डॉल्फिनों में भी क्लिटोरिस की बड़ी भूमिका
१२ जनवरी २०२२डॉल्फिनों को सिर्फ प्रजनन ही नहीं बल्कि आनंद और एक दूसरे से जुड़ने के लिए भी सेक्स करने के के लिए जाना जाता है. 'करंट बायोलॉजी' पत्रिका में छपे एक नए शोध में यह दिखाया गया है कि मादा डॉल्फिनों में इंसानों की ही तरह एक बड़ा सा सा क्लिटोरिस भी होता है जिसमें संवेदी धमनियां और इरेक्टाइल टिश्यू भरे होते हैं.
यह इस बात का संकेत है कि डॉल्फिनों को आनंद की अनुभूति कराने में क्लिटोरिस की एक मजबूत भूमिका है. इस अध्ययन की मुख्य लेखक और जीव जंतुओं के जननांगों की विशेषज्ञ पैट्रिशिया ब्रेनन कहती हैं कि गैर-इंसानी कामुकता पर बहुत कम अध्ययन हुआ है, विशेष रूप से महिलाओं के विषय में.
हस्तमैथुन भी करते हैं
माउंट हॉल्योक कॉलेज में काम करने वाली ब्रेनन कहती हैं, "ये चीजें एवोल्यूशन को समझने के लिए बेहद जरूरी हैं. संभव है कि इनमें हमें हमारी अपनी कामुकता के बारे में समझाने की बातें भी हों."
प्राइमेटों के अलावा सामाजिक संबंध बनाने के लिए सेक्स का इस्तेमाल करने वाली प्रजातियों में डॉलफिन सबसे मुख्य मानी जाती हैं. ये सालों भर सेक्स करती हैं. इसमें समलैंगिक सेक्स भी शामिल होता है और क्लिटोरिस एक ऐसी जगह पर है जहां सहवास के समय उसे उसे उत्तेजित किया जाता हो.
ये मिट्टी में अपने शरीर को रगड़ कर हस्तमैथुन भी करते हैं. यहां तक कि मादा डॉल्फिनों की अपनी नाक, हाथ और पूंछ से एक दूसरे के क्लिटोरिस को को रगड़ने की भी रिपोर्टें सामने आई हैं.
यह सारा व्यवहार संकेत देता है कि यह इस अनुभव में ये आनंद महसूस करते हैं लेकिन ब्रेनन और उनके सहयोगी इस बात की पुष्टि पुष्टि भी करना चाह रहे थे और जीवविज्ञान संबंधी समझ को और गहरा भी करना चाह रहे थे.
लेकिन प्रयोगशालाओं में सेक्स करती हुई डॉल्फिनों का अध्ययन करना मुश्किल है. इसलिए उन्होंने डॉल्फिनों के क्लिटोरिस की विशेषताओं का अध्ययन कर उससे निष्कर्ष निकालने का फैसला किया.
इंसानों जैसे अंग
इस अध्ययन के लिए उन्होंने 11 मृत मादाओं के क्लिटोरिस का विस्तार से अध्ययन किया और इस अंग की कार्यात्मकता का समर्थन करने वाले मजबूत सबूत पाए. पहली विशेषता थी इरेक्टाइल टिश्यू का होना जिसमें कई रक्त धमनियां भी पाई गईं.
ब्रेनन ने कहा, "इसका मतलब है कि ये वो टिश्यू हैं जो रक्त से भर जाते हैं, ठीक लिंग और इंसानी क्लिटोरिस की तरह." दूसरा, क्लिटोरिस में ठीक त्वचा के नीचे बड़ी धमनियां और कई धमनियों की जड़ होती हैं, इंसानों की उंगलियों के पोरों और जननांगों की तरह.
इसके अलावा, क्लिटोरिस की त्वचा काफी पतली पाई गई जिससे वो ज्यादा संवेदनशील रहे. और अंत में, उन्हें जेनिटल कोर्पसल नाम की कणिकाएं भी मिलीं जो इंसानी लिंगों और क्लिटोरिसों में पाई जाने वाली कणिकाओं से बहुत मिलती जुलती हैं. इनका काम विशेष रूप से आनंद देना ही होता है.
ये समानताएं आश्चर्यजनक हैं क्योंकि इंसानों और डॉल्फिनों के एक ही पूर्वज आज से 9.5 करोड़ साल पहले हुआ करते थे. प्राइमेट्स से अलग हुए हमें सिर्फ करीब 60 लाख साल ही हुए हैं. ब्रेनन के लिए यह अध्ययन बहुत महत्वपूर्ण है.
ब्रेनन कहती हैं कि और चीजों के अलावा जीव जंतुओं की सेक्सुएलिटी का अध्ययन करना इंसानों के स्वास्थ्य के लिए लिए लाभकारी हो सकता है. वो कहती हैं, "ऐसे बहुत साड़ी महिलाएं हैं जिन्हें सेक्स के दौरान उत्तेजना, दर्द या ओर्गास्म नहीं कर पाने जैसी समस्याएं होती हैं" और दूसरे स्तनधारी जीवों का अध्ययन कर इन सब के कारणों का पता लगाया जा सकता है.
साथ ही समाधान भी ढूंढे जा सकते हैं. इसके बाद ब्रेनन की योजना है अल्पाकाओं का अध्ययन करने की, जो आधे घंटे तक सहवास करते हैं. उन्हें शक है कि संभव है कि नर मादाओं के क्लिटोरिसों को स्टिम्युलेट करते हैं, जिससे प्रजनन में आसानी होती है.
सीके / एए (एएफपी)