क्या चीन फिर बचा पाएगा दुनिया की अर्थव्यवस्था को?
१५ मई २०२३दुनिया की अर्थव्यवस्था मंदी के मुहाने पर खड़ी है. तमाम बड़ी अर्थव्यवस्थाएं स्थिरता के लिए जूझ रही हैं. 2008 की मंदी के बाद दुनिया की अगुआ रही चीनी अर्थव्यवस्था की हालत भी कमजोर है. हालांकि पश्चिमी विशेषज्ञ उम्मीद कर रहे हैं कि चीन की अर्थव्यवस्था में सुधार होगा लेकिन क्या वाकई चीन इस बार भी दुनिया को मंदी से बचा पाएगा?
पिछले साल दिसंबर में चीन ने जीरो-कोविड नीति को छोड़ा और तब से उसकी अर्थव्यवस्था के चक्के चलने लगे. लेकिन इन चक्कों के घूमने की रफ्तार बेहद धीमी रही है. अप्रैल तक चीन में आयात समझौतों में 7.9 फीसदी की तेज गिरावट देखी गई है जबकि निर्यात भी 8.5 फीसदी की धीमी गति से बढ़ा है. मार्च में यह 14.8 फीसदी रहा था. अप्रैल में उपभोक्ता कीमतों की वृद्धि दो साल में सबसे कम रही है जबकि थोक कीमतों में भी कमी आई है.
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उधर बैंकों से नए कर्जों की दर में अनुमान से कहीं ज्यादा गिरावट देखी गई. पिछले महीने चीनी बैंकों ने 718.8 अरब युआन यानी लगभग 104 अरब डॉलर के कर्ज दिए जो मार्च के कुल कर्जों का पांचवां हिस्सा भी नहीं है.
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लंदन स्थित स्कूल ऑफ ऑरिएंटल एंड अफ्रीकन स्ट्डीज में चाइना इंस्टिट्यूट के निदेशक स्टीव सांग कहते हैं, "ऐसा नहीं है कि चीन की अर्थव्यवस्था ध्वस्त होने वाली है लेकिन 2010 की दोहरे अंकों वाली विकास दर का भी कोई इमकान नहीं है.”
अगर चीन की अर्थव्यवस्था में सुधार होता है तो दुनिया के अन्य हिस्सों में भी धीमी पड़ती विकास दर कुछ संभल पाएगी, जो पिछले करीब डेढ़ साल से लगातार बढ़ती ब्याज दरों की मार झेल रही है.
2008-09 की वैश्विक मंदी से उबरने में चीन की अर्थव्यवस्था ने दुनिया की बड़ी मदद की थी. इसका मुख्य कारण ढांचागत योजनाओं के विकास के लिए कच्चे माल का आयात रहा था, जिसने पश्चिमी देशों की मदद की थी. लेकिन बीते सालों में किए गए विकास कार्यों के कारण चीन कर्ज के पहाड़ तले दबा हुआ है. मार्च में अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष ने चेताया था कि चीन की स्थानीय सरकारों का कर्ज ही 66 खरब युआन यानी देश की कुल जीडीपी के आधे तक पहुंच चुका है.
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सांग कहते हैं कि वे पश्चिमी नीति-निर्माता जो चीन की अर्थव्यवस्था में सुधार की दुआ कर रहे हैं उन्हें अब "बिना किसी पक्षपात के नई राजनीतिक और आर्थिक असलियत की ओर देखना होगा.”
ताइवान पर अलग-थलग पड़ता चीन
चीन की ताइवान पर आक्रमण की धमकी पश्चिम को परेशान करती रही है. बीजिंग और मॉस्को के बेहतर होते रिश्तों ने भी इस परेशानी को बढ़ाया ही और ऐसा तब है जबकि यूक्रेन युद्ध के कारण पश्चिमी अर्थव्यवस्थाएं पहले से ही मुश्किल में हैं.
सिंगापुर के इनसीड बिजनेस स्कूल में अर्थशास्त्र पढ़ाने वाले प्रोफेसर पुशन दत्त कहते हैं, "ताइवान के कारण युद्ध का बढ़ता तनाव बड़े बदलाव का वाहक बनेगा. दुनिया की कई अंतरराष्ट्रीय कंपनियां चीन से निकल जाएंगी. उसका निर्यात बाजार बंद हो जाएगा और प्रतिबंध लगा दिए जाएंगे.”
