गरीबी की ऐसी मारः सड़कों पर ठेले लगाने को मजबूर चीनी
३० मई २०२३शंघाई के एक व्यस्त बाजार में वांग चुनशियांग ठेला लगाती हैं लेकिन हर वक्त डरी रहती हैं. उन्हें डर रहता है कि कभी भी अधिकारी आकर उनके ठेले को जब्त कर लेंगे. पेस्ट्री बेचने वालीं वांग ने छह साल बाद ठेला लगाया है कि क्योंकि नौकरी में इतनी तनख्वाह नहीं मिल रही थी कि उससे घर चलाया जा सके.
43 साल की वांग कहती हैं, "वेतन तो बहुत ही कम है. मेरी उम्र में बिना किसी कौशल के, मैं एक सफाईकर्मी के तौर पर काम करती थी और पांच-छह हजार युआन (करीब 70 हजार रुपये महीना) कमा रही थी. शंघाई में किराया इतना महंगा है. खराब से घर भी दो-तीन हजार युआन से कम में नहीं मिलते हैं.”
ठेले पर पेस्ट्री बेचकर एक अच्छे महीने में यानी जब खूब माल बिकता है, तब 15 युआन प्रति बॉक्स के हिसाब से वह लगभग दस हजार युआन यानी डेढ़ लाख भारतीय रुपये तक कमा लेती हैं.
समझ रहा है प्रशासन
कोविड महामारी के सख्त लॉकडाउन से निकल कर चीन में जिंदगी पटरी पर आने लगी है तो अब फेरीवाले भी सड़कों पर उतर रहे हैं. हालांकि अर्थव्यवस्था की वापसी ऊंची-नीची है, इसलिए अपनी आय में कुछ इजाफा करने के लिए ये लोग ठेले पर रखकर सामान बेचने जैसे कामों की मदद ले रहे हैं.
दशकों तक चीन के शहरों में ठेलेवालों पर प्रतिबंध रहा है क्योंकि अधिकारी मानते हैं कि इनका होना अच्छा नहीं दिखता. लेकिन अब ऐसे संकेत मिल रहे हैं कि स्थानीय प्रशासन ठेले वालों को लेकर नरमी बरत रहे हैं और ऐसा आने वाले कुछ समय तक जारी रह सकता है.
पूर्वी चीन में जीबो तब सुर्खियों में छा गया था जब पर्यटकों की भीड़ ठेलों पर खाना खाने को उमड़ पड़ी थी और प्रशासन को अधिक भीड़ के लिए चेतावनी जारी करनी पड़ी थी.
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देश में तकनीक के केंद्र कहे जाने वाले शेनजेन में फेरीवालों को 1999 में ही बैन कर दिया गया था. अब सितंबर से यह प्रतिबंध हटाये जाने का ऐलान हुआ है. शंघाई ने भी इस बारे में आम जनता से राय मांगी है. अप्रैल में उसने कहा कि 74 जगहों पर ठेलेवालों को कारोबार की इजाजत देने पर विचार किया जा सकता है.
उत्तर-पश्चिम में लानजू शहर के प्रशासन ने कहा है कि वह उद्यमशीलता और विकास को बढ़ावा देने के लिए शहर में ठेले लगाने के लिए कुछ खास जगह उपलब्ध कराएगा.
जोन्स लैंग लैजली थिंक टैंक के मुख्य अर्थशास्त्री ब्रूस पांग कहते हैं, "स्थानीय प्रशासन के लिए ठेले और फेरीवालों को सुविधाएं देना स्वाभाविक है क्योंकि वे रोजगार और अर्थव्यवस्था को स्थिर करने के लिए खासी मशक्कत कर रहे हैं.”
महामारी की मार
इस साल की पहली तिमाही में घरेलू आय 3.8 फीसदी की दर से बढ़ी है, जो आर्थिक विकास दर से काफी कम है. रोजगार बाजार भी धीमा है और युवाओं के बीच बेरोजगारी रिकॉर्ड स्तर पर पहुंच गई है. आर्थिक दबाव इतना है कि ठेले और फेरीवाले अधिकारियों द्वारा जुर्माने और सामान जब्त करने जैसे खतरे उठाने को भी तैयार हैं.
28 वर्षीय वांग शु शु शंघाई में अपने स्कूटर पर फूल बेचती हैं. हालांकि वह अपना सामान उन तय जगहों से बाहर बेचना पसंद करती हैं क्योंकि तय जगहों के लिए वहां की फीस और अन्य शुल्क बहुत ज्यादा हैं.
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अब तक फूलों की एक दुकान में नौकरी करती रहीं वांग कहती हैं, "बेशक, अधिकारी हमें पकड़ने की कोशिश करते हैं. नहीं तो हम इतनी तेजी से ना भागते.”
बीजिंग में भी, जिसे राष्ट्रपति शी जिनपिंग ने राजनीतिक केंद्र के रूप में बनाए रखने की बात कही है और जहां ठेले-फेरीवालों के लिए कोई जगह नहीं है, वहां भी पर्यटक स्थलों पर सामान बेचते फेरीवाले नजर आने लगे हैं.
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लू वेई पेन बेचते हैं. महामारी से पहले उनकी अपनी दुकान थी लेकिन 2020 में उसकी लीज रद्द हो गई क्योंकि बिक्री बहुत कम हो गई थी और वह किराया भी नहीं चुका पा रहे थे. अब वह बीजिंग होहाई झील के किनारे 30 युआन प्रति पेन बेचने के लिए आवाजें लगाते नजर आते हैं. हालांकि वह बताते हैं कि धंधा मंदा ही है.
लू कहते हैं, "लोगों की जेब में पैसे ही नहीं हैं. और हैं भी तो वे उसे खर्च नहीं करना चाहते.”
वीके/एए (रॉयटर्स)