जी-20 की अध्यक्षता का भारत के लिए क्या फायदा-नुकसान
१ दिसम्बर २०२२भारत ने गुरुवार से औपचारिक रूप से जी-20 की अध्यक्षता संभाल ली है. आज से अगले सात दिनों तक भारत के सभी यूनेस्को विश्व धरोहर स्थलों समेत एक सौ ऐतिहासिक स्मारकों को रोशनी से सजाया जाएगा. इन धरोहरों पर जी-20 की रोशनी वाले लोगो लगेंगे. दुनिया की सबसे बड़ी अर्थव्यवस्थाओं के मंच जी-20 की अध्यक्षता मिलने का जश्न भारत कुछ इस तरह मना रहा है.
देश के प्रमुख हिंदी और अंग्रेजी अखबारों में जी-20 की अध्यक्षता संभालने से जुड़ा विज्ञापन भी छपा है और देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अगले साल होने वाले जी-20 सम्मेलन पर लेख भी लिखा है. मोदी ने अपने लेख में लिखा, "भारत का जी-20 एजेंडा समावेशी, महत्वाकांक्षी, कार्रवाई-उन्मुख और निर्णायक होगा."
भारत में अगले साल 9 और 10 सितंबर को जी-20 की बैठकें होंगी. जी-20 का एजेंडा सभी देश मिलकर तय करेंगे लेकिन भारत ने संकेत दिया है कि सम्मेलन के केंद्र में ऊर्जा संकट और आतंकवाद दो अहम मुद्दे जरूर होंगे.
'मिलकर चुनौतियों का समाधान करें'
भारत सरकार ने आज देशभर के अखबारों में विज्ञापन दिए हैं. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नाम से एक लेख भी छपा है. इस लेख में मोदी ने लिखा, "आज, हमें अपने अस्तित्व के लिए लड़ने की जरूरत नहीं है, हमारे युग को युद्ध का युग होने की जरूरत नहीं है. ऐसा बिलकुल नहीं होना चाहिए. आज हम जलवायु परिवर्तन, आतंकवाद और महामारी जैसी जिन सबसे बड़ी चुनौतियों का सामना कर रहे हैं, उनका समाधान आपस में लड़कर नहीं बल्कि मिलकर काम करके ही निकाला जा सकता है."
भारतीय अधिकारियों का कहना है कि जी-20 की अध्यक्षता वैश्विक मामलों में नई दिल्ली की अग्रणी भूमिका को प्रदर्शित करने का अवसर प्रदान करेगी, विशेष रूप से ऐसे समय में जब दुनिया कई भू-राजनीतिक और आर्थिक संकटों का सामना कर रही है.
रूस और यूक्रेन युद्ध को लेकर मोदी पहले भी कह चुके हैं कि यह युद्ध का युग नहीं है और समस्या का समाधान बातचीत के जरिए किया जा सकता है. समरकंद में एससीओ की बैठक और उसके बाद बाली में जी-20 की बैठक में भी मोदी ने शांति के पथ पर लौटने की बात कही थी. साफ है कि मोदी युद्ध के खात्मे को लेकर कूटनीतिक और संवाद का संदेश अपने लेख के जरिए दे रहे हैं.
भारत की चुनौतियां
पिछले महीने इंडोनेशिया में आयोजित जी-20 सम्मेलन में रूस-यूक्रेन युद्ध का साया देखने को मिला था. रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन इस सम्मेलन में हिस्सा लेने नहीं पहुंचे थे और ऐसी आशंका है कि रूस-यूक्रेन संकट के अगले साल तक सामान्य होने की संभावना कम ही है. पूर्व राजदूत गुरजीत सिंह कहते हैं कि जब इंडोनेशिया ने इटली से जी-20 की अध्यक्षता का पद लिया तो उसे यह अंदाजा नहीं था कि यूक्रेन संकट होगा, वह उस वक्त कोरोना महामारी से जूझ रहा था. डीडब्ल्यू से बातचीत में गुरजीत सिंह कहते हैं, "चाहे वह कोरोना महामारी हो या फिर यूक्रेन संकट, कुछ भी आप पर प्रहार कर सकता है और फिर वही चुनौती बन जाती है. अभी हम अनुमान लगा सकते हैं कि समस्याएं क्या हैं और उनसे निपटने की कोशिश कर सकते हैं."
