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भारी पड़ा पढ़ाई के लिए बिहार से यूक्रेन जाना

मनीष कुमार, पटना
२८ फ़रवरी २०२२

युद्धग्रस्त यूक्रेन से पटना लौटे छात्रों ने बताया कि वे कैसे हालात से निकलकर आए हैं. लेकिन अब भी सैकड़ों छात्र फंसे हैं और किसी तरह निकलने का रास्ता खोज रहे हैं.

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यूक्रेन में फंसे छात्रों के लिए बेचैन हैं माता-पिता
यूक्रेन में फंसे छात्रों के लिए बेचैन हैं माता-पितातस्वीर: Manish Kumar

‘‘एक दिन मेरी फ्लाइट कैंसिल हो गई थी. कीव एयरपोर्ट पर घंटों भूखे रहना पड़ा. मेरी खुशकिस्मती है कि मैं घर सुरक्षित लौट आई. अब मैं अपने माता-पिता के साथ हूं. यहां आने पर अब यूक्रेन की स्थिति के बारे में जो जानकारी मिल रही है, वह काफी डराने वाली है,'' यह कहना है बिहार के दरभंगा जिले की निवासी अंजली कुमारी का जो यूक्रेन के बुकोविनियन स्टेट मेडिकल यूनिवर्सिटी, चेर्निटिस में मेडिकल (फर्स्ट ईयर) की छात्रा हैं.

अंजलि वाकई खुशकिस्मत रहीं कि अपने माता-पिता के पास लौट आईं क्योंकि सैकड़ों विद्यार्थी ऐसे हैं जो यूक्रेन पर हो रहे रूसी हमले के दौरान वहां विभिन्न शहरों में फंसे हैं. बमबारी यूक्रेन में रही है, किन्तु अपनी संतान की सुरक्षा को लेकर माता-पिता का दिल भारत में दहल रहा है. किसी का खाना-पीना छूट गया है तो कोई बच्चों की सलामती की दुआ कर रहा है.

कई भारतीय छात्र यूक्रेन से लौट आए हैं
कई भारतीय छात्र यूक्रेन से लौट आए हैंतस्वीर: Manish Kumar

ऐसी ही कुछ दुआएं कुबूल हुईं और 27 फरवरी को यूक्रेन से अलग-अलग विमानों से 23 बच्चे पटना पहुंचे. वहां मेडिकल की पढ़ाई कर रहे बेटे अभिषेक से मिलने उसके माता-पिता करीब तीन घंटे पहले ही पटना एयरपोर्ट पहुंच गए. दोनों की आंखें बता रही थीं कि कई रातें उन्होंने जागकर काटी हैं. बाहर आते ही जैसे मां-पिता पर नजर पड़ी, दोनों के गले से लिपट कर खूब रोए, फिर पांव छूकर आर्शीवाद लिया. मिलन का यह दृश्य वहां सभी को रुला गया.

यही हाल बिहार विधानसभा के सदस्य राजीव सिंह और यूक्रेन से आई उनकी बिटिया रीमा सिंह का था. पिता को देख रीमा के सब्र का बांध टूट गया और वह बिलख पड़ीं.

खराब हैं हालात

दरभंगा के मोहम्मद अल्ताफ कहते हैं, ‘‘ यूक्रेन की हालत बहुत खराब है. वहां लोग भूखों मर रहे हैं. हम लोग भी दो दिनों तक भूखे रहकर मेट्रो स्टेशन के नीचे बने बंकरों में रहे.'' बुकोविनियन स्टेट मेडिकल यूनिवर्सिटी की छात्रा व नालंदा जिले के एकंगरसराय प्रखंड के सैदपुर गांव निवासी दिव्या सिंह कहती हैं, ‘‘मैं यूक्रेन के पश्चिमी हिस्से चेरिनवित्सी में थी. वहां स्थिति कीव व पूर्वी भाग की तरह इतनी बुरी नहीं है. हम रोमानिया बॉर्डर के करीब थे, इसलिए हमें भारतीय दूतावास ने सबसे पहले निकाला. तिरंगा देख कर रूस व यूक्रेन के सैनिक कोई रोक-टोक नहीं करते. बॉर्डर पर जाते वक्त हमारी बस पर तिरंगा लगा था और हम हाथ में भी तिरंगा लिए थे.''

