ईरान की कुख्यात एविन जेल का अंदरूनी नजारा
२८ अक्टूबर २०२२राजधानी तेहरान की एविन जेल, मानवाधिकार हनन और राजनीतिक बंदियों के साथ बदसलूकी के मामलों को लेकर कुख्यात रही है. पिछले सप्ताह, जेल के हिस्से में आग भड़क उठी जिसमें जलकर कम से कम आठ कैदियों की मौत हो गई.
अनूशेह अशूरी एक ब्रिटिश-ईरानी व्यापारी हैं जो चार साल से भी ज्यादा समय तक एविन जेल में बंद थे. अपने दो साल उन्होंने जेल के उस हिस्से में काटे जहां ईरानी अधिकारियों के मुताबिक आग भड़की थी.
उन्हें 2017 में गिरफ्तार किया गया था. वो अपनी मां से मिलने ईरान गए थे. उन पर इस्राएल के लिए जासूसी का आरोप था. उनका कहना है, "मैं तो स्तब्ध रह गया. हाथ-पांव सुन्न हो गए. मुझे नहीं पता था कि हो क्या रहा है. मेरी आंखों में पट्टी बांधकर ले गए."
उन्होंने डीडब्ल्यू को एविन जेल के हॉल 12 में वार्ड नंबर सात की घिनौनी स्थितियों और अपने साथ हुए दुर्व्यवहार के बारे में बताया. वो कहते हैं, "हॉल12 में हालात बहुत ज्यादा खराब थे. खटमल, कॉकरोच, चूहे और सड़ा हुआ खाना." वो बताते हैं कि हॉल 12 के चार कमरों में 70 लोग ठुंसे रहते थे.
उन्होंने एक विशाल इलाके को भी याद किया जो वार्ड नंबर सात के बेसमेंट में हुआ करता था, जिसे "सांस्कृतिक केंद्र" कहा जाता था. उसमें एक स्विमिंग पुल था, लेकिन वहां कपड़े की फैक्ट्री लगा दी गई थी जहां कैदी सिलाई मशीन पर कैदियों की पोशाकें सिला करते थे. अशूरी कहते हैं कि ये पूरी तरह मुमकिन है कि आग सिलाईमशीन वाले कमरे में लगी होगी लेकिन पक्के तौर पर कहना मुश्किल है.
उन्हें कल्चरल सेंटर के बाहर धातु की एक सीढ़ी की याद है जिस पर चढ़कर एक खूबसूरत नजारा देखा जा सकता था. वो कहते हैं, "कभीकभार हम वहां पर लंच करते थे क्योंकि वो उन थोड़ी सी जगहों में थी जहां से तेहरान के उत्तर में अल्बोर्ज पर्वतों को देखा जा सकता था."
'मनोवैज्ञानिक टॉर्चर'
हालांकि, अशूरी के जेल अनुभव का निम्नतम बिंदु वे 45 दिन थे जो उन्होंने अकेले काटे थे. उनके मुताबिक वो एक किस्म का मनोवैज्ञानिक टॉर्चर था. वो कहते हैं, "मेरा एक ही प्रमुख इंट्रोगेटर होता था लेकिन ज्यादातर समय मेरा इंटरोगेशन उन तंग कमरों में होता था जहां मुझे दूसरों की मौजदूगी में महसूस होती थी. वे मेरे परिवार को नुकसान पहुंचाने की धमकी देते थे."
अशूरी का कहना है कि दिन रात फ्लड लाइटें जली रहती थीं, नींद आती ही नहीं थी. वो कहते हैं कि बगल की सेलों से उन्हें लगातार रोने चीखने की आवाजें आती थीं. जो दर्द वो झेल रहे थे और अपने परिवार की असुरक्षा का जो डर उन्हें सताता रहता था, उसके चलते उन्होंने अपनी जान लेने की कोशिश भी की.
वो कहते हैं, "मैंने सोचा, शायद सबसे अच्छा यही होगा कि मैं अपना खात्मा कर दूं. तो ये तमाम डर भी खत्म हो जाएंगे." अशूरी अपनी अन्यायपूर्ण गिरफ्तारी के विरोध में 17 दिन की भूख हड़ताल पर भी रहे.
मार्च 2022 में अशूरी को एविन जेल से रिहाई मिल गई, ब्रिटिश सरकार ने उसके लिए ईरान को 40 करोड़ पाउंड का कर्ज दिया. उनके साथ दूसरे दोहरी नागरिकता वाले शख्स नाजनीन जगहरी-रेटक्लिफ को भी रिहाई मिली थी.
वो इन दिनों जेल में अपने अनुभव पर किताब लिख रहे हैं. इस बहाने उनकी कोशिश है कि ईरान में मानवाधिकारों की बदहाली पर जागरूकता आए. दो अक्टूबर को अशूरी ने लंदन मैराथन में भाग लिया. उनके सीने पर एमनेस्टी इंटरनेशनल का पोस्टर भी चस्पां था. फ्लाइर्स के सहारे ईरान में महिला अधिकार आंदोलन की ओर ध्यान दिलाया गया था.
