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कानून और न्यायभारत

भारत में 1 जुलाई से लागू होंगे तीन नए आपराधिक कानून

आमिर अंसारी
२६ फ़रवरी २०२४

भारत सरकार ने अधिसूचना जारी कर कहा है कि देश के तीन नए आपराधिक कानून 1 जुलाई 2024 से लागू होंगे. जानिए, क्या हैं ये कानून.

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भारतीय संसद ने पिछले साल तीन नए विधेयक पारित किए थे
भारतीय संसद ने पिछले साल तीन नए विधेयक पारित किए थेतस्वीर: India's Press Information Bureau/REUTERS

आपराधिक न्याय व्यवस्था से संबंधित तीनों नए कानून भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता 2023 (बीएनएसएस), भारतीय न्याय (द्वितीय) संहिता 2023 (बीएनएस) और भारतीय साक्ष्य (द्वितीय) अधिनियम 2023 एक जुलाई से लागू होंगे. गृह मंत्रालय ने इससे जुड़ी अधिसूचना 24 फरवरी को जारी कर दी.

इन तीनों कानूनों को पहले ही राष्ट्रपति की मंजूरी मिल गई थी. तब ये तीनों विधेयक कानून बन गए थे. अब इन्हें लागू करने की अधिसूचना जारी कर दी गई है. भारतीय न्याय संहिता, भारतीय नागरिक संहिता और भारतीय साक्ष्य अधिनियम अब पुराने भारतीय दंड संहिता, आपराधिक प्रक्रिया संहिता और साक्ष्य अधिनियम की जगह ले लेंगे.

हिट एंड रन से जुड़े प्रावधान पर अमल नहीं

लेकिन हिट एंड रन से जुड़े प्रावधान के अमल पर रोक रहेगी. भारतीय न्याय संहिता की धारा 106 (2) हिंट एंड रन से जुड़ी है. मोटर ट्रांसपोर्ट यूनियनों ने भारतीय न्याय संहिता की धारा 106 (2) पर आपत्ति जताते हुए विरोध प्रदर्शन किया था, जिसमें हिट एंड रन मामले में 10 साल की सजा और जुर्माने का प्रावधान है.

इस धारा में अगर आप तेज गति और लापरवाही से गाड़ी चलाकर किसी की मौत की वजह बनते हैं और पुलिस को सूचना दिए बिना भागते हैं तो सजा का प्रावधान है. ट्रक ड्राइवर्स इस प्रावधान के खिलाफ हैं.

सरकार ने कई बैठकों के बाद भरोसा दिया था कि इस धारा को लागू करने का फैसला ऑल इंडिया मोटर ट्रांसपोर्ट कांग्रेस के साथ चर्चा के बाद होगा.

भारतीय दंड संहिता, आपराधिक प्रक्रिया संहिता और साक्ष्य अधिनियम जो अंग्रेजों के जमाने से चला आ रहा है, उसकी जगह अब यह नए तीनों कानून ले लेंगे.

राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने 25 दिसंबर को कानूनों पर अपनी सहमति दी थी. राज्यसभा में कानूनों के पास होने के बाद गृह मंत्री अमित शाह ने कहा था, "संसद में पारित तीनों विधेयक, अंग्रेजों द्वारा लागू किए गए कानूनों की जगह लेंगे और एक स्वदेशी न्याय प्रणाली का दशकों पुराना सपना साकार होगा."

पहली बार आतंकवाद को परिभाषित किया गया

आतंकवाद शब्द को पहली बार भारतीय न्याय संहिता में परिभाषित किया गया है. यह आईपीसी में पहले मौजूद नहीं था. बीएनएस में आतंकवाद को धारा 113 (1) के तहत दंडनीय अपराध बनाया गया है. इस कानून में आतंकवाद की स्पष्ट परिभाषा दी है, राजद्रोह को अपराध के रूप में समाप्त कर दिया है और "राज्य के खिलाफ अपराध" नामक एक नया खंड जोड़ा गया है.

आतंकवाद से जुड़े अपराधों के लिए मौत की सजा या आजीवन कारावास से दंडनीय बना दिया गया है, इसमें पैरोल की सुविधा नहीं होगी.

बीएनएस, भारतीय दंड संहिता, 1860 के राजद्रोह प्रावधानों को निरस्त करता है. इसे भारतीय न्याय संहिता की धारा 152 से बदला गया है, राष्ट्र की एकता और अखंडता को खतरे में डालने वाले कृत्यों पर ध्यान केंद्रित करने वाली सभी धाराएं इसमें जोड़ी गईं हैं.

महिलाओं और बच्चों के खिलाफ अपराध

भारतीय न्याय संहिता में यौन अपराधों को संबोधित करने के लिए 'महिलाओं और बच्चों के खिलाफ अपराध' नामक एक चैप्टर जोड़ा गया है. इसके अलावा संहिता में 18 वर्ष से कम उम्र की महिलाओं के बलात्कार से संबंधित प्रावधानों में संशोधन की सिफारिश है.

18 वर्ष से कम उम्र की महिलाओं के साथ बलात्कार से संबंधित मामलों में आजीवन कारावास या मौत की सजा का प्रावधान किया गया है.

कानून के मुताबिक बलात्कार के दोषी को कम से कम 10 साल की कठोर कारावास की सजा का प्रावधान है, इस सजा को आजीवन कारावास तक बढ़ाया जा सकता है और जुर्माना भी लगाया जा सकता है.

इसके अलावा गैंगरेप के मामले में 20 साल की सजा या उम्रकैद की सजा का प्रावधान है. इसके अलावा शादी का बहाना, नौकरी का झांसा और पहचान बदलकर महिलाओं का यौन शोषण करने को अपराध माना जाएगा.

मॉब लिंचिंग के लिए उम्रकैद या मौत की सजा 

भारतीय न्याय संहिता में मॉब लिंचिंग और हेट क्राइम मर्डर के लिए आजीवन कारावास या मौत की सजा का भी प्रावधान किया गया है. यह उन मामलों से संबंधित है जहां पांच या अधिक लोगों की भीड़ "जाति, जाति या समुदाय, लिंग, जन्म स्थान, भाषा, व्यक्तिगत विश्वास या किसी अन्य समान आधार" के आधार पर हत्या करती है.

पहले के बिल में इस अपराध के लिए न्यूनतम सजा सात साल बताई गई थी. नए प्रावधानों को विधेयक की धारा 103 में शामिल किया गया है जो मॉब लिंचिंग और अपराधों से संबंधित अपराधों के लिए "हत्या की सजा" से संबंधित है.

भारतीय साक्ष्य (द्वितीय) अधिनियम 2023, को भारतीय साक्ष्य अधिनियम, 1872 की जगह लाया गया है. इसके तहत अदालतों में प्रस्तुत और स्वीकार्य साक्ष्य में इलेक्ट्रॉनिक या डिजिटल रिकॉर्ड, कंप्यूटर, स्मार्टफोन, लैपटॉप, एसएमएस, वेबसाइट, ई-मेल और उपकरणों पर संदेश शामिल होंगे.