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डॉनल्ड ट्रंप की सरकार के दौरान चीन के साथ अमेरिका के आर्थिक रिश्तों में तनाव का बढ़ना बाइडेन प्रशासन के दौरान भी जारी रहा. बदले की कार्रवाइयों के तहत अमेरिका ने चीन की कंपनियों और अधिकारियों पर पाबंदियां लगा रखी हैं. अमेरिका ने तो राष्ट्रीय सुरक्षा को आधार बनाकर चीन की सेमीकंडक्टर और आर्टिफिशियल तकनीकों के विकास को लेकर भी आलोचना की है.
सांग कहते हैं, "चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग की आक्रामक विदेश नीति के कारण अमेरिका और अन्य पश्चिमी देशों ने चीन से अपने आर्थिक रिश्तों को कम करना शुरू कर दिया है जिसका असर यह हुआ है कि चीन की पहले तेजी से बढ़ती अर्थव्यवस्था पर असर दिखाई दे रहा है.”
पश्चिमी नीति-निर्माता चीन के बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव को अपने हितों के लिए एक खतरे के रूप में देखते हैं. अक्सर न्यू सिल्क रोड कहे जाने वाली इस योजना के तहत 150 देशों में सड़कों, पुलों, बंदरगाहों और अस्पतालों के विकास पर 840 अरब डॉलर का खर्च होना है. लेकिन पश्चिमी देशों का कहना है कि इन योजनाओं के नाम पर चीन विकासशील देशों को कर्ज के जाल में फांस रहा है और पश्चिमी देशों से उनके रिश्तों को कमजोर कर रहा है.
पिछले महीने यूरोपीय सेंट्रल बैंक की अध्यक्ष क्रिस्टीन लगार्द ने भी ऐसी आशंका जताई थी कि वैश्विक अर्थव्यस्था चीन और अमेरिका के बीच दो धड़ों में बंट सकती है, जिससे विकास दर प्रभावित होगी और मुद्रास्फीति बढ़ेगी.
चीन की विकास नीति
चीन की विकास दर धीमी होने की एक अन्य वजह उसकी आर्थिक नीतियों में बदलाव को बताया जा रहा है. चीन अपने यहां ऐसे बदलाव कर रहा है जिसके तहत आर्थिक विकास संख्या नहीं बल्कि गुणवत्ता पर आधारित हो. लेकिन इन सुधारों में वक्त लगेगा.
दत्त कहते हैं, "चीन एक सस्ते निर्माता से भविष्य के उद्योगों जैसे एआई, रोबोटिक्स और सेमीकंडक्टर जैसे क्षेत्रों में दुनिया की अग्रणी अर्थव्यस्था बनने की कोशिश कर रहा है. जैसे-जैसे यह सरकारी कंपनियों द्वारा भारी उद्योग पर आधारित अर्थव्यस्था से इनोवेशन और घरेलू उपभोग आधारित अर्थव्यवस्था की ओर बढ़ेगा, विकास दर में कुदरती तौर पर कमी होगी.”
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सांग कहते हैं कि राष्ट्रपति शी अपनी अर्थव्यस्था को ज्यादा मजबूत और गतिशील तो बनाना चाहते हैं लेकिन "उनकी नीतियों का अक्सर उलटा ही असर होता है.” वह कहते हैं, "शी सत्ता पर अपनी पकड़ मजबूत कर रहे हैं और गलतियों को स्वीकार नहीं कर रहे हैं, तो वहां के तकनीकी-तंत्र के लिए व्यवहारिक रूप से यह असंभव हो गया है कि अर्थव्यवस्था में जान डालने के लिए जरूरी बदलाव कर सकें.”
हालांकि आईएमएफ का अनुमान है कि चीन अगले पांच साल तक वैश्विक अर्थव्यवस्था का सबसे बड़ा वाहक बना रहेगा और दुनिया के विकास में उसका योगदान 22.6 फीसदी होगा, जो अमेरिका के 11.3 फीसदी के योगदान सो दोगुना है. लेकिन पश्चिमी जगत में कमजोर होती मांग का असर चीन के निर्यात पर भी पड़ेगा.