आग की लपटों और धुएं में घिरे हैं यूक्रेन के शहर

सारण जिले के मशरक निवासी अनमोल प्रकाश ने बताया कि वहां स्थिति बदतर होती जा रही है. वह कहते हैं, "आम नागरिकों ने हथियार उठा लिए हैं. नागरिक भवनों पर बम बरसाए जा रहे हैं. देश छोड़ने को बहुत से लोग बॉर्डर पर खड़े हैं. जो रोक दिए गए हैं, वे मदद मांग रहे है. हमारी गाड़ी पर तिरंगा लगा था, इसलिए हम लोग सुरक्षित रोमानिया पहुंच गए.”

 चेरिनवित्सी में मेडिकल (फर्स्ट ईयर) के छात्र आशीष कहते हैं, ‘‘हमारा हॉस्टल रोमानिया बॉर्डर से महज 30 किलोमीटर की दूरी पर था. आवागमन का साधन नहीं होने के कारण लोगों मीलों पैदल चल कर देश से बाहर जाने के लिए बॉर्डर पहुंच रहे हैं. वे चाहते हैं कि रूसी फौज के आने से पहले वे वहां से निकल जाएं.''

जवाब दे रहा धैर्य

यूक्रेन के हारकीव इंटरनेशनल मेडिकल कॉलेज में सेकेंड ईयर के छात्र शुभम ने पटना के मनेर में अपनी मां सविता मिश्रा को फोन किया. बातचीत के दौरान सायरन की आवाज सुनाई दे रही थी. आवाज इतनी तेज थी कि शुभम की आवाज कभी-कभी काफी दब जा रही थी. उसने पोलैंड के रास्ते भारत लौटने की बात कही. बात हो ही रही थी कि उसने कहा, "मां, सिग्नल वीक हो रहा है. अब शायद ही बात हो पाए.” यह सुनते ही सविता मिश्रा अंदर तक कांप गईं.

दरअसल, वहां पढ़ाई के लिए बिहार से गए कई बच्चे अपने माता-पिता को वॉट्सऐप कॉल कर या फिर वीडियो भेजकर आपबीती सुना रहे हैं. हारकीव में फंसीं दरभंगा जिले के सिंहवाड़ा प्रखंड के बिदौली निवासी प्रकाश मलिक की बेटी व मेडिकल की छात्रा सत्याक्षी मलिक ने मदद के लिए परिजनों को एक वीडियो भेजा है जिसमें वह कह रही हैं कि यहां हालात पल-पल खराब होते जा रहे हैं.

सैकड़ों छात्र अब भी यूक्रेन में फंसे हुए हैं
सैकड़ों छात्र अब भी यूक्रेन में फंसे हुए हैंतस्वीर: Manish Kumar

सत्याक्षी कहती हैं, "हमें जहां बेसमेंट में रखा गया है, वहां धूल से काफी परेशानी है. हमारे बीच जो अस्थमा के मरीज हैं, वे काफी परेशान हैं. एक-एक करके हमें फ्रेश होने के लिए भेजा जा रहा है. माइनस दो डिग्री तापमान में बेसमेंट में कंबल भी काम नहीं कर रहा है. कई बच्चों की तबियत काफी खराब हो गई है. हम और हमारे साथी काफी बुरी स्थिति में हैं, हमारी मदद कीजिए.”

खाने-पीने की समस्या

वहां फंसे लोगों व छात्र-छात्राओं के सामने खाने-पीने की समस्या खड़ी हो रही है. कोई बॉर्डर पर वीजा क्लीयरेंस के इंतजार में है तो कोई बंकर में दुबका पड़ा है. सारण जिले के खैरा थाना क्षेत्र के रामपुर कला गांव निवासी राम शरण सिंह की बिटिया जया कुमारी बुकोविनियन स्टेट मेडिकल यूनिवर्सिटी की थर्ड ईयर की स्टूडेंट हैं. वह आमीर्निया बॉर्डर पर 24 घंटे से खड़ी हैं और बताती हैं कि इतनी भीड़ है कि कोई कुछ सुनने को तैयार नहीं है. जंग के दो दिनों में ही हजारों लोगों ने यूक्रेन छोड़ा

