मांगों को लेकर डटी हैं लद्दाख की महिलाएं
३ अप्रैल २०२४आम मुस्लिम महिलाओं की तरह लद्दाख की नसरीन का रमजान इस बार बहुत अलग है. नसरीन उस आंदोलन में शामिल हैं जो लद्दाख को पूर्ण राज्य और संविधान की छठी अनुसूची में शामिल किए जाने की मांग को लेकर हो रहा है.
पिछले कुछ महीनों से लद्दाख के लोग अपनी नाजुक संस्कृति और अपने पर्यावरण को बचाने की लड़ाई लड़ रहे हैं और नसरीन भी उनमें से एक हैं.
डीडब्ल्यू से बातचीत में नसरीन ने बताया, "10 दिनों का अनशन है, हम तो दिनभर रोजा रखते हैं तो इस वजह से हम नमक और पानी भी नहीं पीते हैं."
नसरीन अनशन पर हैं तो इस वजह से वह सेहरी (सूर्य के निकलने से पहले खाना) के वक्त सिर्फ नमक और पानी लेती हैं और इफ्तार (सूर्यास्त के बाद) के वक्त कुछ भी नहीं लेती हैं.
पहले जलवायु कार्यकर्ता, शिक्षाविद् और इनोवेटर सोनम वांगचुक ने नमक और पानी के सहारे 21 दिनों का अनशन किया. वांगचुक ने 6 मार्च से अपना जलवायु उपवास शुरू किया था और 26 मार्च को उसे खत्म कर दिया. इसके बाद लद्दाख की महिलाओं ने पूर्ण राज्य का दर्जा दिए जाने की मांग को लेकर अनशन शुरू कर दिया.
अनशन में शामिल एक म्यूजिक टीचर शर्मिला रेंजिंग कहती हैं कि वह इन मांगों के समर्थन में हैं और केंद्र सरकार को इन्हें पूरा करना चाहिए. उन्होंने डीडब्ल्यू हिन्दी से कहा, "मैं यहां अनशन में बैठीं महिलाओं को सपोर्ट करने के लिए आई हूं. मैं देख नहीं सकती हूं लेकिन इस आंदोलन के बारे में मैंने बहुत लोगों से सुना है."
रेंजिंग कहती हैं कि जब भी उन्हें समय मिलता है तो वह इस आंदोलन को समर्थन देने आ जाती हैं.
आंदोलन में सभी धर्मों की महिलाएं
किसी भी वक्त अनशन वाली जगह पर 300 के करीब महिलाएं नजर आ जाएंगी लेकिन अनशन कुछ ही महिलाएं कर रही हैं और वे सिर्फ नमक और पानी के सहारे पूरा दिन रहती हैं.
अनशन कर रही बौद्ध, ईसाई और मुसलमान धर्म की महिलाएं कहती हैं कि इन मांगों को लेकर लद्दाख के सभी लोग एकजुट हैं. लद्दाख क्रिश्चिन एसोसिएशन की सदस्य सुनीता दाना कहती हैं, "केंद्र सरकार ने लद्दाख को केंद्र शासित प्रदेश का दर्जा तो दिया लेकिन विधानसभा नहीं दिया. हमें राज्य का दर्जा चाहिए और संविधान की छठी अनुसूची में शामिल किया जाना चाहिए."
सुनीता कहती हैं, "हमें अपने पर्यावरण को साफ रखने के लिए किसी उद्योग की जरूरत नहीं है. हम चाहते हैं कि हमारे बच्चों को नौकरी मिले और हमारी जमीन सुरक्षित हों, यही हमारी मांग है."
यांगचांग डोलमा भी पिछले चार दिनों से अनशन कर रही हैं और कहती हैं कि जब तक लद्दाख को छठी अनुसूची में शामिल नहीं किया जाता है उन लोगों का आंदोलन जारी रहेगा. डोलमा का कहना है कि अगर महिलाएं अनशन खत्म कर लेती हैं तो उसके बाद युवा और बौद्ध धर्म के लोग अनशन शुरू करेंगे.
एक और महिला ने बताया कि उसके दो बेटे हैं और एक बेटा सेना में है जो चंडीगढ़ में है. इस महिला ने डीडब्ल्यू को बताया कि वह सुबह 9 बजे अनशन स्थल पर आ जाती हैं और शाम 5 बजे लौट जाती हैं. महिला का कहना है कि वह कभी-कभी अपने पति को भी इस अनशन को सपोर्ट देने के लिए साथ ले आती है.
क्या-क्या हैं मांगें
आंदोलन लेह स्थित एपेक्स बॉडी और कारगिल डेमोक्रेटिक एलायंस के संयुक्त प्रतिनिधियों के साथ केंद्र सरकार की बातचीत विफल होने के बाद शुरू हुआ.
लद्दाख के लोगों की मांग है कि लेह और कारगिल जिलों के लिए अलग लोकसभा सीट हों, लद्दाख में विशेष भूमि और स्थानीय लोगों को नौकरी का अधिकार मिले. इसके साथ ही लद्दाख में पब्लिक सर्विस कमीशन की स्थापना की मांग की जा रही है.
केंद्र ने मांगों पर विचार करने के लिए एक उच्च स्तरीय समिति का गठन किया है. हालांकि प्रदर्शनकारियों के साथ बातचीत सफल नहीं हुई. 4 मार्च को लद्दाख के नेताओं ने गृह मंत्री अमित शाह से मुलाकात की और बताया कि केंद्र ने मांगें मानने से इनकार दिया है. इसके दो दिन बाद वांगचुक ने लेह में अनशन शुरू किया था.