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समाजएशिया

दिल्ली की झुग्गी बस्ती में कोरोना काल में शिक्षा

१० जुलाई २०२०

राजधानी दिल्ली में अनेक झुग्गी बस्तियां हैं, जहां हजारों बच्चे रहते हैं. स्कूल बंद होने की वजह से उनकी पढ़ाई भी बंद हो गई है लेकिन ऐसे कुछ लोग आगे कर उन्हें पढ़ाने का काम कर रहे हैं.

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Indien - Projekt Save child beggar
तस्वीर: DW/A. Ansari

पूर्वी दिल्ली के अधूरे बने फ्लाईओवर के नीचे झुग्गी बस्ती में पुआल की झोपड़ियों के सामने सत्येंद्र पाल एक सफेद बोर्ड के पास खड़े हैं. उनके सामने कुछ बच्चे बैठे हैं जो मुंह पर मास्क लगाए हुए हैं और पाल की ओर देख रहे हैं. यह पाल का ओपन एयर क्लासरूम है, जहां वे बच्चों को किसी तरह से पढ़ाने की कोशिश कर रहे हैं. कोरोना वायरस के संक्रमण को फैलने से रोकने के लिए भारत में चार महीने पहले स्कूल बंद कर दिए गए थे. बड़े स्कूलों के छात्रों के लिए लॉकडाउन के दौरान ऑनलाइन शिक्षा व्यवस्था तो जारी है लेकिन उन बच्चों के लिए मुश्किलें खड़ी हो गई हैं जो नगर निगमों या फिर छोटे निजी स्कूलों में जाकर शिक्षा हासिल करते थे.

हाल के सप्ताहों में लॉकडाउन में ढील दी गई है लेकिन लगता नहीं कि स्कूल जल्द खुलेंगे. जानकार चेतावनी देते आए हैं कि भारत को महामारी के चरम पर पहुंचने में भी कुछ और महीने हैं. सरकार ने कक्षाओं को ऑनलाइन कराने पर जोर दिया है लेकिन सरकार की 2017-18 की रिपोर्ट कहती है कि देश में 23.8 फीसदी घरो में ही इंटरनेट है. उत्तर प्रदेश के एक गांव के रहने वाले पाल कहते हैं कि उन्हें बच्चों को पढ़ाने की प्रेरणा बौद्ध धर्म में उनकी आस्था के कारण मिली. बच्चों को पढ़ाई के बदले पाल को कुछ नहीं देना पड़ता है.

पाल कहते हैं, "वे जो भी दे हैं मैं ले लेता हूं." पाल के छात्र झुग्गी बस्ती में रहते हैं और बच्चे पढ़ाई के बाद खेतों में अपने माता-पिता का हाथ बंटाते हैं. यहां बिजली की सप्लाई नहीं है और पानी की आपूर्ति अनियमित है. सरकारी स्कूल में पढ़ने वाली 10वीं की छात्र प्रीति कहती है, "हमारे स्कूलों में ऑनलाइन क्लास की सुविधा है लेकिन यहां सही तरीके से इंटरनेट उपलब्ध नहीं है. मैं खुद से पढ़ाई नहीं कर सकती हूं. मुझे वायरस को लेकर डर तो लगता है लेकिन मुझे परीक्षा की भी चिंता है."

साल 2015 में पाल ने झुग्गी बस्ती में एक पेड़ के नीचे दर्जनों बच्चों को पढ़ाने का काम शुरू किया था, लेकिन इस साल की शुरूआत में उनके पास पढ़ने आने वाले बच्चों की संख्या 300 के करीब पहुंच गई. बस्ती में रहने वाले लोगों की मदद से उन्होंने इनडोर क्लासरूम एक झोपड़ी के भीतर बनाया. डेस्क और कुर्सियां उन्हें किसी ने दान में दे दीं.

पाल कहते हैं कि उन्होंने मार्च में क्लास बंद कर दी. उनके मुताबिक, "उस समय कोरोना की वजह से माहौल खतरनाक था. लेकिन अभिभावकों ने मुझसे बच्चों को दोबारा पढ़ाने की गुजारिश की."

पाल ने जुलाई से सीमित छात्रों के साथ कक्षाएं शुरू की ताकि सोशल डिस्टैंसिंग का पालन हो सके. कुछ स्वयंसेवी संगठन मास्क और सैनेटाइजर दान करते हैं. पाल के अनुसार उनके माता-पिता कहते हैं कि वह कुछ और काम करंगे तो बेहतर कमाई कर सकते हैं. पाल कहते हैं, "मैं पैसे कमाना चाहता हूं, लेकिन मैं सिर्फ अपने ऊपर ध्यान केंद्रित करूंगा तो सिर्फ मैं ही पैसे कमा पाऊंगा लेकिन मैं इन बच्चों की मदद करना चाहता हूं."

एए/सीके (रॉयटर्स)

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