सेहत, खाना और जेबः सबको प्रभावित करेगा अल नीनो
१४ अगस्त २०२३कई साल बाद 2023 में अल नीनो लौटा है और विश्व मौसम संगठन के मुताबिक पिछले महीने इसकी शुरुआत हो चुकी है. प्रशांत महासागर में अधिक तापमान के साथ शुरू होने वाला यह प्रभाव अक्सर 9 से 12 महीने तक रहता है और साल के आखिर में इसका असर सबसे ज्यादा होने की संभावना है.
वैज्ञानिकों की चेतावनी है कि पहले ही ग्लोबल वॉर्मिंग से जूझ रही दुनिया में अल नीनो का असर घातक हो सकता है. मसलन, इसकी वजह से मलेरिया और डेंगू जैसी बीमारियां फैल सकती हैं, जो अधिक तापमान पर ज्यादा सक्रिय हो जाती हैं.
वेलकम ट्रस्ट चैरिटी नामक संस्था में जलवायु प्रभाव विभाग की प्रमुख मैडलिन थॉमसन ने अमेरिका में पत्रकारों से बातचीत में कहा, "पहले जब अल नीनो प्रभाव आया तो हमने पानी से पैदा होने वाली बीमारियों और अन्य संक्रामक रोगों के प्रसार में वृद्धि देखी थी.”
सेहत पर असर
अल नीनो के कारण दो चीजें एक साथ बढ़ती हैं. पहली है बारिश, जिसकी मात्रा और बारंबारता बढ़ जाती है, और दूसरी है ऐसी जगहों की वृद्धि जहां पानी जमा होता है. इस कारण मच्छर आदि अधिक तापमान में पैदा होने वाले जीव बढ़ जाते हैं और संक्रामक रोग फैलते हैं. 1998 में जब अल नीनो आया था तो कई जगह मलेरिया महामारी बन गया था.
यह कहना मुश्किल है कि अल नीनो के कारण जंगल की आग जैसी घटनाओं में कितनी वृद्धि होती है लेकिन विशेषज्ञ मानते हैं कि खतरा बढ़ जाता है. बॉस्टन विश्वविद्यालय में जलवायु और स्वास्थ्य विभाग के अध्यक्ष ग्रेगरी वेलेनियस कहते हैं, "कई बार इसे खामोश कातिल कहा जाता है क्योंकि आपको इसका खतरा नजर नहीं आता. लेकिन हीट वेव के कारण किसी भी कुदरती आपदा से ज्यादा जानें जाती हैं.”
एक अनुमान के मुताबिक पिछली गर्मियों में सिर्फ यूरोप में गर्मी से 61 हजार लोगों की जान गयी थी, जबकि तब अल नीनो प्रभाव भी काम नहीं कर रहा था. इस साल जुलाई को इतिहास में अब तक का सबसे गर्म महीना आंका गया है.
फसलों पर असर
इंटरनेशनल रिसर्च इंस्टीट्यूट फॉर क्लाइमेट एंड सोसायटी के वॉल्टर बाएथगेन कहते हैं, "जिस साल अल नीनो सक्रिय होता है, उस साल दक्षिण और दक्षिण पूर्व एशिया जैसे इलाकों के कई देशों में खराब फसल होने की आशंका ज्यादा होती है.”
पिछले महीने ही भारत ने चावल की कुछ किस्मों के निर्यात पर प्रतिबंध लगा दिया था क्योंकि अनियमित मानसून और बाढ़ के कारण धान की फसलों को नुकसान पहुंचा और इस साल कम फसल होने की आशंका है.
शोधकर्ताओं के मुताबिक ऐसे कदमों का सीरिया और इंडोनेशिया जैसे देशों की अर्थव्यवस्थाओं पर बहुत बुरा असर पड़ता है क्योंकि वे चावल के लिए निर्यात पर निर्भर हैं. बाएथगेन कहते हैं कि अल नीनो के कारण इन देशों पर ‘तिहरी मार' पड़ सकती है.
वह कहते हैं, "इन देशों में चावल का उत्पादन सामान्य से कम हो सकता है. और इस कारण अंतरराष्ट्रीय बाजार में चावल का व्यापार कम होगा. नतीजतन कीमतें बढ़ेंगी. इससे खाद्य सुरक्षा की स्थिति अत्याधिक प्रभावित होती है.”
अर्थव्यवस्था पर असर
अल नीनो व्यापार को किस तरह प्रभावित कर सकता है, इसका नमूना पिछले हफ्ते पनामा नहर में देखने को मिला, जो दुनियाभर के लिए सबसे अहम व्यापारिक मार्गों में से एक है. पिछले हफ्ते पनामा नहर प्रबंधन ने ऐलान किया कि बारिश कम हुई है और जहाजों की आवाजाही बाधित हो रही है. इस कारण प्रबंधन को 20 करोड़ डॉलर के नुकसान का अनुमान है.
अल नीनो दुनिया कि अर्थव्यवस्था को कितना नुकसान पहुंचा सकता है, पनामा नहर से गुजरने के लिए इंतजार में खड़े जहाज उसकी एक मिसाल हैं. मई में साइंस पत्रिका में प्रकाशित एक अध्ययन में कहा गया कि अल नीनो के कारण आने वाले सालों में वैश्विक अर्थव्यवस्था को 40 खरब डॉलर का नुकसान हो सकता है. हालांकि ऑक्सफर्ड यूनिवर्सिटी के अर्थशास्त्री इस आकलन से पूरी तरह सहमत नहीं हैं.
वेलेनियस कहते हैं, "कीमत भले स्पष्ट ना हो लेकिन वैज्ञानिक उम्मीद कर रहे हैं कि अल नीनो के पूर्वानुमान की व्यवस्था सुधरेगी, जिससे गर्म होती दुनिया को खतरों के प्रति तैयार किया जा सकेगा. आपदा प्रबंधन से ज्यादा प्रभावशाली तैयारी होती है.”
वीके/एए (एपी)