जर्मन सेना की खुफिया मीटिंग का ऑडियो कैसे पहुंचा रूस के पास
४ मार्च २०२४रक्षा मंत्री का यह बयान रूसी मीडिया द्वारा 1 मार्च को जारी की गई एक ऑडियो रिकॉर्डिंग से जुड़ा है. इस 38 मिनट के ऑडियो में जर्मनी के वरिष्ठ सैन्य अधिकारियों की एक बैठक की रिकॉर्डिंग है. यूक्रेन में जारी युद्ध से जुड़ी इस बैठक में हुई बातचीत गोपनीय थी.
जर्मनी के रक्षा मंत्रालय ने पुष्टि की है कि "वायु सेना से जुड़ी बातचीत" को इंटरसेप्ट किया गया. मंत्रालय ने बताया है कि जर्मनी की मिलिट्री काउंटरइंटेलिजेंस सर्विस यह पता लगाने की कोशिश कर रही है कि रूस ने उक्त बातचीत को चुपके से कैसे सुना और रिकॉर्ड किया.
ऑडियो में क्या है?
सबसे पहले रूस की सरकारी मीडिया 'आरटी' की प्रमुख माग्रेरीटा सीमनयन ने 1 मार्च को अपने टेलिग्राम चैनल पर यह ऑडियो जारी किया. उन्होंने दावा किया कि इसमें जर्मन वायु सेना के प्रमुख लेफ्टिनेंट जनरल इंगो गेहार्ट्ज समेत जर्मनी के वरिष्ठ सैन्य अधिकारियों की बातचीत रिकॉर्ड है. इसमें कथित तौर पर चर्चा की गई थी कि क्रीमिया पुल को कैसे निशाना बनाया जाए.
क्रीमिया पूर्वी यूरोप में एक प्रायद्वीप है. यह यूक्रेन का हिस्सा है, जिस पर 2014 में रूस ने कब्जा कर लिया था. क्रीमिया ब्रिज, रूस को क्रीमिया से जोड़ता है. यूक्रेन में जारी युद्ध में रूसी सप्लाई और सैनिकों की आवाजाही में यह पुल काफी अहम माना जाता है. इसके अलावा क्रीमिया में ईंधन, खाद्य पदार्थ और बाकी आपूर्तियों के लिए भी यह पुल महत्वपूर्ण है.
टॉरस मिसाइलों का भी जिक्र
रिकॉर्डिंग में टॉरस क्रूज मिसाइलों पर बातचीत भी शामिल है. ऑडियो में चर्चा हुई है कि क्या यह मिसाइल एक पुल को नष्ट कर पाएग. माना जा रहा है कि यह संदर्भ क्रीमिया पुल से जुड़ा है. यूक्रेन चाहता है कि जर्मनी उसे टॉरस मिसाइल दे. टॉरस केईपीडी-350 मिसाइलें, जर्मन सेना द्वारा इस्तेमाल की जा रही सबसे अत्याधुनिक हथियार प्रणाली मानी जाती है.
पांच मीटर लंबा और करीब डेढ़ टन वजनी यह मिसाइल लड़ाकू विमानों द्वारा हवा से ही दागा जा सकता है. यह करीब 1,170 किलोमीटर प्रति घंटे की रफ्तार से बढ़ता है और तकरीबन 500 किलोमीटर की दूरी तक के निशाने पर जा सकता है. चूंकि यह लंबी दूरी का मिसाइल केवल 35 मीटर की ऊंचाई पर सफर करता है, ऐसे में किसी रेडार सिस्टम के लिए इसकी पहचान करना लगभग नामुमकिन है.
