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राजनीतिब्रिटेन

ब्रिटेन के चुनाव में आप्रवासन क्यों है इतना गर्म मुद्दा?

५ जून २०२४

ब्रिटेन में अगले महीने आम चुनाव होने हैं. आने वाले दिनों में ब्रिटेन की आप्रवासन नीति क्या होगी या क्या होनी चाहिए, यह आगामी चुनाव के सबसे बड़े मुद्दों में से एक है.

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22 मई को लंदन के अपने आधिकारिक आवास के बाहर आम चुनाव के तारीख की घोषणा करते ब्रिटेन के प्रधानमंत्री ऋषि सुनक.
4 जुलाई को ब्रिटेन में चुनाव होना है. इमिग्रेशन का स्तर कम करना इस बार मुख्य चुनावी मुद्दों में है. पीएम सुनक कह रहे हैं कि अगर वह जीतते हैं, तो वर्क और फैमिली वीजा की सालाना सीमा तय करेंगे. तस्वीर: Peter Nicholls/Getty Images

ब्रिटेन के प्रधानमंत्री ऋषि सुनक वादा कर रहे हैं कि अगर उनकी कंजरवेटिव पार्टी चुनाव जीतती है, तो वह आप्रवासन में कमी लाएंगे. चुनावी सर्वेक्षणों में विपक्षी लेबर पार्टी 20 पॉइंट से ज्यादा की बढ़त में दिख रही है. चुनावों में पिछड़ते सुनक को उम्मीद है कि आप्रवासन नीति पर सख्त रुख अपनाने से उन्हें लेबर पार्टी के मुकाबले फायदा हो सकता है.

क्यों बड़ा मुद्दा है आप्रवासन?

ब्रिटेन में लंबे समय से आप्रवासन नीति बड़ा राजनीतिक मुद्दा रही है. कई मतदाता चिंता जताते हैं कि आप्रवासियों के बड़ी संख्या में आने से घरों की कमी हो जाती है. घरों की कीमतें भी बढ़ जाती हैं. साथ ही, शिक्षा और सरकारी स्वास्थ्य सेवा पर भी बहुत दबाव पड़ता है. कई लोग सामाजिक एकजुटता को भी नुकसान पहुंचने का दावा करते हैं.

2010 में तत्कालीन प्रधानमंत्री और कंजरवेटिव पार्टी के नेता डेविड कैमरन ने आप्रवासन घटाने का संकल्प लिया था. हालांकि, वह अपने तय किए लक्ष्य के करीब भी नहीं पहुंच पाए. 2015 में नेट माइग्रेशन 3,29,000 पर पहुंच गया. ऐसे में 23 जून, 2016 को यूरोपीय संघ (ईयू) से अलग होने के सवाल पर हुए जनमत संग्रह में भी आप्रवासन बड़ा मुद्दा रहा.

अन्य यूरोपीय देशों से ब्रिटेन आने वाले लोगों की मुक्त आवाजाही रोकने की मांग ने ब्रेक्जिट रेफरेंडम में अहम भूमिका निभाई. 52 फीसदी प्रतिभागियों ने ईयू से अलग होने का समर्थन किया. ब्रेक्जिट समर्थकों का दावा था कि इससे ब्रिटेन को अपनी सीमाओं को पूरी तरह नियंत्रित करने में मदद मिलेगी.

रॉयल नेशनल लाइफबोट इंस्टिट्यूशन की एक नाव इंग्लिश चैनल पार करने की कोशिश कर रहे लोगों की मदद करती हुई.
कानूनी तरीके से होने वाले आप्रवासन से इतर असाइलम यानी शरण मांगने वालों से जुड़ा मुद्दा भी जोरों पर है. बड़ी संख्या में लोग नावों से इंग्लिश चैनल पार कर ब्रिटेन में दाखिल होने की कोशिश करते हैं. तस्वीर: Ben Stansall/AFP

क्या है नेट इमिग्रेशन?

