कैसे और क्यों हुई सिन्धु जल संधि
२७ सितम्बर २०१६1947 में पंजाब के विभाजन के कारण भारत और पाकिस्तान के बीच नहर के पानी को लेकर विवाद खड़ा हो गया. नहरें आर्थिक नजरिए से उस वक्त बनाई गई थीं जब विभाजन का विचार किसी के मन में नहीं था. लेकिन विभाजन के कारण नहरों के पानी का बंटवारा असंतुलित हो गया. पंजाब की पांचों नदियों में से सतलुज और रावी दोनों देशों के मध्य से बहती हैं. वहीं झेलम और चिनाब पाकिस्तान के मध्य से और व्यास पूर्णतया भारत में बहती है.
लेकिन भारत के नियंत्रण में वे तीनों मुख्यालय आ गए जहां से दोनों देशों के लिए इन नहरों को पानी की आपूर्ति की जाती थी. पाकिस्तान का पंजाब और सिंध प्रांत सिंचाई के लिए इन नहरों पर ही निर्भर है. पाकिस्तान को लगने लगा कि भारत जब चाहे तब पानी बंद करके उसकी जनता को भूखा मार सकता है. इसीलिए विभाजन के तुंरत बाद दोनों देशों में नहरी पानी विवाद शुरू हो गया. 1947 में कश्मीर को लेकर जंग लड़ चुके दोनों देशों के बीच एक बार फिर से तनाव बढ़ने लगा.
1949 में एक अमेरिकी विशेषज्ञ डेविड लिलियेन्थल ने इस समस्या को राजनीतिक स्तर से हटाकर टेक्निकल और व्यापारिक स्तर पर सुलझाने की सलाह दी. लिलियेन्थल ने विश्व बैंक से मदद लेने की सिफारिश भी की. सितंबर 1951 में विश्व बैंक के अध्यक्ष यूजीन रॉबर्ट ब्लेक ने मध्यस्थता करना स्वीकार किया. सालों तक बातचीत चलने के बाद 19 सितंबर 1960 को भारत और पाकिस्तान के बीच जल पर समझौता हुआ. इसे ही 1960 की सिन्धु जल संधि कहते हैं.
संधि पर भारत के तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू और पाकिस्तान के तत्कालीन राष्ट्रपति अयूब खान ने रावलिपिंडी में दस्तखत किए. 12 जनवरी 1961 से संधि की शर्तें लागू कर दी गईं. और इस तरह दोनों देशों के बीच एक बड़ा झगड़ा शांत हुआ.