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राजनीतिसंयुक्त राज्य अमेरिका

भारत ने खारिज किया जापान का ‘एशियाई नाटो’ का प्रस्ताव

२ अक्टूबर २०२४

भारत के विदेश मंत्री एस. जयशंकर ने मंगलवार को कहा कि भारत जापान के नए प्रधानमंत्री शिगेरू इशिबा द्वारा प्रस्तावित "एशियाई नाटो" का समर्थन नहीं करता है.

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जापान में क्वाड के विदेश मंत्रियों की बैठक
तस्वीर: Kiyoshi Ota/POOL/AFP/Getty Images

अमेरिका के वॉशिंगटन में ‘कार्नेगी एंडॉमेंट फॉर इंटरनेशनल पीस' में एक कार्यक्रम के दौरान भारत के विदेश मंत्री एस. जयशंकर ने स्पष्ट किया कि भारत जापान की तरह सैन्य गठबंधनों पर निर्भर नहीं है और क्षेत्रीय सुरक्षा के लिए उसकी अपनी अलग रणनीति है.

भारतीय विदेश मंत्री ने कहा, "हम वैसे किसी रणनीतिक ढांचे के बारे में नहीं सोच रहे हैं." इशिबा के प्रस्ताव पर एक सवाल के जवाब में जयशंकर ने कहा कि भारत कभी भी किसी अन्य देश का औपचारिक सैन्य सहयोगी नहीं रहा है और यही स्थिति बनी रहेगी.

जयशंकर ने यह भी स्पष्ट किया कि जापान की सैन्य गठबंधनों की सोच से अलग, भारत अपने सहयोगियों के साथ स्वतंत्र रूप से काम करता है. उन्होंने कहा कि भारत के पास "एक अलग इतिहास और सुरक्षा को लेकर अलग नजरिया है."

जापान के नए प्रधानमंत्री शिगेरू इशिबा
तस्वीर: Eugene Hoshiko/AP Photo/picture alliance

भारत और जापान दोनों, अमेरिका और ऑस्ट्रेलिया के साथ मिलकर क्वॉड समूह का हिस्सा हैं, जो चीन के बढ़ते प्रभाव का मुकाबला करने के लिए बना एक समूह है. लेकिन जयशंकर ने स्पष्ट किया कि क्वॉड का मकसद एक सैन्य गठबंधन बनाना नहीं है. पिछले महीने ही अमेरिका में क्वाड देशों की बैठकहुई थी.

उन्होंने माना कि क्वॉड को चीन के खिलाफ संतुलन स्थापित करने के लिए बनाया गया है, लेकिन यह भी जोड़ा कि "क्वॉड को एक सैन्य संगठन के रूप में नहीं देखा जाना चाहिए."

जयशंकर की यह प्रतिक्रिया ऐसे समय में आई है जब जापान के प्रधानमंत्री शिगेरू इशिबा ने हाल ही में नाटो जैसा एक एशियाई सैन्य संगठन बनाने का प्रस्ताव दिया था, जिसे उन्होंने चीन, रूस और उत्तर कोरिया से बढ़ते खतरों का मुकाबला करने के लिए जरूरी बताया था.

इशिबा का एशियाई नाटो का प्रस्ताव

शिगेरू इशिबा ने वॉशिंगटन स्थित थिंक टैंक हडसन इंस्टिट्यूट द्वारा प्रकाशित एक लेख में एशियाई नाटो बनाने का आह्वान किया था. उन्होंने लिखा, "पश्चिमी सहयोगियों के द्वारा चीन को रोकने के लिए एक एशियाई नाटो का गठन अनिवार्य है." इस लेख का शीर्षक था "जापान की विदेश नीति का भविष्य". लेख में इशिबा ने कहा कि जापान को अपनी सुरक्षा रणनीति पर पुनर्विचार करना चाहिए, खासकर तब जब उसके पड़ोसी देश परमाणु हथियारों से लैस हैं.

इशिबा ने अपनी योजना में कुछ कड़े कदमों की सिफारिश की, जिनमें अमेरिकी जमीन पर जापानी सैनिकों की तैनाती और क्षेत्र में परमाणु हथियारों को साझा नियंत्रण में लाने का सुझाव भी शामिल था. इशिबा ने तर्क दिया, "रूस, उत्तर कोरिया और चीन से परमाणु खतरे को रोकने के लिए, इस प्रस्तावित संगठन को अमेरिका के परमाणु हथियारों की साझेदारी या क्षेत्र में परमाणु हथियारों की तैनाती पर भी विचार करना चाहिए."

