भारत और जर्मनी के बीच एक अरब यूरो के प्रोजेक्ट पर सहमति
२९ नवम्बर २०२२विकास के हरित और स्थायी मॉडलों को बढ़ावा देने के लिए प्रधानमंत्री मोदी ने मई में जर्मनी में आयोजित जी7 सम्मेलन के दौरान जर्मन चांसलर ओलाफ शॉल्त्स के साथ कई अहम समझौतों पर हस्ताक्षर किए थे. नवंबर आते आते दोनों देशों ने जलवायु संकट के खिलाफ एक अरब यूरो की लागत वाली योजनाओं पर सहमति बना ली है.
इन योजनाओं का मकसद भारत के उन कदमों को मजबूत बनाना है जिससे देश सामाजिक रूप से न्यायपूर्ण तरीके से साफ ऊर्जा की ओर बढ़ सके. यह निवेश उन योजनाओं में होगा जिनसे भारत में अक्षय ऊर्जा के स्रोतों का विस्तार हो, पब्लिक ट्रांसपोर्ट को ईको-फ्रेंडली और सुरक्षित बनाया जा सके, और शहरों का स्थायी, जलवायु-अनुरुप और समावेशी विकास हो.
सहयोग परियोजनाओं पर सहमति के बाद जर्मनी की विकास मंत्री स्वेन्या शुल्त्से ने जर्मन राजधानी बर्लिन में भारत के साथ साझेदारी की अहमियत के बारे में कहा, "एक वैश्विक समुदाय के रूप में हमारे सामने जो कठिनाइयां हैं उनका सामना करने में भारत हमारा एक अहम पार्टनर है."
पेरिस जलवायु समझौता हो या कोई भी दूसरा वैश्विक लक्ष्य, विश्व में सबसे ज्यादा आबादी वाले देशों में एक भारत के साथ लिए बिना कोई भी लक्ष्य पूरा नहीं हो पाएगा. इस पर विकास मंत्री ने कहा, "विश्व जलवायु सम्मेलन के दौरान हुई मुश्किल बातचीत ने साफ दिखा दिया कि हमें भारत जैसे प्रमुख पार्टनरों के साथ ठोस कदम उठाने होंगे. अगर जलवायु को बचाने के लिए तेजी से और बड़े बदलाव लाने हैं तो इस दिशा में आगे बढ़ना ही रास्ता है."
निर्णायक भूमिका में रहेगा भारत
एक तरक्की करती हुए विशाल अर्थव्यवस्था के रूप में भारत की लगभग सभी अंतरराष्ट्रीय वार्ताओं के सफल होने या ना होने में निर्णायक भूमिका होती जा रही है. हाल ही में संपन्न हुए विश्व जलवायु सम्मेलन में भारत ने 2030 तक अपने लिए लक्ष्य तय किया है कि वह गैर-जीवाश्म स्रोतों से ऊर्जा का उत्पादन 500 गीगावॉट करेगा. यह अभी के ग्रीन पावर के मुकाबले करीब तीन गुनी बढ़ोत्तरी होगी. 2070 तक तो भारत ने क्लाइमेट न्यूट्रल बनने का लक्ष्य रखा है जिसके अंतर्गत 2.6 करोड़ हेक्टेयर के इलाके में जंगलों को रीस्टोर करना होगा.
जर्मन चांसलर शॉल्त्स ने 2030 तक भारत को उसके जलवायु संबंधित लक्ष्यों को हासिल करने में कम से कम 10 अरब यूरो की मदद का वादा किया था. उसी आश्वासन को ठोस प्रोजेक्ट के रूप में अमली जामा पहनाने की शुरुआत इस एक अरब यूरो के परियोजनाओं पर सहमति के साथ हुई है. इस राशि का एक बड़ा हिस्सा जर्मन केंद्र सरकार की एक एजेंसी केएफडब्ल्यू विकास बैंक (KfW) से आसान शर्तों के साथ कर्ज के रूप में दिया जाएगा और बाद में भारत इसे वापस लौटाएगा.
भारत में शुरु होने वाली जर्मनी की सभी नई संयुक्त परियोजनाएं किसी ना किसी तरह ग्रीन हाउस गैसों का उत्सर्जन कम करने के लिए लगाई जाएंगी. आने वाले सालों में जलवायु परिवर्तन के खिलाफ ऐसे प्रोजेक्टों की संख्या और दायरा लगातार बढ़ाते जाने की योजना है.
साफ ऊर्जा के मामले में जर्मनी का लक्ष्य
अगर हर प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष तरीके को मिला कर देखें तो हाल के सालों में जर्मन-भारत साझेदारी की मदद से सालाना करीब 10 करोड़ टन कार्बन डाई ऑक्साइड का उत्सर्जन कम किया है. इसके अलावा जर्मनी की मदद से भारत में अक्षय ऊर्जा के उत्पादन, ट्रांसमिशन और स्टोरेज क्षमता को काफी उन्नत किया गया है.
भारत में अब तक अक्षय ऊर्जा से बनी बिजली करीब 4 करोड़ लोगों तक पहुंची है. अगले 15 सालों में भारतीय शहरों की आबादी आज के 37 करोड़ से बढ़ कर 51 करोड़ होने का अनुमान है. ऐसे में जर्मनी शहरों में पब्लिक ट्रांसपोर्ट को बेहतर करने में भारत की मदद करना चाहता है.
जर्मनी समेत यूरोप के कई देशों में पब्लिक ट्रांसपोर्ट का ढांचा कई दशकों से काफी मजबूती से शहरी भागदौड़ का बोझ उठाता आया है. 2023 तक भारत विश्व का सबसे ज्यादा आबादी वाला देश बन सकता है. चीन, अमेरिका और यूरोप के बाद कार्बनडाईऑक्साइड उत्सर्जन के मामले में भारत का विश्व में चौथा स्थान है. साथ ही देश जलवायु परिवर्तन से बहुत ज्यादा प्रभावित है और आज भी अत्यंत गरीबी और कुपोषण का सामना भी करता है. इस लिहाज से जर्मनी और भारत मिलजुल कर विकास की ऐसी कहानी लिखना चाहते हैं जिसमें समाज के कमजोर तबके को भी हिस्सा मिले.