नेट इमिग्रेशन ब्रिटेन में प्रवासन का स्तर मापने का आम तरीका है. इसमें सिर्फ देश में आने वालों की संख्या ही नहीं, बल्कि देश छोड़कर जाने वालों की संख्या भी गिनी जाती है. इसके कारण आबादी में होने वाली वृद्धि में आप्रवासियों की हिस्सेदारी को समझा जाता है.

ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी की माइग्रेशन ऑब्जरवेट्री के मुताबिक, इस तरीके से होने वाली गणना में कमियां भी हैं. मसलन, इससे कौन आ रहा है, कौन जा रहा है और इससे कैसा असर पड़़ रहा है, इस बारे में सटीक जानकारी नहीं मिलती. साथ ही, अगर छोटी अवधि के दौरान आप्रवासन के स्वरूप में बड़ा बदलाव आए, तो नेट इमिग्रेशन से गणना में भ्रामक नतीजे भी मिल सकते हैं.

क्या हैं ताजा आंकड़े?

मई 2024 में जारी आधिकारिक डेटा के मुताबिक, पिछले साल नेट इमिग्रेशन 6,85,000 रहा. यह 2022 में 7,64,000 की रिकॉर्ड संख्या से कम था. इसकी बड़ी वजह मानवीय वीजा कार्यक्रम के तहत हांगकांग और यूक्रेन से आने वाले लोगों की संख्या में आई कमी को माना गया.

2023 में ब्रिटेन आने वालों में सबसे बड़ी संख्या भारतीयों की रही. इसके बाद नाइजीरिया और चीन के नागरिक थे. सरकार के मुताबिक, आप्रवासन की बड़ी संख्या की एक वजह ज्यादा छात्रों का ब्रिटेन आना और स्वास्थ्य क्षेत्र में काम करने वाले प्रवासी कर्मी और उनके परिवार हैं. जनवरी 2024 में पीएम सुनक ने आने वाले आप्रवासियों की संख्या में तीन लाख तक की कमी लाने के लिए नए नियम पेश किए.

इसके अंतर्गत, दूसरे देशों से आने वाले छात्र परिवार के सदस्यों को नहीं ला पाएंगे. स्वास्थ्य कर्मियों को भी आर्थिक तौर पर अपने ऊपर निर्भर लोगों को लाने की मनाही होगी. मई में सरकार ने बताया कि नए नियमों के कारण 2024 के शुरुआती चार महीनों में "स्टूडेंट डिपेंडेंट" श्रेणी के वीजा आवेदनों में पिछले साल की इसी अवधि के मुकाबले करीब 79 फीसदी की कमी देखी गई. इसी तर्ज पर हेल्थ और केयर सेक्टर के कर्मियों से जुड़े डिपेंडेंट वीजा आवेदनों में भी लगभग 58 प्रतिशत की कमी आई.

पीएम सुनक चुनाव से पहले अपना रवांडा असाइलम प्लान लागू नहीं कर सकेंगे. तस्वीर में, ब्रूक हाउस इमिग्रेशन रिमूवल सेंटर के बाहर एक प्रदर्शनकारी.
ब्रिटिश सरकार शरणार्थी का दर्जा मांगने वालों को रवांडा भेजना चाहती है. आवेदन की प्रक्रिया रवांडा में ही पूरी की जाएगी. अगर आवेदक को रिफ्यूजी का दर्जा मिलता है, तो उसे रवांडा में रहने की अनुमति मिलेगी. वरना, वे अन्य आधारों पर रवांडा में बसने के लिए आवेदन दे सकते हैं या किसी अन्य सुरक्षित देश जा सकते हैं. तस्वीर: Niklas Halle'n/AFP/ Getty Images

इमिग्रेशन के फायदे और लागत

जानकार कहते हैं कि आप्रवासन के फायदों और लागत को ठीक-ठीक आंकना मुश्किल है. एक ओर जहां आप्रवासियों की संख्या बढ़ने से सरकारी सेवाओं और सुविधाओं की मांग बढ़ जाती है, वहीं आप्रवासी टैक्स चुकाते हैं और कई तरह के आर्थिक फायदे भी देते हैं.