जर्मन चांसलर ओलाफ शॉल्त्स हालिया महीनों में कई बार संकेत दे चुके हैं कि जर्मनी फिलहाल यूक्रेन को टॉरस मिसाइल नहीं दे रहा है. उन्होंने फरवरी में भी रेखांकित किया कि यूक्रेन को ये मिसाइल देने को मंजूरी ना देने की दो मुख्य वजहें हैं. पहला, मिसाइल की रेंज. और दूसरा कारण यह कि इस मिसाइल को चलाने में जर्मन सेना के मदद की जरूरत पड़ सकती है. इसे सीधे या परोक्ष तौर पर जर्मनी की युद्ध में हिस्सेदारी के तौर पर देखा जा सकता है.
जर्मनी की प्रतिक्रिया
जर्मन रक्षा मंत्रालय की एक प्रवक्ता ने कहा, "हमारे मूल्यांकन के मुताबिक, वायु सेना के एक विभाग में हुई बातचीत को चुपके से सुना गया. अभी हम पुख्ता तौर पर नहीं कह सकते कि सोशल मीडिया पर जो साझा किया जा रहा है, उस रिकॉर्डेड या ट्रांसक्राइब्ड संस्करण में कुछ बदलाव किया गया या नहीं."
रक्षा मंत्री पिस्टोरियस ने कहा है कि इस रिकॉर्डिंग को अभी जारी करना संयोग नहीं है. उन्होंने कहा, "यह पुतिन द्वारा छेड़े गए सूचना युद्ध का हिस्सा है. इसमें कोई शक नहीं है. यह गलत जानकारी फैलाने की मंशा से किया गया एक हाइब्रिड हमला है. इसका मकसद हमारे संकल्प को कमजोर करना है." पिस्टोरियस ने यह भी कहा कि रूस, जर्मनी को अस्थिर करना चाहता है. उन्होंने कहा कि सेना इस प्रकरण की जांच कर रही है.
जर्मनी के चांसलर ओलाफ शॉल्त्स ने वरिष्ठ जर्मन सैन्य अधिकारियों की गोपनीय बातचीत में हुई सेंधमारी और संभावित लीक को "बेहद गंभीर" बताया है. उन्होंने इस मामले की विस्तृत जांच की भी बात कही है. जर्मन पत्रिका श्पीगल के मुताबिक, रिकॉर्डिंग में जिस बैठक की बात है, वह वीडियोकॉन्फ्रेंसिंग के माध्यम से हुई थी. इसे वेबएक्स प्लेटफॉर्म पर आयोजित किया गया, ना कि सेना के गुप्त आंतरिक नेटवर्क पर.
रूस ने क्या कहा?
रूसी न्यूज एजेंसी टीएएसएस के मुताबिक, इस मामले में 4 मार्च को रूसी विदेश मंत्रालय ने मॉस्को में नियुक्त जर्मन राजदूत आलेक्जांडर लांब्सडोर्फ को तलब किया. पिछले हफ्ते रूसी विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता ने सोशल मीडिया पर कहा था कि वो इस मामले में जर्मनी से स्पष्टीकरण की मांग करते हैं. रूस के विदेश मंत्री सर्गई लावरोव ने भी 2 मार्च को इस प्रकरण पर पत्रकारों से बात की. उन्होंने आरोप लगाया कि "ऑडियो रिकॉर्डिंग के सामने आने से बुंडेसवेयर (जर्मनी की सेना) की शातिर योजना स्पष्ट हो गई."
रूसी विदेश मंत्रालय की एक प्रवक्ता ने कहा कि जर्मनी को तुरंत स्पष्टीकरण देना चाहिए और अगर वह जवाब देने से बचता है, तो माना जाएगा कि वह अपना दोष कबूल रहा है. समाचार एजेंसी रॉयटर्स के मुताबिक, रूस की सुरक्षा परिषद के उपाध्यक्ष और पूर्व राष्ट्रपति दिमित्री मेद्वेदेव ने आरोप लगाया कि संबंधित रिकॉर्डिंग से संकेत मिलता है कि बर्लिन, मॉस्को से लड़ाई की तैयारी कर रहा था.