वो कहते हैं, "दौड़ते हुए मैं उन तमाम दोस्तों को याद कर रहा था जो मेरे साथ उस जेल के छोटे से परिसर में दौड़ा करते थे. मानो वे भी मेरे साथ यहां दौड़ रहे थे और मैं उनके साथ जोर जोर से बातें कर रहा था. मैं उस भावना को बता नहीं सकता हूं." वो आगे कहते हैं कि,"वो भावना कितनी दर्दनाक है क्योंकि वे लोग अब भी यातनाएं भुगत रहे हैं और नहीं जानते कि कब रिहा हो पाएंगे."
आग की घटनाओं के बारे में सुनने के बाद अशूरी ने कहा कि उनका दिलोदिमाग उन लोगों पर लगा है जिन्हें वो एविन जेल के दौरान से जानते थे. "जब तक वे सब के सब छूट नहीं जाते, और अपने परिवारों के वापस नहीं लौट जाते, मैं चुप नहीं बैठूंगा."
हवाईअड्डे जाते हुए अपहरण
ईरान में 1979 की इस्लामी क्रांति से पहले भी एविन जेल राजनीतिक बंदियों, विदेशियों और दोहरी नागरिकता वाले लोगों को कैद करने के लिए इस्तेमाल की जाती थी.
ईरान में ठीक से हिजाब न पहनने पर नैतिक पुलिस की हिरासत में मारी गई एक युवा औरत की मौत के बाद जबसे निजी आजादियों को लेकर विरोध प्रदर्शन भड़क उठे हैं तबसे ज्यादा से ज्यादा लोग जेल की सलाखों में डाले जा रहे हैं.
आंदोलन के बीच, 2015 में एविन जेल की सजा काट चुके लेबनानी व्यापारी निजार जाका, अपना वो वक्त याद करते हुए डीडब्लू को बताते हैं कि वो उस दिन की कल्पना करते हैं जब "उस जेल में बंद कैदियों को आंदोलनकारी छुड़ा ले जाएंगे." वो कहते हैं, "मैं वो भाषा नहीं जानता था. मुझे नहीं पता था कि वहां हो क्या रहा है."
उन्होंने एविन जेल में चार साल काटे. उन पर अमेरिका की जासूसी का आरोप था. वो अमेरिका के स्थायी निवासी हैं. वो कहते हैं वार्ड नंबर सात की जेल कैदियों से खचाखच भरी होती थी. 20 लोग एक छोटे से पांच वर्ग मीटर वाले कमरे में रहते थे.
अधिकारियों ने उनसे टीवी पर अपना कथित अपराध स्वीकार कर लेने को कहा लेकिन उन्होंने मना कर दिया. "पूछताछ करने वाला अधिकारी हर छह हफ्तों में आता था. मुझे पूछता था कि क्या मुझे कुछ कहना है. और मैं कह देता था, नहीं, तो मुझे वापस सेल में डाल देते थे." जाका के मुताबिक पूछताछ कभी कभी हिंसक हो उठती थी.
"उनके सवालों का जवाब न देने पर वे आपको असहज, असामान्य स्थिति में खड़ा कर देते थे या बैठा देते थे जब तक कि आप थक कर चूर न हो जाएं या बेसुध हो जाएं...फिर वे आपस में एक दूसरे से बात करते हुए हाथों पर चढ़ जाते थे."
'मुझे दीवारें गिरने के सपने आते थे'
जाका ने भी अकेले सेल में 18 महीने काटे. अपनी कैद के विरोध में कई बार भूख हड़ताल भी की. उन्हें एक गंदे आठ वर्ग मीटर वाले कमरे में रखा जाता था, लाइट जली रहती थी.
वो बताते हैं, "हमारे पास कुछ नहीं था, एक चटाई और एक कंबल मिलता था. तकिया भी मिलता था. लेकिन ये तमाम चीजें गंदी और कीड़ों से सनी थी, जिसकी वजह से हमें कई किस्म के संक्रमण हो जाते थे."
"मुझे याद है कि वे मुझे आधी रात में उठा ले गए. मैं किसी से बात ही नहीं कर पाया. अक्टूबर और नवंबर की सर्दी थी और हमें जुराबें पहनने की मनाही थी. बाहर टहलने के लिए भी हमारे पास यही फ्लिपफ्लॉप हुआ करते थे. बहुत ही खराब अनुभव था.”
जून 2019 में ईरानी सरकार ने जाका को छोड़ दिया. उसके लिए लेबनानी राष्ट्रपति मिशेल आउन ने गुजारिश भी की थी. उनकी रिहाई के लिए चली अंतरराष्ट्रीय वकालत के वर्षों बाद ये मौका आया था.
निजार जाकी ने इसी भावना के तहत पूर्व राजनीतिक कैदियों के एक समूह के साथ मिलकर, कैदियों के पक्षधर एक एनजीओ "हॉस्टेज एड वर्ल्डवाइड" का गठन किया, ये सुनिश्चित करने के लिए जो उनके साथ हुआ वो आगे किसी और के साथ नहीं होगा.
जाका कहते हैं कि "जब मैं एविन जेल में था तो मैं सपना देखा करता था कि काश यहां कोई बड़ी आग भड़क उठे, कोई बड़ा जलजला आ जाए, और ये दीवारें गिर जाएं और हम सब लोग यहां से भाग निकलें और अपने घर पहुंच जाएं."
"उम्मीद है कि ये सपना सच होगा और ये तमाम लोग आंदोलनकारियों की मदद से जल्द ही खुली हवा में सांस ले पाएंगे."
रिपोर्टः नीलोफर घोलामी