"जेल यूनिवर्सिटी" से बदलता कैदियों का जीवन
१४ सितम्बर २०२०राजस्थान की उदयपुर सेंट्रल जेल में एक हजार से ज्यादा कैदी हैं. यहां सैकड़ों कैदी अपनी सजा काटकर बाहर जाना चाहते हैं तो कुछ के मामले अदालत में विचाराधीन हैं. जेल में बंद अधिकतर कैदी जेल की चारदीवारी के भीतर अपराध बोध से बाहर आने की कोशिश में लगे हुए हैं. जेल में बंद कैदी और विचाराधीन अपराधी संगीत की शिक्षा लेते हैं, हेयर कटिंग के गुर सीखते हैं, कोई पेंटिंग का शौक रखता है तो वह अपने पेंट और ब्रश से कल्पनाओं की उड़ान भरता है, थोड़े पढ़े लिखे कैदी कंप्यूटर टाइपिंग, कोरल ड्रॉ और फोटो शॉप करना भी सीखते हैं.
योग और ध्यान के सहारे उन्हें बीते हुए कल से निकालकर नई ऊर्जा दी जाती है. यह सब कुछ लोगों, संस्थानों की मदद से मुमकिन हो पाया है. जेल से रिहा होने के बाद बाद कुछ लोग तो बकायदा शिक्षा केंद्र भी चला रहे हैं.
उदयपुर की जेल "यूनिवर्सिटी" आम यूनिवर्सिटी से बेहद अलग है. यहां ना तो कैदियों को किताबों के बोझ से दबाया जाता है और ना ही लंबे लंबे किताबी ज्ञान दिए जाते हैं. उन्हें जेल के भीतर ऐसा कुछ सिखाया जाता है जिससे उनके मन से अपराध की सोच खत्म की जा सके.
दो साल पहले स्वराज जेल यूनिवर्सिटी की शुरुआत शिक्षांतर, आर्ट ऑफ लिविंग, अहमदाबाद के गांधी आश्रम में चलाए गए लव प्रोजेक्ट, एडिबल रूट्स फाउंडेशन और उदयपुर सेंट्रल जेल की पहल से हुई. स्वराज जेल यूनिवर्सिटी के सह-संस्थापक और गैर लाभकारी संगठन शिक्षांतर के सह-संस्थापक मनीष जैन कहते हैं कि इस प्रोजेक्ट से जुड़े कई लोग महीनों तक जेल गए और वहां कैद लोगों से बात की और उनके मन को टटोलने की कोशिश की. कई महीनों की मेहनत के बाद कुछ कैदियों ने इस यूनिवर्सिटी से जुड़े लोगों से बात की और गुजरे हुए कल के बारे में बताया, और यह भी बताया कि वे समाज में सम्मानजनक जीवन बिताने की ख्वाहिश रखते हैं.
मनीष जैन कहते हैं, "शिक्षांतर के तहत हमने कई प्रयोग किए हैं. हम सीखने वाले को समझने की कोशिश करते हैं ना कि हम उसपर अपनी तरफ से अपना ज्ञान थोपते हैं." जेल यूनिवर्सिटी की शुरुआत के बारे में मनीष बताते हैं कि कई सालों से जेल के भीतर आर्ट ऑफ लीविंग का ध्यान का कार्यक्रम चल रहा था. उन्हीं लोगों ने उनसे संपर्क किया और जेल के भीतर अन्य कार्यक्रम चलाने के बारे में पूछा. मनीष कहते हैं, "जिनकी आपराधिक पृष्ठभूमि है उनके लिए बाहर कमाना और समाज में रहना मुश्किल रहता है. समाज में उनकी स्वीकार्यता बहुत मुश्किल से होती है और नौकरी मिलना तो बेहद चुनौतीपू्र्ण होता है."
कैदियों को सम्मानजनक जिंदगी देना मकसद
कैदियों से मिलने के बाद मनीष को जेल यूनिवर्सिटी बनाने का विचार आया. मनीष कहते हैं, "मुझे ऐसी यूनिवर्सिटी बनाने का आइडिया आया, जहां ये लोग अपने भविष्य को बना सके, अपने सपने, अपने जुनून और अपने जीवन के असली मकसद को पा सके और व्यवहारिक तौर पर इस पर काम कर सके."
जेल यूनिवर्सिटी पर काम करने से पहले मनीष पेरिस में यूनेस्को के साथ काम कर चुके हैं. वे बतौर शिक्षाविद कई देशों को यूनेस्को में काम करते हुए अपनी सलाह दे चुके हैं. मनीष वर्ल्ड बैंक, अफ्रीका में यूएस एड के साथ-साथ कई और संस्थानों के साथ काम चुके हैं.
मनीष पिछले दो साल में कई बार जेल के भीतर अपने कार्यक्रम के लिए गए लेकिन पहली बार जब वे गए तो उनके मन में भी अजीब सा संकोच था. लेकिन अब कई कैदी उनके अच्छे दोस्त बन गए हैं.