इशिबा का मानना है कि जापान-अमेरिका सुरक्षा संधि को फिर से मजबूत करने का समय आ गया है. यह द्विपक्षीय सुरक्षा संधि द्वितीय विश्व युद्ध के बाद से जापान की सुरक्षा का आधार रही है. इशिबा ने लिखा, "मेरा मिशन है कि जापान-अमेरिका गठबंधन को अमेरिका-यूके गठबंधन के स्तर तक ले जाया जाए."

उन्होंने यह भी जोर देकर कहा कि जापान को अपने सुरक्षा ढांचे में बदलाव करने की जरूरत है ताकि वह तेजी से बदलते भू-राजनीतिक परिदृश्य के साथ तालमेल बिठा सके. इशिबा ने कहा, "हालात इस बात के अनुकूल हैं कि जापान-अमेरिका सुरक्षा संधि को साधारण देशों के बीच की संधि में बदल दिया जाए."

अमेरिका उत्सुक नहीं

इशिबा ने कहा कि एशियाई नाटो बनाने की जरूरत इस तथ्य से उपजी है कि अमेरिका की ताकत में तुलनात्मक कमी आई है. उन्होंने शुक्रवार को एक प्रेस कॉन्फ्रेंस में कहा, "अमेरिका की ताकत में पहले के मुकाबले गिरावट ने एक एशियाई संधि संगठन को अनिवार्य बना दिया है."

हालांकि इशिबा के इस प्रस्ताव पर अंतरराष्ट्रीय समुदाय से समर्थन मिलना अभी बाकी है. अमेरिका जापान-अमेरिका गठबंधन का प्रमुख साझेदार है और उसने इस विचार को लेकर अपनी झिझक जाहिर की है. पिछले साल अमेरिकी राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार जेक सुलिवन ने कहा था, "वॉशिंगटन इंडो-पैसिफिक में नाटो जैसा संगठन बनाने पर विचार नहीं कर रहा है." हाल ही में अमेरिकी सहायक विदेश सचिव डेनियल क्रिटेनब्रिंक ने भी कहा था कि "इस बारे में बात करना अभी जल्दी होगा."

यूरोप अपनी सुरक्षा को लेकर चिंतित

इसके बावजूद, इशिबा अपनी योजना को आगे बढ़ाने पर जोर दे रहे हैं. उनका मानना है कि द्वितीय विश्व युद्ध के बाद से जापान को सबसे गंभीर सुरक्षा चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा है, और इसके लिए मजबूत बहुपक्षीय रक्षा गठबंधन जरूरी हैं. एक तरफ जापान उत्तर कोरिया के बढ़ते मिसाइल परीक्षणों को लेकर चिंतित है, दूसरी तरफ चीन के साथ उसके संबंधों में तनाव है. हाल ही में जापान ने चीन पर अपने यहां जासूसी करने जैसे आरोप लगाए थे.

मंगलवार को इशिबा ने कहा, "मैं मित्र देशों के साथ संबंधों को गहरा करने की कोशिश करूंगा, ताकि द्वितीय विश्व युद्ध के बाद से देश के सामने आ रही सबसे गंभीर सुरक्षा चुनौतियों का मुकाबला किया जा सके."

शिगेरू इशिबा कौन हैं?

जापान के नए प्रधानमंत्री शिगेरू इशिबा एक अनुभवी राजनेता हैं और लंबे समय से जापान की रक्षा नीति को मजबूत करने के पक्षधर रहे हैं. जापान की लिबरल डेमोक्रेटिक पार्टी के प्रमुख सदस्य इशिबा पहले जापान के रक्षा मंत्री भी रह चुके हैं और उन्होंने बार-बार जापान के रक्षा तंत्र को मजबूत करने की वकालत की है.

इशिबा की राजनीतिक यात्रा कई दशकों से चली आ रही है, और वह जापान के शांति-संविधान में संशोधन के समर्थक रहे हैं, जो देश की सैन्य गतिविधियों पर प्रतिबंध लगाता है. इशिबा ने हमेशा यह तर्क दिया है कि जापान को अपने पड़ोसियों, खासकर चीन, रूस और उत्तर कोरिया से बढ़ते सैन्य खतरों का सामना करने के लिए तैयार रहना चाहिए.  पिछले कुछ सालों में जापान ने अपनी रक्षा नीति में बड़े बदलाव किए हैं और अब वह रक्षा बजट पर खर्च बढ़ा रहा है.

वीके/सीके (रॉयटर्स, एएफपी, एपी)

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