आप्रवासन के उच्च स्तर की आलोचना करने वाले कहते हैं कि इससे वेतन कम होता है, आबादी में तेज बदलाव समाज पर असर डालता है और यह एकीकरण को तकरीबन नामुमकिन बना देता है. आलोचक 2018 की वह रिपोर्ट भी गिनाते हैं, जिसमें संकेत दिया गया था 2016/17 के वित्तीय वर्ष में इमिग्रेशन की लागत 400 करोड़ पाउंड से ज्यादा रही थी.

हालांकि, माइग्रेशन ऑब्जरवेट्री की 2022 में आई एक रिपोर्ट बताती है कि ब्रिटेन पर माइग्रेशन का माली असर थोड़ा ही है और यह प्रवासियों के हालात पर निर्भर करता है. कुछ अध्ययन बताते हैं कि वेतन या रोजगार के स्तर पर विदेशी कामगारों का असर या तो बहुत मामूली रहा या बिल्कुल नहीं रहा.

ब्रिटेन में प्रशिक्षित उम्मीदवारों की सख्त कमी के कारण कई कंपनियों को खाली जगहें भरने में परेशानी हो रही है. रेन न्यूटन-स्मिथ, कन्फेडरेशन ऑफ ब्रिटिश इंडस्ट्री की प्रमुख हैं. उन्होंने कहा कि बस नेट माइग्रेशन के आंकड़ों पर ध्यान गड़ाने की जगह अर्थव्यवस्था की समूची जरूरतों को ध्यान में रखा जाना चाहिए. जैसे कामगारों की कमी.

चुनावी वादे

पीएम सुनक कह रहे हैं कि अगर वह जीतते हैं, तो वर्क और फैमिली वीजा की एक सालाना सीमा तय करेंगे. वहीं ब्रेक्जिट के प्रमुख पैरोकारों में रहे नीगेल फराज, जो अब दक्षिणपंथी रिफॉर्म पार्टी के प्रमुख हैं, नेट माइग्रेशन को शून्य तक लाने की बात कर रहे हैं. सर्वेक्षणों के मुताबिक, नीगेल की पार्टी सुनक की कंजरवेटिक पार्टी के वोट अपनी तरफ खींच रही है.

विपक्षी लेबर पार्टी का भी कहना है कि वह नेट माइग्रेशन को घटाएगी. पार्टी के मुताबिक, वह विदेशी कामगारों से निर्भरता घटाकर और घरेलू स्तर पर प्रशिक्षित कामगारों की कमी पर ध्यान देकर यह लक्ष्य हासिल करेगी.

भारत में बढ़ते म्यांमार के शरणार्थी

शरणार्थी भी बड़ा मुद्दा

कानूनी तरीके से होने वाले आप्रवासन से इतर असाइलम यानी शरण मांगने वालों से जुड़ा मुद्दा भी जोरों पर है. शरण मांगने वालों को ब्रिटेन पहुंचने से रोकने का मुद्दा राजनीतिक तौर पर भी काफी गर्माया हुआ है.

शरण पाने की तलाश में लोग छोटी नावों की मदद से बिना इजाजत इंग्लिश चैनल पार करके यूरोप की ओर से आते हैं. इस रास्ते आने वालों को वापस रवांडा भेजने की पीएम सुनक की योजना चुनाव से पहले लागू नहीं हो सकी. लेबर पार्टी इस नीति को खत्म करने की बात कह रही है.

पिछले साल 29,000 से ज्यादा लोग छोटी नावों में बैठकर ब्रिटेन पहुंचे थे. 2022 में यह संख्या 45,775 के रिकॉर्ड स्तर पर थी. इस साल भी 10 हजार से ज्यादा लोग चैनल पार कर चुके हैं. असाइलम के आवेदनों से जुड़़ी प्रक्रिया में ब्रिटेन हर साल 300 करोड़ पाउंड से ज्यादा खर्च कर रहा है. आवेदनों पर फैसला लिए जाने तक आवेदकों को होटल या कहीं और ठहराने के इंतजामों में भी करीब 80 लाख पाउंड रोजाना खर्च होते हैं.

एसएम/वीएस (रॉयटर्स)