जेल यूनिवर्सिटी में कैदियों को उनकी रूचि के हिसाब से कौशल सिखाया जाता है, जैसे अगर किसी को संगीत में दिलचस्पी है और वह कोई यंत्र बजा लेता है तो उसे संगीत की ट्रेनिंग दी जाती है. या फिर किसी को पढ़ना-लिखना आता है तो उसे कंप्यूटर ऑपरेट करने और अन्य प्रोग्राम पर काम करना बताया जाता है. कोई बाल काटना तो कोई पेंटिंग करना जानता है तो उसे इसी काम पर आगे बढ़ने के लिए प्रेरित किया जाता है.
अपनी जेल के कैदियों के सकारात्मक पहलू बताते हुए जेल अधीक्षक सुरेंद्र सिंह शेखावत कहते हैं, "जो कार्यक्रम जेल के भीतर कैदियों के लिए चलाए जा रहे हैं वह मानसिक और भावनात्मक दोनों से रूप से उन्हें प्रभावित करते हैं. कार्यक्रम में शामिल होने के बाद कैदियों का व्यवहार ही बदल जाता है. पहले जहां वे बदले की भावना से घिरे रहते थे वहीं कार्यक्रम की वजह से उनका ध्यान दूसरी ओर जाता है."
इस जेल में क्षमता से ज्यादा कैदी हैं. करीब 1200 से कैदियों में से कुछ तो विचाराधीन हैं और कुछ अपनी सजा काट रहे हैं. शेखावत कहते हैं,"अलग-अलग कार्यक्रम की मदद से कैदी यह समझ जाते हैं कि वे भी समाज में जगह हासिल कर सकते हैं और अपनी पहचान स्थापित कर सकते हैं."
जेल में इस वक्त चार बैंड हैं और इनके पास एक से बढ़कर एक यंत्र हैं. अब बैंड कई बार बाहर जाकर भी कार्यक्रम में शामिल होते हैं.
शेखावत बताते हैं कि कुछ कैदी रिहाई के बाद अच्छी जिंदगी बिता रहे हैं और उनकी जिंदगी में सकारात्मक बदलाव देखने को मिला है. सजा काटने के बाद कुछ बंदी आर्ट ऑफ लिविंग के संस्थान से जुड़ गए, कुछ जैविक खेती कर रहे हैं और कुछ तो अपना स्कूल भी चला रहे हैं.
आर्ट ऑफ लिविंग से जुड़ी इंदिरा तलरेजा बताती हैं कि वह पिछले 14 साल से जेल में जाकर महिला कैदियों के साथ-साथ पुरुष कैदियों को भी योग और ध्यान लगाना सिखा रही है. तलरेजा कहती हैं कि किसी भी कार्यक्रम का सफल होना या ना होना जेल प्रशासन पर निर्भर करता है. अगर प्रशासन कैदियों की भलाई के लिए आगे बढ़कर मदद लेता है तो उन्हें या किसी और को कैदियों के सुधार कार्यक्रम में शामिल होने में कोई दिक्कत नहीं है. तलरेजा कहती हैं, "आर्ट ऑफ लिविंग की ओर से हम लोग जेल के भीतर पहले से कुछ कार्यक्रम चला रहे थे जिनमें योग, ध्यान, लाइब्रेरी और कंप्यूटर ट्रेनिंग शामिल था. हमने मनीष से बात कर कार्यक्रम में संगीत को जोड़ा और कुछ अच्छे गायकों की हमने पहचान की." तलरेजा कहती हैं कि संगीत पर काम करते हुए मनीष ने कई बंदियों के भीतर कौशल की पहचान की और उस पर काम करना शुरू किया. उसके बाद सभी लोगों ने मिलकर जेल यूनिवर्सिटी की शुरुआत की.
जेल यूनिवर्सिटी बन जाने के बाद अलग-अलग टीम बनाई गई और अलग-अलग विशेषताओं पर काम किया गया. तलरेजा बताती हैं कि जेल का बैंड अब किसी पेशेवर बैंड को टक्कर देने की क्षमता रखता है.
मनीष कहते हैं कि उनकी यह सोच है कि अगर कोई कैदी सजा काटकर जेल से बाहर निकलता है तो उसे 15 से 20 हजार रुपये महीने की नौकरी मिली चाहिए. मनीष के मुताबिक, "अगर कौशल सीखने के बाद नौकरी मिल जाती है तब वह इंसान दोबारा अपराध की दुनिया में नहीं लौटेगा."
जेल के भीतर जिन कौदियों ने कोरल ड्रॉ, फोटो शॉप सीखी हैं उन्हें काम भी मिलने लगा है और वे जेल के भीतर रहते हुए प्रोफेशनल काम कर कुछ पैसे भी कमा रहे हैं. फिलहाल जेल यूनिवर्सिटी के कार्यक्रम में 100 कैदी शामिल हैं.
__________________________
हमसे जुड़ें: Facebook | Twitter | YouTube | GooglePlay | AppStore