भारत को खराब रैंकिंग देने वाला वर्ल्ड हंगर इंडेक्स कैसे तैयार होता है
गुरजीत सिंह कहते हैं, "मान लीजिए कि ताइवान में समस्याएं हैं, तो हम उससे कैसे निपटेंगे क्योंकि वह हमारे क्षेत्र का मामला है. इसलिए हमें यह सुनिश्चित करने के लिए देखना होगा कि संवाद तंत्र खुले रहें और भरोसे का निर्माण किया जाए ताकि यूक्रेन जैसी बड़ी समस्या या ताइवान में हो सकने वाली बड़ी समस्या न पैदा हो."
अगर यूक्रेन पर परमाणु बम गिरा दिया गया तो क्या होगा?
जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय में विदेश नीति के प्रोफेसर हैप्पीमन जैकब डीडब्ल्यू से बातचीत में कहते हैं कि भारत एक साथ जी-20 और शंघाई सहयोग संगठन (एससीओ) दोनों का अध्यक्ष बन रहा है, भारत अगले साल एससीओ संगठन के अध्यक्ष के रूप में अगले एससीओ शिखर सम्मेलन की मेजबानी करने वाला है. जैकब के मुताबिक, "यहां तक कि भारत यूक्रेन संघर्ष में मध्यस्थता के बारे में अनिच्छुक है. इसके कार्यों और शब्दों का युद्ध के लिए वैश्विक प्रतिक्रियाओं और युद्ध के बाद की अंतरराष्ट्रीय स्थिति पर प्रभाव पड़ेगा. मेरा मानना है कि भारत का इन दो संस्थानों का अध्यक्ष होना महत्वपूर्ण है."
एजेंडा तय करेगा भारत
गुरजीत सिंह की ही तरह पूर्व भारतीय राजनयिक अनिल वाधवा भी मानते हैं कि भारत के सामने चुनौतियां होंगी. वाधवा का कहना है कि भारत को अपनी अध्यक्षता के दौरान कुछ प्रमुख चुनौतियों का सामना करना पड़ सकता है. उन्होंने डीडब्ल्यू से कहा, "जलवायु संकट बढ़ रहा है और यूक्रेन में संघर्ष जी-20 में आम सहमति बनाने के प्रयासों पर एक लंबी छाया डालेगा. संघर्ष की वजह से कई देश बढ़ते कर्ज, गरीबी, बढ़ते खाद्य और ऊर्जा संकट का सामना कर रहे हैं."
भारत के जी-20 शेरपा अमिताभ कांत ने एक दिन पहले संवाददाताओं से कहा, "यह पहली बार है जब भारत दुनिया के प्रभावशाली देशों का एजेंडा तय करेगा. अभी तक दुनिया के विकसित देश ही एजेंडा सेट करते थे." प्रधानमंत्री मोदी पहले ही कह चुके हैं कि भारत हर मुद्दे पर आम सहमति बनाने की कोशिश करेगा. हालांकि यह कार्य आसान नहीं है. बल्कि एक कठिन चुनौती है. इन्हीं कुछ चुनौतियों के साथ भारत जी-20 के अध्यक्ष के रूप में अपनी यात्रा शुरू कर रहा है.
मोदी ने कहा, "जी-20 अध्यक्षता के दौरान, हम भारत के अनुभव, ज्ञान और प्रारूप को दूसरों के लिए, विशेष रूप से विकासशील देशों के लिए एक संभावित टेंपलेट के रूप में पेश करेंगे. हमारी जी-20 प्राथमिकताओं को न केवल हमारे जी-20 भागीदारों, बल्कि वैश्विक दक्षिण में हमारे साथ-चलने वाले देशों, जिनकी बातें अक्सर अनसुनी कर दी जाती है, के परामर्श से निर्धारित किया जाएगा."