भागलपुर जिले के नवगछिया अनुमंडल का तेलघी गांव निवासी करण चौधरी खुशकिस्मत नहीं रहे. 17 किलोमीटर पैदल चलने के बाद लवीव नेशनल मेडिकल यूनिवर्सिटी के हॉस्टल में उन्हें वापस भेज दिया गया. भारतीय दूतावास के अधिकारियों ने फ्लाइट उपलब्ध होने पर उन्हें जल्द वापस भेजने का भरोसा दिलाया है.

बिहार के पूर्व मुख्यमंत्री लालू प्रसाद यादव के पुत्र तेजप्रताप यादव से वीडियो के जरिए हुई बातचीत में पटना के राजेंद्र नगर निवासी एक मेडिकल छात्र रिजवान ने बताया कि हंगरी बॉर्डर पर आने के लिए 18 लोगों ने भारतीय मुद्रा के हिसाब से 57,000 रुपये में एक टैक्सी तय की और रात के एक बजे बॉर्डर पहुंचे. वहां वह घंटों से माइनस दो डिग्री तापमान में खड़े रहे लेकिन अभी तक यूक्रेन से बाहर जाने की अनुमति नहीं दी गई.

जुर्माने के डर से नहीं छोड़ रहे थे कॉलेज

नाम नहीं प्रकाशित करने की शर्त पर कई छात्रों ने कहा कि यूक्रेन में एडमिशन कराने वाले एजेंटों व एजेंसियों ने भी उन्हें धोखे में रखा. ये छात्र दावा करते हैं कि घर लौटने पर एडमिशन रद्द करने की चेतावनी दी गई थी.

रूस के साथ तनाव की खबरों के बीच ही कई छात्र कॉलेज छोड़ घर जाना चाह रहे थे लेकिन अपने घर सिवान जिले के मैरवा लौटीं मेडिकल थर्ड ईयर की छात्रा अनन्या अनंत का कहना था कि कॉलेज प्रबंधन घर लौटने पर जुर्माना लगाने की बात कह रहा था. भारत सरकार द्वारा यूक्रेन छोड़ने की एडवाइजरी जारी करने के बाद ही कॉलेज प्रबंधन ने छुट्टी दी.

कई छात्रों का कहना था कि उन्हें अपने देश की मीडिया से दूर रहने की सलाह दी गई है. युद्ध से जुड़ी सूचना या वीडियो को सोशल मीडिया पर पोस्ट करने की भी मनाही है.

मेडिकल की सस्ती पढ़ाई

भारत से बड़ी संख्या में छात्र मेडिकल की पढ़ाई करने यूक्रेन जाते हैं. इसकी मुख्य वजह वहां की सस्ती पढ़ाई है. वहीं से मेडिकल की पढ़ाई कर चुके डॉ. सतीश कुमार के अनुसार छह साल की पढ़ाई के लिए वहां अमूमन भारतीय मुद्रा में 20 से 25 लाख रुपये फीस के तौर पर देने होते हैं जबकि भारत में प्राइवेट मेडिकल कालेजों में पढ़ाई के लिए 50 लाख से एक करोड़ रुपये का खर्च आता है.

विदेशी कॉलेज से पास होने वाले मेडिकल छात्रों को भारत में प्रैक्टिस की इजाजत दिए जाने के बाद यूक्रेन में पढ़ने वाले छात्रों की संख्या में खासा इजाफा हुआ है. मधुबनी जिले के निवासी व इंडो-यूरोपियन एजुकेशन फाउंडेशन के अध्यक्ष डॉ. प्रदीप कुमार बताते हैं कि साल 2019 में यूक्रेन में 19,667 भारतीय छात्र पढ़ाई कर रहे थे.

यूक्रेन में 50 प्रतिशत छात्र मेडिकल की पढ़ाई करते हैं. इसके बाद अन्य कोर्स के छात्र आते हैं. कोरोना महामारी के कारण बड़ी संख्या में छात्र-छात्राएं यूक्रेन से लौट कर ऑनलाइन पढ़ाई कर रहे थे.