. पहली बार मई के महीने में दोनों देशों के बीच तनाव हुआ था, इसके बाद जून के महीने में दोनों देशों के सैनिकों के बीच हिंसक झड़प में 20 भारतीय सैनिकों की मौत हो गई थी. चीन ने इस झड़प में अपने सैनिकों की मौत की रिपोर्ट जारी नहीं की थी. हुड्डा कहते हैं कि उन्हें नहीं लगता कि दोनों पक्ष पूरे तौर पर युद्ध करेंगे, ''असली विपत्ति'' मौजूदा करार और प्रोटोकॉल का टूटना है. 

बीजिंग की पेकिंग यूनिवर्सिटी में अंतरराष्ट्रीय मामलों के प्रोफेसर वांग लियान कहते हैं कि खुले तौर पर युद्ध की संभावना नहीं है क्योंकि दोनों पक्षों ने हाल की झड़पों में संयम दिखाया है. लेकिन वे साथ ही कहते हैं कि भारत पर चीन विरोधी भावनाओं का दबाव है. वांग कहते हैं, ''मुझे नहीं लगता है (भारत)  सैन्य संघर्ष बड़े पैमाने पर बढ़ाने के लिए इतना आगे जाएगा लेकिन मुझे लगता है कि दोनों तरफ से कुछ तैयारियां चल रही हैं.''

करीब साढ़े तीन हजार किलोमीटर की सीमा को दोनों देश साझा करते हैं, जो लद्दाख से होकर सिक्किम तक जाती है. दोनों देश 1962 की जंग भी लड़ चुके हैं जो एक नाजुक युद्धविराम के साथ समाप्त हुई थी. रक्षा विशेषज्ञ राहुल बेदी कहते हैं कि जून की झड़प के बाद भारत ने सीमा पर अपने नियमों को बदला. उनके मुताबिक स्थानीय कमांडरों को "चीनी सेना के किसी भी शत्रुतापूर्ण कार्य के लिए पर्याप्त और बराबरी की कार्रवाई शुरू करने की आजादी दे दी गई है."

भारत के रक्षा विश्लेषकों समेत रणनीतिक समुदाय के सदस्यों और सेवानिवृत्त जनरलों का कहना है कि चीन की सेना नए मोर्चे खोल रही है, वह अविश्वास को गहरा कर रही है और सर्दी के पहले तत्काल पीछे नहीं हट रही है. लद्दाख वह इलाका है, जहां सर्दी के मौसम में तापमान -50 डिग्री तक चला जाता है. विशेषज्ञों का कहना है कि सर्दी के मौसम में भारतीय सेना की तैनाती अर्थव्यवस्था पर अधिक भार डालेगी.

एए/आईबी (एपी)

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